अथर्ववेदसंहिता। शब्दार्थ । अपरनाम । शाखाएं- पिप्पलाद, शौनक । प्रमुख सूक्त । भाष्यकार । ATHARVA VEDA
Автор: संस्कृत जिज्ञासा
Загружено: 2024-07-16
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वैदिक साहित्य के इतिहास का ज्ञान प्रत्येक भारतीय को अपेक्षित है, क्योंकि भारत की सभ्यता का उद्भव इन्हीं वेदों से ज्ञापित होता है। इसिलिये अपने धर्म और संस्कृति से सम्बद्ध तथ्य को सुगमता से समझाने का प्रयास संस्कृतजिज्ञासा की प्राथमिकता रही है।
संस्कृत के विषयों को परम्परागत रूप से अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को UGC NET JRF TET TGT PGT SET इत्यादिक परीक्षाओं से गुजरना होता है। जिन परीक्षाओं में वैदिक साहित्य से सम्बन्धित तथ्यों का ज्ञान होना आवश्यक है । इसिलिये वैदिक साहित्य के एक मुख्य विषय को इस भाग में रखा गयाहैं ।
सामवेदसंहिता के इतिहास के विषय में हमनें प्रथमभाग में निम्नलिखित तथ्य इस भाग में रखे गये हैं-
(१) अथर्ववेद का शब्दार्थस्पष्टीकरण
(२) अथर्ववेद के अपरनामों की व्याख्या
(३) अथर्ववेद का ऋत्विज्, ऋषि, देवता, उपवेद
(४) अथर्ववेद की गुरुशिष्यपरम्परा
(५) अथर्ववेद की वर्तमान में समुपलब्ध शाखाएं
(६) अथर्ववेद की शौनक शाखा का परिचय
(७) अथर्ववेद की पिप्पलाद शाखा का परिचय
(६) अथर्ववेद के विषयवस्तु का परिचय
(७) अथर्ववेद के प्रमुख भाष्य एवं भाष्यकार
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