राम भावन यादव मास्टर // Ramleela commity kanchanpur // Basti dhadhariya Ramleela 🙏🙏❤️❤️❤️
Автор: UP nautanki desi 97
Загружено: 2024-11-15
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युद्धभूमि में विशालकाय कुम्भकरण को देखते ही वानर सेना में भगदड़ मच जाती है। राम को सन्देह होता है कि रावण कोई मायावी रूप धारण करके आया है। तब विभीषण बताते हैं कि यह उनका मंझला भाई कुम्भकरण है जिसे भगवान ब्रह्मा ने छह मास सोने और एक दिन जागने का वरदान दिया हुआ है। पूर्व कथानुसार एक बार बार तीनों भाईयों रावण, कुम्भकरण और विभीषण ने अपनी कठोर तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया था। कुम्भकरण इन्द्रासन अर्थात इन्द्र का सिंहासन माँगना चाहता था। घबड़ाये इन्द्र ने ज्ञान की देवी सरस्वती से प्रार्थना की। सरस्वती कुम्भकरण की जिह्वा पर विराजमान हो गयीं। जैसे ही कुम्भकरण ने वरदान माँगा उसके मुख से इन्द्रासन के स्थान पर निद्रासन निकल गया। ब्रह्मा ने उसे जीवन भर निद्रासन में रहने का वर दे दिया। इससे परेशान रावण ने ब्रह्मा से कहा कि यदि उसका छोटा भाई जीवन भर सोता रहेगा तो संसार को किस प्रकार देखेगा। तब ब्रह्मा ने रावण के भ्रातप्रेम को देखते हुए कुम्भकरण को दिये वरदान में छह मास सोने और एक दिन जागने का संशोधन कर दिया। यदि कुम्भकरण को छह मास सोने का वरदान न मिलता तो वह रोज इतना भोजन करता कि संसार में अकाल पड़ जाता। विभीषण राम से कहते हैं कि रावण ने कुम्भकरण को इसलिये जगाया है कि वो संध्या तक सारी वानर सेना का भक्षण कर ले। राम कुम्भकरण से युद्ध करने को उद्धत होते हैं किन्तु विभीषण उनसे अनुमति लेकर अपने भाई कुम्भकरण से शान्ति वार्ता करने जाते हैं। विभीषण अपने मंझले भैया के चरण स्पर्श करके समझाते हैं कि ज्येष्ठ भ्राता रावण धर्म विमुख हो चुके हैं इसलिये उन्हें धर्म का साथ देते हुए राम के साथ मिल जाना चाहिये। कुम्भकरण कहता है कि संकट के समय भाई को अकेला छोड़ देने से बड़ा कोई अधर्म नहीं होता है। वह यह भी कहता है कि लोग भले ही विभीषण को रामभक्त कहें लेकिन इतिहास उसे सबसे बड़ा कुलद्रोही और विश्वासघाती भी कहेगा। कुम्भकरण विभीषण से यह भी कहता है कि यदि उसने बड़े भाई की सेविकाई करने की सीख लक्ष्मण से ही ले ली होती तो वह अपने पर भ्रातद्रोह का कलंक न लगाता। कुम्भकरण विभीषण को राम के पास वापस जाने और उन्हें सावधान करने को कहता है। विदाई के समय कुम्भकरण भावुक होकर कहता है कि यदि इस युद्ध में रावण समेत उन सबका मरण पूर्व निर्धारित है तो विश्रवा वंश में विभीषण अकेले जीवित बचेगा, फिर वो ही उनका अन्तिम संस्कार करके अपने धर्म का निर्वाह करे। विभीषण राम को शान्ति वार्ता विफल होने की सूचना देते हैं। इसके बाद कुम्भकरण वानर सेना को बड़ी क्षति पहुँचाता है। एकबारगी तो वह अपने अस्त्र से अंगद के प्राण ही लेता यदि हनुमान बीच में आकर उसे शस्त्रविहीन न कर देते। इसके बाद युद्ध के केन्द्र में हनुमान आ जाते हैं किन्तु उनके द्वारा फेंकी गयी पर्वत शिला को कुम्भकरण अपनी एक फूँक से हवा में उड़ा देता है। कुम्भकरण की ललकार पर राम लक्ष्मण को लड़ने भेजते हैं। कुम्भकरण अपने कई अस्त्रों की विफलता के बाद शिव का अमोघ त्रिशूल लक्ष्मण पर चलाता है, लक्ष्मण असहाय नजर आते हैं लेकिन रुद्रावतार हनुमान बीच में आकर त्रिशूल को पकड़कर तोड़ देते हैं। इसके बाद कुम्भकरण सुग्रीव को अपनी मुठ्ठी में कैद करके लंका की ओर चल देता है। उसकी योजना है कि सुग्रीव लंका में कैद रहेंगे तो वानर सेना को समर्पण करना पड़ेगा। किन्तु कुम्भकरण के दुर्ग के प्रवेश करने से पहले राम उसका मार्ग रोक देते हैं और इन्द्रास्त्र चलाकर उसकी दोनों भुजाएं काट देते हैं और फिर ब्रह्मदण्ड का वार करते हैं जिससे उसका शीश कटकर समुद्र में समा जाता है। विभीषण का मन भले ही राम की विजय की कामना करता हो लेकिन मरने वाले भाई से रक्तसम्बन्ध होने के कारण उनकी आँखों से आँसू बह निकलते हैं।
निर्माता और निर्देशक - रामानंद सागर
सहयोगी निर्देशक - आनंद सागर, मोती सागर
कार्यकारी निर्माता - सुभाष सागर, प्रेम सागर
मुख्य तकनीकी सलाहकार - ज्योति सागर
पटकथा और संवाद - रामानंद सागर
संगीत - रविंद्र जैन
शीर्षक गीत - जयदेव
अनुसंधान और अनुकूलन - फनी मजूमदार, विष्णु मेहरोत्रा
संपादक - सुभाष सहगल
कैमरामैन - अजीत नाइक
प्रकाश - राम मडिक्कर
साउंड रिकॉर्डिस्ट - श्रीपाद, ई रुद्र
वीडियो रिकॉर्डिस्ट - शरद मुक्न्नवार
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