जिद्दू कृष्णमूर्ति हिंदी मे (संता मोनिका 2-3) | ध्यान (2-3)
Автор: mukti marg
Загружено: 2025-12-12
Просмотров: 177
यह वीडियो जिद्दू कृष्णमूर्ति की सैंटा मोनिका (कैलिफ़ोर्निया, USA) में 1970 की दूसरी सार्वजनिक वार्ता के अंतिम भाग (2‑3) का अंश है, जिसमें वे भय, अज्ञात, विश्वास और चित्त की शांति पर गहराई से चर्चा करते हैं। यह हिंदी विवरण उन दर्शकों के लिए है जो कृष्णमूर्ति के सूक्ष्म विचारों को अपनी भाषा में समझना चाहते हैं और आत्म‑अवलोकन के माध्यम से आंतरिक परिवर्तन की संभावना को गंभीरता से देखते हैं।
इस अंश में कृष्णमूर्ति यह मूल प्रश्न उठाते हैं कि क्या हम सचमुच “अज्ञात” से डरते हैं या वास्तव में उस “ज्ञात” से चिपके रहने के कारण डरते हैं जिसे हमने जीवन भर इकट्ठा किया है – परिवार, सुख, उपलब्धियाँ, संपत्ति और मनोवैज्ञानिक सुरक्षा की सारी संरचना। वे संकेत करते हैं कि मृत्यु का भय अक्सर किसी रहस्यमय परलोक का डर नहीं, बल्कि उस सबके अंत का डर है जिसे हम जानते हैं और जिससे हम गहरे जुड़े हुए हैं। इसी संदर्भ में वे कहते हैं कि विचार जब अज्ञात को “ज्ञात” के क्षेत्र में घसीटने की कोशिश करता है, तो वह कल्पना, ईश्वर और तरह‑तरह की मान्यताओं के रूप में मनोवैज्ञानिक सुरक्षा के काल्पनिक सहारे गढ़ लेता है।
वीडियो में एक प्रश्नकर्ता बाइबिल की पंक्ति “Father, I believe, help thou my disbelief” का उल्लेख करता है, जिस पर कृष्णमूर्ति प्रश्न उठाते हैं कि हम किसी भी पुस्तक, धर्मग्रंथ या परंपरा पर विश्वास क्यों करते हैं। वे दिखाते हैं कि असुरक्षा, अकेलापन, दुख और मृत्यु‑भय से भागने के लिए मन स्थायी सहारे की खोज में “विश्वास” रचता है, लेकिन उसी से मन बोझिल, पक्षपाती और विकृत हो जाता है, जिससे न तो स्पष्ट देख पाता है, न प्रेम कर पाता है। इसलिए वे सुझाते हैं कि भय की संपूर्ण प्रकृति को समझते हुए एक ऐसे मन की संभावना देखी जाए जिसमें किसी भी प्रकार का मनोवैज्ञानिक विश्वास न हो, और जो स्वतंत्र, प्रसन्न और विकृति रहित ढंग से कार्य कर सके।
अंतिम हिस्से में, एक अन्य प्रश्नकर्ता पूछता है कि इच्छाओं, विरोधाभासों और निरंतर बकबक करते मन के बावजूद चित्त को शांत कर के कैसे देखा जाए, क्या इसके लिए कोई “सिस्टम” या “मिथड” है। कृष्णमूर्ति बताते हैं कि किसी भी पद्धति, अनुशासन या दोहरावदार अभ्यास से मन यांत्रिक, नीरस और असंवेदनशील हो जाता है; सच्ची शांति किसी तकनीक का परिणाम नहीं, बल्कि इस बात की गहरी समझ से आती है कि मन इतना बिखरा और शोर से भरा हुआ क्यों है। वे श्रोताओं को आमंत्रित करते हैं कि वे मनोरंजन की तरह प्रवचन सुनने के बजाय गंभीर होकर अपने ही भय, विश्वास और विचार‑प्रवृत्ति की जांच करें, ताकि यहीं और अभी एक आंतरिक क्रांति संभव हो सके।
Jiddu Krishnamurti Hindi
Santa Monica Talk Hindi
Fear, Unknown and Belief
Mind without System
आत्म‑जागरूकता, ध्यान, स्व‑समझ
#JKrishnamurti #Hindi #Philosophy #Fear #Belief #Awareness
Доступные форматы для скачивания:
Скачать видео mp4
-
Информация по загрузке: