श्री रावल मल्लीनाथ जी की सम्पूर्ण आरती | SHREE RAWAL MALLINATH JI KI AARTI | कालू सिंह जी गंगासरा
Автор: MARUDHAR RI RASDHAR (मरूधर री रसधार)
Загружено: 2022-10-12
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🚩 मरूधर री रसधार 🚩
यूट्यूब चैनल प्रस्तुत करते हैं :-
★ "मेहर करी ने पधारों मल्लीनाथ जी"
"Mehar kari ne padharo Mallinath ji"
◆ "मालाणी रा धणी" श्री रावळ मल्लीनाथ जी की सम्पूर्ण आरती ।।
Aarti - Shree Rawal Mallinath Ji (MALANI RA DHANI) Ki Aarti
◆ रचना एवं स्वर - कालूसिंह जी गंगासरा
Lyricist & Singer - Kalu Singh Gangasara
◆ संगीत निर्देशन एवं रेकॉर्डिंग - श्री किशोर जी भट्ट
( श्री नीलकंठ ऑडियो आर्ट, राजकोट, गुजरात )
◆ प्रस्तुति - मरूधर री रसधार 【YOUTUBE CHANNEL】
मालाणी के संत शासक - श्री रावळ मल्लीनाथ जी (मालाणी रा धणी)
पश्चिमी राजस्थान के मालाणी आंचल में रावल मल्लिनाथ जी ने राठौड़ वंश के राव सलखा जी के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में सन् 1358 में जन्म लिया जिनकी वीरता के किस्से आज भी सुने जाते हैं।
इन्होंने अपनी वीरता और शौर्य से अपने पिता का गंवाया हुआ राज्य वापस जीत लिया तथा मुस्लिम आक्रांताओं को अपने पराक्रम से धूल चटाई. इस वीर नायक ने जहां मुस्लिम आक्रमणकारियों की बड़ी बड़ी सेनाओं को अपनी सैनिक रणनीति, कौशल से पराजित करने साथ अपनी राजनैतिक सूझबूझ, प्रशासनिक कुशलता के बलबूते अपने राज्य का विस्तार कर इतिहास के पन्नों में कीर्ति पाई।
मल्लीनाथ जी एक कुशल शासक थे। महज 20 साल की उम्र में उन्होंने सन 1378 में मालवा के सूबेदार निजामुद्दीन को हरा कर अपनी वीरता का लोहा मनवाया था। रावल मल्लीनाथ जी के शौर्य को प्रदर्शित करता हुआ यह अधदूहा बहुत प्रसिद्ध है।
“तेरा तुंगा भांगिया, मालै सलखाणीह।”
जब मुस्लिमों के 13 दलों की संयुक्त सेना जिसे तेरह तुंगी कहा गया ने चढ़ाई शुरू की तब रावल ने अपने युद्ध कौशल व सैन्य क्षमता से तेरह तुंगी सेना को खदेड़ दिया। इसी युद्ध घटना को लेकर यह दूहा कहा गया था।
मुहणोत नेणसी व्याख्या करते है कि मल्लिनाथ जी वीर शासक होने के साथ सिद्ध पुरुष थे। उन्हें भविष्य की घटनाओं का भी सटीक भान रहता था। मल्लीनाथ जी ने लगभग सन् 1389 में संत उगमसिंह जी भाटी की शरण में जाकर उनको अपना गुरु बनाया तथा दीक्षा प्राप्त की।
इसके बाद उन्होंने सिद्ध पुरुष के रूप में कीर्ति हासिल की। मल्लीनाथ जी निर्गुण उपासक थे और उनके चमत्कारों की कथाएं लोक में प्रचलित है। मालाणी क्षेत्र रावल मल्लिनाथ के वंशजों का है। आज भी समस्त जागीरों में उनके वंशज रावल की उपाधि ग्रहण करते है। वर्तमान में मल्लिनाथ जी मालाणी की संस्कृति के अभिन्न अंग है। उनकी पत्नी संत शिरोमणि रानी रूपादे जी खुद धार्मिक प्रवृति की थी उनकी संगत बचपन से ही साधु संतो की रही तथा उन्होंने भी देवत्व को प्राप्त कर लिया।
उनको व उनकी पत्नी रानी रूपादे जी को देवता के रूप में पूजा जाता है। भजन कीर्तन के साथ जागरण होती है तथा उनके ऊपर बखान गीतों व भजनों से याद किया जाता है। रानी रूपादे व रावल मल्लीनाथ जी के नाम पर कई सामाजिक संस्थान बने हुए है जहां लोक हित के कार्य किए जाते है।
सन् 1399 में ही चैत्र शुक्ला द्वितीया मालाणी के महाराज का देवलोकगमन हुआ पर आज भी वे लोक की आत्मा में जीवित है। इनका मंदिर तथा स्मारक बाड़मेर जिले के समीप तिलवाड़ा गाँव में है जहां प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी एक विशाल पशु मेले का आयोजन किया जाता है।
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