Himalayan Mountain Trekking
Автор: Pathik Diaries
Загружено: 2025-11-15
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Himalayan Mountain Trekking
उत्तराखंड यात्रा 2025 I Pathik diaries
सभी को मेरा नमस्कार बड़े बुजुर्गों को प्रणाम I'm MANMOHAN KATHAIT and I am from New Delhi My channel is PATHIK DIARIES, Which is all about travelling and good food. Mostly I post every alternative day. You can visit my channel and travel to almost all the cities of india and some cities of Europe also.
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MY Present Vlog UTTRAKHAND YATRA 2025
Gears Use :
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2. DigiTek Wireless Microphone System
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Journey by : Kia Seltos
Stoppage : NAMASTE INDIA/NAMASTE DARBAR, MUJAFFARNAGAR, UTTAR PRADESH
RISHIKESH TRIVENI GUEST HOUSE
Inspired by :
@Saurav Joshi
@Elvish Yadav Vlogs
@Flying Beast
@Anunay Sood
@Explore The Unseen 2.0
@Distance between
@VISA TO EXPLORE
नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपके अपने चैनल पर — आज मैं ले चलूँगा आपको उत्तराखण्ड की ट्रेकिंग यात्रा पर जो देलचोरी से बामराडी गांव तक 5 कि मी की यात्रा है ।मंजूघोषेश्वर महादेव मंदिर और यहाँ मनाया जाने वाला प्रसिद्ध कांडा मेला। ये मेला देख कर अब हम वापस अपने गाँव बमराड़ी जा रहे हैं
सबसे पहले ट्रेक की बात: मैं सुबह 10:00 बजे अपने गाँव बमराड़ी से निकल पड़ा — एक रोमांचक, कंटीले और सुंदर रास्ते पर लगभग 2.5 से 3 घंटों का ट्रेक तय कर के 1:00 बजे मंदिर के प्रांगण में पहुँचा। यह ट्रेक सिर्फ फिजिकल नहीं था — हर मोड़ पर हिमालयी हवा, सरसराती मिट्टी और पैरों तले ज़मीन की गंध ने इसे मेरी ज़िन्दगी का “बेस्ट ऑफ़ लाइफ” अनुभव बना दिया।
अब मंदिर और उसकी पौराणिकता — मंजूघोषेश्वर महादेव मंदिर पहाड़ी की चोटी पर स्थित एक प्राचीन शिवालय है। स्थानीय मान्यता और ग्रामीण पुरातन ग्रंथों के अनुसार इसका अस्तित्व बहुत ही प्राचीन माना जाता है — कहा जाता है कि इसकी जड़ें द्वापर युग के समय से जुड़ी हैं और कुछ लेखों में इसका ज़िक्र स्कन्द पुराण (केदारखंड) में मिलता है। यही वजह है कि यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं का आस्था का स्तर बेहद गहरा और मान्यताएँ पौराणिक हैं। मंदिर का स्थान, स्थापत्य और स्थानीय लोककथाएँ इसे क्षेत्र का एक ऐतिहासिक धार्मिक केंद्र बनाती हैं।
कांडा मेला — परंपरा, आयोजन और रीति-रिवाज:
यह मेला परंपरागत रूप से दीपावली के अगले दिन आयोजित किया जाता है — जिसे स्थानीय रूप से छोटा कांडा और उसके अगले दिन मनाये जाने वाले बड़ा कांडा के रूप में मनाया जाता है। मेला दो दिनों का होता है — पहले दिन का आयोजन लोक परम्पराओं और छोटी क्रीड़ा/पूजा से जुड़ा रहता है, जबकि दूसरे दिन की भव्यता और भक्तों की भीड़ अधिक देखने को मिलती है।
भजन-कीर्तन, प्रसाद वितरण, लोकनृत्य और छोटे-छोटे व्यापारिक स्टालों का अद्भुत मेल यहाँ देखने को मिलता है।
लोग मानते हैं कि यहाँ की पूजा-अर्चना से मनोकामना पूर्ण होती है। स्थानीय कथा व मान्यताओं के अनुसार मंदिर और आसपास के देवस्थान क्षेत्र की रक्षा देवी-देवताओं का आसन रहा है — मंजूघोषेश्वर (शिव रूप) के साथ-साथ यहाँ महाकाली व मंजू देवी के मंदिर भी हैं।
मेले का अनुभव — जो मैंने महसूस किया:
भीड़-भाड़ के बीच रंग-बिरंगे झंडे, स्थानीय वेश-भूषा में सजघ भक्त, हर तरफ़ गूँजते जय-घोष और मंदिर की घंटियों की ध्वनि — ये सब मिलकर एक अनूठा लोक-धार्मिक उत्सव बनाते हैं। घाटियों की ठंडी हवा में चढ़ते हुए धूप, चाय के ठेले, और स्थानीय लोगों की मेहमाननवाज़ी — यह सब मेरे ट्रेक को अविस्मरणीय बना गया।
यात्रा-सूचनाएँ और सुझाव (टिप्स):
1. ट्रेक के लिए हल्का बैग, पर्याप्त पानी और नाश्ता साथ रखें — रास्ता कुछ स्थानों पर श्रमिक और कच्चा है।
2. मेला के दिनों में पार्किंग और भीड़ अधिक रहती है — इसलिए समय से प्रस्थान करें और गाँव के स्थानीय निर्देशों का पालन करें।
3. मंदिर के धार्मिक रीति-रिवाजों का सम्मान करें — निशान चढ़ाने, प्रसाद लेने और पूजा-पाठ में स्थानीय नियमों का पालन अपेक्षित है।
4. मोबाइल नेटवर्क कुछ जगह कमजोर हो सकता है — इसलिए आवश्यक सूचनाएँ ऑफ़लाइन रखना लाभदायक रहेगा।
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अंत में — दोस्तों, मंजूघोषेश्वर मंदिर और कांडा मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं हैं; यह यहाँ की संस्कृति, लोककथाएँ और पहाड़ियों की आत्मा हैं। मेरा यह ट्रेक — सुबह 10 बजे बमराड़ी से निकल कर 1 बजे मंदिर पहुँचना — मेरे लिए आध्यात्मिक और रोमांचक दोनों था। अगर आप भी पहाड़ों में शांति, आस्था और लोक-रंग का अनुभव करना चाहते हैं, तो यह जगह ज़रूर सूचीबद्ध करें।
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