Devguradiya mandir indore | Gutkeshwar mahadev indore | devguradia temple indore | devguradia mp
Автор: Vinod Ka Safar
Загружено: 2021-09-15
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नेमावर रोड स्थित ग्राम देवगुराड़िया का शिव मंदिर होलकर राज्य के प्राचीन मंदिरों में से एक है। देवी अहिल्याबाई मई 1784 में महेश्वर से इंदौर प्रवास पर आई थीं तो छत्रीबाग में ठहरी थीं। उसी दौरान वे गरुड़ तीर्थ देवगुराड़िया शिव मंदिर के दर्शन के लिए गई थी। इतिहास में इस बात का उल्लेख है कि यह मंदिर 1784 के भी पहले का है।
कैप्टन सीई लुआर्ड के 'इंदौर स्टेट गजेटियर 1896' में इस बात का उल्लेख है कि देवगुराड़िया में महाशिवरात्रि के मौके मेला लगता है। तत्कालीन मुगल शासक औरंगजेब द्वारा कंपेल के कानूनगो को मेले के हर दुकानदार से कर वसूली का अधिकार दिया गया था। इसी गजेटियर में उल्लेख है कि इंदौर होलकर स्टेट रेलवे (1874) का कार्य शुरू हुआ तो इसी पहाड़ी से खुदाई कर निर्माण सामग्री ले जाई गई।
अहिल्याबाई ने कराया था देवगुराड़िया मंदिर का जीर्णोद्धार
हजार साल पुराने मंदिर में शिवलिंग का होता है प्राकृतिक जलाभिषेक
देवगुराड़िया स्थित शिव मंदिर अपनी प्राचीनता के साथ ही अपनी मान्यताओं के लिए है ख्यात है। हम बता रहे हैं 5 तथ्य जो बताते हैं देवगुराड़िया शिव मंदिर का इतिहास।
एक हजार साल से भी ज्यादा पुराना
1. इंदौर बायपास से एनएच 59 बैतूल मार्ग पर देवगुराड़िया पहाड़ी पर भगवान शिव का अद्भुत मंदिर है। यह एक हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। माना जाता है, देवगुराड़िया शिव मंदिर और शिवलिंग पूर्व समय में जमीन में दब गया था। बाद में ऊपर से एक मंदिर बनवा दिया गया था।
गरुड़ ने यहां कठिन तपस्या की थी
2. मान्यता है, गरुड़ ने यहां कठिन तपस्या की थी, जिसके बाद यहां शिव प्रकट हुए थे और शिवलिंग के रूप में यहीं रह गए। होल्कर रियासत की देवी अहिल्या शिव भक्त थीं, उन्होंने 18वीं सदी में इस प्राचीन शिव मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।
पहाड़ी जल से शिवजी का प्राकृतिक जलाभिषेक
3. हजार साल पुराने इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां हर साल सावन में पहाड़ी जल से शिवजी का प्राकृतिक जलाभिषेक होता है। शिवलिंग के ऊपर की तरफ बने नंदी के मुख से सावन-भादौ में प्राकृतिक जल निकलता है, जो सीधे शिवलिंग पर गिरता है और मंदिर के दरवाजे के बाहर बने अमृतकुंड में भर जाता है। यह सिलसिला जब मंदिर बना था तब से चल रहा है।
सोलह पीढ़ियों से मंदिर की पूजा
4. पुरी परिवार यहां सोलह पीढ़ियों से मंदिर की पूजा कर रहा है। अब सत्रहवीं पीढ़ी यह दायित्व संभालने के लिए तैयार है। यहां हर साल शिवरात्रि पर भव्य मेला लगता है। मंदिर में पांच कुंड हैं, जिनमें दो कुंडों में लोग स्नान करते हैं। इनमें हमेशा पानी रहता है। मान्यता है, इनका पानी कभी नहीं सूखता है और पूरे गांव की प्यास इसी कुंड से बुझती है।
नाग-नागिन भक्तों को दर्शन देते हैं
5. मंदिर में भगवान शिव के गण माना जाने वाला नाग का जोड़ा भी रहता है। कभी कुंड में तो कभी शिवालय में ये नाग-नागिन भक्तों को दर्शन देते हैं। मान्यता है, जिस भक्त को इनके दर्शन होते हैं, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
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