मेवाड़ का प्रसिद्ध गवरी नृत्य || गोमा का खेल || राजस्थानी गवरी || mewad ki Gavri || Gavri
Автор: Tara chand Gawariya
Загружено: 2025-08-10
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क्या है गवरी...
इतिहासकार श्री कृष्ण जुगनू बताते है कि गवरी राजस्थान का लोकनृत्य है जिस भील समाज के लोग करते है। गवरी के कलाकार शहर या गांव के किसी चौक में गोला बनाकर बीच में माताजी को स्थापित करने के साथ थाली - मांडल (ढोल) की थाप पर नृत्याभिनय करते है। ये परंपरा कई बरसों से चली आ रही है। मॉं गौरज्या (पार्वती) की भक्ति आराधना करने के लिए किया जाता है। इसमें तरह तरह के चमकीले कपड़े और कलरफुल मेकअप के साथ गोल बनाए गए चक्र में घुम-घुम के संवाद के साथ नृत्याभिनय करते है। मेवाड़ आंचल में ठंडी राखी से लेकर 40 दिन तक गवरी की ही धुन सुनाई देगी। सुबह से लेकर शाम तक होने वाले इस अनुष्ठान में कई तरह के खेल दिखाए जाते है। हर खेल में सामाजिक जागरूक करने का संदेश भी देते है जैसे – चोरी नही करना चाहिए उसका अंत बुरा होता है (गोमा के खेल में ), पेड़ को नही काटना चाहिए उससे क्या मुसीबत आ सकती है ( राजा-रानी,वरजू कांजरी खेल में ), जीव हत्या नही करनी चाहिए( कालूकिर के खेल में ), बहादुरी से संकट का सामना करना (भीलू राणा के खेल में मुगल के साथ लड़ाई ), खुद भी खुश रहो दूसरों को भी खुश रखो ( सेठजी के खेल में ), प्रेम का सुंदर चित्रण (कान्हा-गुजरी के खेल मे) नारीशक्ति और सम्मान (राजा-रानी)। इसके अलावा भी कई खेल होते है। एक गवरी में करीब 150 के करीब सदस्य होते है। सबसे खास बात ये है कि इसमें अभिनय करने वाले सभी सदस्य पुरूष ही होते है। उनमें से कुछ लोग महिला का किरदार भी निभाते है। 40 दिन के बाद गवरी का एक शाही सवारी के साथ जल में विसर्जन कर दिया जाता है।                
 
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