आपके नमक की छिपी हुई कहानी | Rajiv Dixit
Автор: AUM
Загружено: 2025-11-30
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राजीव दीक्षित के विचारों का विस्तृत सारांश: स्वदेशी और स्वराज का मार्ग
राजीव दीक्षित के व्याख्यानों का मूल तर्क यह है कि 15 अगस्त 1947 को भारत को मिली स्वतंत्रता पूर्ण नहीं थी, बल्कि यह "सत्ता का हस्तांतरण" (Transfer of Power) मात्र था। उनके अनुसार, भारत आज भी मानसिक, आर्थिक और कानूनी रूप से अंग्रेजों और पश्चिमी शक्तियों का गुलाम है। उनके विचारों को निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं में समझा जा सकता है:
1. झूठी आज़ादी और कानूनी गुलामी
दीक्षित का मानना था कि भारत की संप्रभुता एक भ्रम है। उनके अनुसार, अंग्रेजों ने भारत छोड़ने से पहले एक संधि की थी, जिसके तहत भारत को 99 साल की लीज पर दिया गया। यही कारण है कि अंग्रेजों द्वारा बनाए गए 34,735 कानून (जैसे इंडियन पुलिस एक्ट 1860, भूमि अधिग्रहण कानून, और IPC) आज भी लागू हैं। ये कानून भारतीयों को न्याय देने के लिए नहीं, बल्कि उन पर शासन करने और उन्हें दबाने के लिए बनाए गए थे।
2. आर्थिक लूट और विदेशी कंपनियों का षड्यंत्र
दीक्षित ने वैश्वीकरण (Globalization) और उदारीकरण (Liberalization) को भारत को लूटने का नया हथियार बताया।
बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ (MNCs): पेप्सी, कोका-कोला और कोलगेट जैसी कंपनियाँ भारत में नगण्य निवेश के साथ आती हैं और भारी मुनाफा कमाकर देश का धन विदेश ले जाती हैं।
WTO और संधियाँ: विश्व व्यापार संगठन (WTO) और गैट (GATT) जैसे समझौतों ने भारत की संसद की शक्ति को कम कर दिया है, जिससे देश की आर्थिक नीतियों का निर्णय विदेशी संस्थाओं द्वारा होता है।
काला धन: उन्होंने दावा किया कि भारतीय नेताओं ने देश को लूटकर लगभग 72 लाख 80 हजार करोड़ रुपये विदेशी बैंकों (जैसे स्विस बैंक) में जमा किए हैं। यदि यह धन वापस लाया जाए, तो भारत की गरीबी और बेरोजगारी जड़ से समाप्त हो सकती है।
3. मैकाले की शिक्षा और सांस्कृतिक पतन
वर्तमान शिक्षा प्रणाली को वे लॉर्ड मैकाले की साजिश मानते थे, जिसका उद्देश्य ऐसे भारतीय तैयार करना था जो "दिखने में भारतीय हों लेकिन सोच में अंग्रेज"।
अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता ने छात्रों में हीन भावना भर दी है और मौलिक चिंतन को रोक दिया है।
भारतीय संस्कृति, वेशभूषा और खान-पान का पश्चिमीकरण (जैसे पिज्जा, बर्गर, जींस) देश के सामाजिक ढांचे और स्वास्थ्य को नष्ट कर रहा है।
4. कृषि और गौ-रक्षा: भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़
दीक्षित ने गाय को केवल धार्मिक पशु नहीं, बल्कि आर्थिक स्वावलंबन का आधार माना।
जैविक खेती: रासायनिक खाद (यूरिया/डीएपी) ने खेती को जहरीला और महंगा बना दिया है। इसका समाधान गाय के गोबर और गोमूत्र पर आधारित प्राकृतिक खेती है।
गोहत्या: उन्होंने तर्क दिया कि कत्लखाने देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहे हैं, और पूर्ण गोहत्या निषेध से कृषि और ऊर्जा की समस्याएं हल हो सकती हैं।
5. समाधान: पूर्ण स्वदेशी और बहिष्कार
राजीव दीक्षित के अनुसार, इन सभी समस्याओं का एकमात्र समाधान 'स्वदेशी' है:
विदेशी वस्तुओं का पूर्ण बहिष्कार: विदेशी कंपनियों का सामान न खरीदें।
स्थानीय उत्पादों का समर्थन: कुम्हार, बुनकर और छोटे उद्योगों द्वारा बनाई गई वस्तुओं का उपयोग करें।
व्यवस्था परिवर्तन: अंग्रेजी कानूनों को रद्द कर भारतीय मूल्यों पर आधारित न्याय और शासन प्रणाली (स्वराज) की स्थापना।
आयुर्वेद: महंगी एलोपैथी दवाओं के बजाय आयुर्वेद और घरेलू नुस्खों (जैसे हल्दी, चूना) को अपनाना।
निष्कर्ष
राजीव दीक्षित का दर्शन केवल विरोध का नहीं, बल्कि पुनर्निर्माण का था। उनका अंतिम लक्ष्य एक ऐसे भारत का निर्माण करना था जो अपनी जड़ों से जुड़ा हो, जहाँ शासन विदेशी नियमों से नहीं बल्कि भारतीय संवेदनाओं से चले, और जहाँ का पैसा देश के भीतर ही रहकर समृद्धि लाए।
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