राजस्थान के प्रथम इतिहासकार मुहणोत नैणसी और संकटो सें घिरा उनका जीवन/राजस्थान के प्रसिद्ध व्यक्तित्व
Автор: GR SAMbHAV [ संभव online classes ]
Загружено: 2025-08-03
Просмотров: 186
#मुहणोत_नैणसी
#muhnot_nainsi
#popular_personsof_rajasthan
#nainsirikhyat
#marvad_ra_pargna_ri_vigat
#nainsi_aatmhatya
#historicalfacts
#rajasthan
#rajasthan_gk
#rajasthan_history
#rajasthani_writer
मुहता नैणसी जोधपुर के निवासी थे। यह जोधपुर के महाराजा जसवन्त सिंह ( प्रथम ) के समकालीन थे। इनके पिता जयमल भी राज्य में उच्च पदों पर कार्य कर चुके थे। मुहता जयमल के पांच पुत्रो में से नैणसी सबसे बङे थे। उनकी माता का नाम सरूपदे था।नैणसी ने जोधपुर राज्य के दीवान पद पर कार्य किया और अनेक युद्धों में भी भाग लिया, उन्हें इतिहास में बड़ी रूचि थी।
इनके द्वारा लिखी गई ख्यात 'नैणसी की ख्यात' के नाम से प्रसिद्ध है। कर्नल टाड के अलावा यहां के सभी इतिहासकारों ने इसका किसी न किसी रूप में उपयोग किया है। ख्यात की उपयोगिता और इनका महत्व इस बात से ही प्रकट होता है कि गौरीशंकर ओझा ने इनकी प्रशंसा करते हुए लिखा है कि यदि यह ख्यात कर्नल टाड को उपलब्ध हो गई होती तो उसका ‘राजस्थान' कुछ और ही ढंग का होता। यह ग्रंथ रामनारायण दुगड़ द्वारा दो भागों में सम्पादित ( हिन्दी अनुवाद ) होकर काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा संवत् 1982 में प्रकाशित हुआ था। मूल राजस्थानी में यह ग्रंथ बदरीप्रसाद साकरिया द्वारा सम्पादित होकर राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान जोधपुर से चार भागों में पूर्ण सन् व 967 तक प्रकाशित हुआ। इस ख्यात में राजस्थान के प्रायः सभी रजवाड़ों के राजवंशों का इतिहास नैणसी ने लिखा है। इसमें सिसोदियो, राठौड़ों और भाटियों का इतिहास अधिक विस्तार के साथ लिखा गया है। पहले राजवंश की वंशावली देकर बाद में प्रत्येक शासक की उपलब्धियों को ‘बात' शीर्षक के अन्तर्गत लिया गया है जैसे — 'बात राव जोधा री' आदि। मुहणोत नैणसी सम्वत् 1727 तक जीवित थे अत : ख्यात में 18 वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक की घटनाओं का ही उल्लेख मिलता है। इसमें 13 वीं शताब्दी तक की वंशावली और संवत् इतने प्रामाणिक नहीं कहे जा सकते परन्तु उसके बाद के संवत् और घटनाएं विश्वसनीय मानी जाती हैं। नैणसी ने जिन व्यक्तियों के सहयोग से ख्यात की सामग्री का संकलन किया उनके नाम भी उन्होेंने यथास्थान दिये हैं। ख्यात की भाषा टकसाली राजस्थानी है, जिसमें अरबी-फारसी के कुछ शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। यह ग्रन्थ राजस्थान की राजपूत जाति, यहाँ की सामाजिक संरचना, आक्रांताओं से संघर्ष, जाति- प्रथा धार्मिक मान्यताएँ, भौगोलिक स्थिति और सांस्कृतिक परिवेश संबंधी सूचनाओं से भी परिपूर्ण हैं।
नैणसी का दूसरा ग्रंथ ‘ मारवाड रा परगना री विगत ’ है, जिसमें महाराजा जसवन्त सिंह ( प्रथम ) के अधीन सात परगनों का विस्तार से वर्णन किया गया है। यह एक प्रकार से मारवाड़ का गजेटियर है। जिसमें प्रत्येक परगने का प्रारम्भ में इतिहास दिया गया है और फिर खालसा और जागीर के गांवों की अलग-अलग आमदनी आदि संक्षेप में अंकित कर परगने के अर्न्तगत आने वाले प्रत्येक गांव की भौगोलिक स्थिति के साथ उसकी रेखा, पांच वर्ष की आमदनी ओर गांव की उपज आदि विशिष्ट बातें भी अंकित हैं। इसमें जाति के अनुसार गांवों आबादी और पीने के पानी के साधनों का भी उल्लेख किया गया है। यह ग्रंथ मारवाड़ की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक सांस्कृतिक और प्रशासन सम्बन्धी सामग्री का अत्यंत प्रामाणिक स्रोत है। इस ग्रंथ का सर्वप्रथम सम्पादन डा ० नारायण सिंह भाटी ने करके विस्तृत भूमिका सहित तीन भागों में ( सन् १९६८-७४ ) राजस्थानी प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान जोधपुर से प्रकाशित करवाया।एक बार नैणसी ने एक बङी भारी दावत दी।जिसमें महाराजा जसवंत सिंह भी आयें। दावत की तैयारी और अद्भुथ प्रदर्शन देखकर महाराजा और औरंगजेब के दरबारी दंग रह गए। औरंगजेब के आदमियों को महाराजा के कान भरने का अच्छा मौका मिला। महाराजा ने नैणसी से एक लाख रूपये की कबूलात के रुप में मांग की।अपनी प्रतिष्ठा के प्रतिकूल और अपनी सेवाओं पर पानी फेरने वाला समझा। नैणसी ने ये कहा, लाख लखारा नीपजै ,बङ पीपल री साख। नटियो मूतो नैणसी, तांबो देण तलाक
Доступные форматы для скачивания:
Скачать видео mp4
-
Информация по загрузке: