लाहौल स्पीति -गाँव गोरमा के किसान रामनाथ की कहानी | Natural Farming Success Story
Автор: SPNF
Загружено: 2025-03-03
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🌿 हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति जिले के किसान रामनाथ की प्रेरणादायक कहानी!
वे बिना किसी रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों के प्राकृतिक खेती कर रहे हैं और इससे उन्हें शानदार मुनाफा भी हो रहा है। देखिए, कैसे Natural Farming अपनाकर वे अपनी फसल की उम्र बढ़ा रहे हैं और लागत को लगभग शून्य कर रहे हैं!
👉 इस वीडियो में जानिए:
✔️ प्राकृतिक खेती के फायदे
✔️ खाद और कीटनाशक कैसे बनाएं
✔️ देसी गाय के गोबर और मूत्र का उपयोग
✔️ खेती में खर्च कम करके अधिक लाभ कैसे पाएं
जनजातीय जिला हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिला लाहौल स्पीति में बसा यह खूबसूरत सा गांव गोरमा। गांव के चारों ओर हरे-भरे खेत न केवल इसकी सुंदरता बढ़ाते हैं, बल्कि यहां की स्वच्छ और शांत वातावरण को भी दर्शाते हैं।
गांव के इन्हीं किसानों में से एक रामनाथ हैं, जो आज अपनी बहन की सलाह मानकर पशुओं के चारे के रूप में फसलों के अवशेष संग्रहित करने में लगे हैं। खास बात यह है कि रामनाथ अपने खेतों में प्राकृतिक तौर पर ही खेती-बाड़ी करते हैं और इससे अच्छी-खासी आमदनी अर्जित कर रहे हैं। उनके पास लगभग 12 बीघा भूमि है, जिस पर वे प्राकृतिक तरीके से आलू, मटर, टमाटर, गाजर, ब्रोकली और आइसबर्ग जैसी कई फसलें उगाते हैं।
जिले में संचालित आत्मा परियोजना के तहत उनके गांव में कृषि शिविरों का आयोजन किया गया, जिसमें किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया गया। जब रामनाथ ने देखा कि नई-नई बीमारियां भी फसलों को प्रभावित कर रही हैं, तो उन्होंने घन जीवामृत, अग्नि अस्त्र आदि जैविक उत्पादों को बनाने की ट्रेनिंग ली। आज वे प्राकृतिक खेती कर रहे हैं और इसके कई फायदे देख रहे हैं।
रामनाथ बताते हैं कि प्राकृतिक खेती से उनकी कृषि लागत लगभग शून्य हो गई है। पहले उन्हें रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर काफी खर्च करना पड़ता था, लेकिन अब वे 2018 से पूरी तरह प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। वे जो भी उर्वरक और कीटनाशक उपयोग करते हैं, उसे अपने घर में स्वयं तैयार करते हैं और बाजार में मिलने वाले रासायनिक उत्पादों का बिल्कुल इस्तेमाल नहीं करते।
वे बताते हैं कि बाजार में मिलने वाले केमिकल युक्त उत्पादों से फसलों में ज्यादा बीमारियां लगती हैं। पहले वे सोचते थे कि इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन जब से उन्होंने प्राकृतिक खेती शुरू की है, तभी से उन्हें इसके वास्तविक लाभ समझ में आए हैं। अब वे अपनी खेती में देसी गाय के गोबर और मूत्र का उपयोग कर जैविक खाद और प्राकृतिक कीटनाशक तैयार कर रहे हैं।
रामनाथ का कहना है कि प्राकृतिक खेती से उनकी फसलों की उम्र बढ़ जाती है और वे जल्दी खराब नहीं होतीं। इससे उनकी आमदनी में भी बढ़ोतरी हुई है। साथ ही, वे यह भी बताते हैं कि प्राकृतिक खेती करने से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी कम हो जाती हैं। पहले रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से सिर दर्द और एलर्जी जैसी परेशानियां होती थीं, लेकिन अब वे पूरी तरह स्वस्थ महसूस करते हैं।
खेती के सीजन में उनका भाई भी उनका हाथ बंटाने के लिए आता है, जिससे उनका काम और भी सुचारू रूप से चल पाता है।
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सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के विभिन्न आदान बनाने के लिए राज्य परियोजना कार्यान्वयन इकाई, शिमला द्वारा प्रकाशित आदान श्रंखला सीरिज और प्राकृतिक खेती में जिलावार सफलता की कहानियां पुस्तिकाओं को आप सभी किसान भाई नीचे दिए लिंक से डाउनलोड कर सकते हैं...
किताबों का विवरण इस प्रकार है
आदान श्रंखला
1. जीवामृत एवं सप्तधान्यांकुर-निर्माण एवं उपयोग
2. घनजीवामृत-निर्माण एवं उपयोग
3. बीजामृत-निर्माण एवं उपयोग
4. कीटनाशी अस्त्र-निर्माण एवं उपयोग
5. प्राकृतिक खेती का आधार देसी गाय-विशेषता एवं उपयोगिता
6. रोगनाशी दवाएं-निर्माण एवं उपयोग
प्राकृतिक खेती में सफलता की कहानियां
1. जिला बिलासपुर
2. जिला मंडी
3. जिला सोलन
4. जिला शिमला
5. लाहौल स्पीती
6.सिरमौर
7.किन्नौर
8.कुल्लू
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जल्दी ही अन्य जिला
हमीरपुर, काँगड़ा , ऊना , चम्बा की सफलता की कहानियां आपको उपरोक्त लिंक में मिल जाएगी
वार्षिक प्रगति रिपोर्ट
2018-19
2019-20
2020-21
Iqbal Thakur
Consultant,
Digitization and Mass Media.
Prakritik Kheti Khushhal Kisan Yojna
State Project Implementing Unit (SPIU)
Krishi Bhawan,Shimla-171005
/ iqbalthakur
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