Ramashankar Yadav Vidrohi | विद्रोही की वह कविता जिसे सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं | Hindi Kavita
Автор: AmarUjala Kavya
Загружено: 2025-12-02
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मैं साइमन
न्याय के कटघरे में खड़ा हूं
प्रकृति और मनुष्य मेरी गवाही दें
मैं वहां से बोल रहा हूं
जहां मोहनजोदाड़ो के तालाब की आखिरी सीढ़ी है
जिस पर एक औरत की जली हुई
लाश पड़ी है
और तालाब में इंसानों की हड्डियां
बिखरी पड़ी हैं
इसी तरह एक औरत जली हुई लाश
आपको बेबिलोनियां में भी मिल जाएगी
और इसी तरह इंसानों की बिखरी हुई हड्डियां
मेसोपोटामियां में भी
मैं सोचता हूं
और बारहा सोचता हूं
कि आखिर क्या बात है
कि प्राचीन सभ्यताओं
के मुहाने पर एक औरत की जली हुई लाश मिलती है
और इंसानों की बिखरी हुई हड्डियां मिलती हैं
~रमाशंकर यादव 'विद्रोही'
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