रामकृष्ण गौतम की धरती, महावीर का ज्ञान यहां
Автор: Yugal Ji Prayagraj
Загружено: 2019-06-15
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संस्कृति सबकी एक चिरंतन खून रगों में हिंदू है।
विराट सागर समाज अपना हम सब इसके बिंदु हैं।।
रामकृष्ण गौतम की धरती, महावीर का ज्ञान यहां।
वाणी खंडन-मंडन करती, शंकर चारों धाम यहां।
जितने दर्शन राहें उतनी, चिंतन का चैतन्य भरा।
पंथ खालसा गुरु पुत्रों की, बलिदानी यह पुण्य धरा।
अक्षय वट अगणित शाखाएं, जड़ में जीवन हिंदू है।
संस्कृति सबकी एक चिरंतन, खून रगों में हिंदू है।।१।।
कोटि ह्रदय है भाव एक है, इसी भूमि पर जन्म लिए।
मातृभूमि यह पितृभूमि यह, पुण्य भूमि हित मरे जिए।
हारे-जीते संघर्षो में, साथ लड़े बलिदान हुए।
कालचक्र मजबूरी में, रिश्ते नाते बिखर गए।
एक बड़ा परिवार हमारा, पुरखे सबके हिंदू हैं।
संस्कृति सबकी एक चिरंतन, खून रगों में हिंदू है।।२।।
सबकी रक्षा धर्म करेगा, उसकी रक्षा आज करें।
वर्ण-भेद मतभेद मिटाकर, नव रचना निर्माण करें।
धर्म हमारा जग में अभिनव, अक्षय है अविनाशी है।
इसी कड़ी से जुड़े हुए युग युग से भारतवासी है।
थाय अथाह जहां की महिमा, गहरा जैसा सिंधु है।
संस्कृति सबकी एक चिरंतन, खून रगों में हिंदू है।।३।।
हरिजन गिरिजन वासी बनके, नगर-ग्राम सब साथ चले।
उच्च-नीच का भाव मिटाकर, समता के सद्भाव बढ़े।
ऊपर दिखते भेद भले ही, ज्यों बगिया में फूल खिले।
रंग-बिरंगी मुस्कानों की, जीवन रस पर एक मिले।
संजीवनी रस अमृत पीकर, मृत्युन्जय हम हिंदू हैं।।४।।
संस्कृति सबकी एक चिरंतन, खून रगों में हिंदू है।
विराट सागर समाज अपना, हम सब इसके बिंदु है।
संस्कृति सबकी एक चिरंतन खून रगों में हिंदू है।।
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