पांडवलीला उत्तराखंड की पारंपरिक लोक-नाट्य शैली है|| पांडवों की कहानियाँ के माध्यम से दर्शाई जाती हैं
Автор: PAHADI VLOGS
Загружено: 2025-08-20
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जी बिल्कुल 🙂
मैं आपको पांडवलीला (Pandav Leela) के बारे में विस्तृत जानकारी देता हूँ:
1. परिचय
पांडवलीला उत्तराखंड (गढ़वाल और कुमाऊँ) की लोक-नाट्य परंपरा है। इसमें महाभारत की कथा विशेषकर पांडवों के जीवन, उनके वनवास, युद्ध और धार्मिक प्रसंगों को गीत, नृत्य और नाटक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
2. आयोजन का समय
यह लीला अक्सर शरद ऋतु और सर्दियों में होती है।
गाँवों में इसे बड़े धार्मिक पर्व, उत्सव या मेले के अवसर पर आयोजित किया जाता है।
कई जगह यह लीला कई दिनों तक चलती है।
3. प्रस्तुति की शैली
इसमें स्थानीय लोग ही कलाकार बनते हैं, जो पांडव, द्रौपदी, कौरव, श्रीकृष्ण आदि का अभिनय करते हैं।
पारंपरिक वाद्ययंत्र जैसे ढोल, नगाड़ा, रणसिंघा, दमुआ, हुड़का आदि का प्रयोग किया जाता है।
गायक कथा गाते हैं और कलाकार उसके अनुसार अभिनय करते हैं।
4. सांस्कृतिक महत्व
यह केवल मनोरंजन ही नहीं, बल्कि धार्मिक आस्था और भक्ति का प्रतीक है।
लोग इसे भगवान विष्णु और महाभारत के पात्रों को याद करने का माध्यम मानते हैं।
इससे गाँवों में सामुदायिक एकता और सहयोग भी मजबूत होता है।
5. विशेषताएँ
पांडवलीला में कई जगह जागर (देवताओं को जागृत करने की परंपरा) भी जुड़ी होती है।
यह परंपरा पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाई जाती है।
पांडवलीला को उत्तराखंड की लोक-संस्कृति का जीवंत रूप कहा जाता है।
👉 संक्षेप में:
पांडवलीला उत्तराखंड की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर है, जिसमें महाभारत की कथाओं को लोकगीत, नृत्य और नाट्य के माध्यम से जीवंत किया जाता है।
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