मरजाद दाई-ददा के /आधुनिक पीढ़ी म बदलत हमर सामाजिक ढांचा / चुचरु फदामा कोतवाल के कॉमेडी दुर्रे बांजरी
Автор: मया के बोली भाखा
Загружено: 2025-11-26
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राधा कृष्णा नाच पार्टी दुर्रे बंजारी की नवीन कौमिक जो आधारित है हमारे नई पीढ़ी के युवा साथियों और पूर्वजो के बनाये सामाजिक व्यवस्था पर
ये कहानी है आज की आधुनिक समाज की जो हमारे पूर्वजों द्वारा बनाये गये सामाजिक व्यवस्था/ढांचे को खोखली करती जा रही है। हमारे पूर्वजों द्वारा बनाये गये सामाजिक व्यवस्था में ना सिर्फ सामाजिक/धार्मिक मान्यता है बल्कि वैज्ञानिकता भी छुपी हुई है। आज इस बदलते वक्त के साथ अभिभावकों की भी जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि हमारे बच्चें अगर पढ़ाई कर रहा है या फिर कही जा रहा है तो हम उस पर अपना नियंत्रण बना कर रखे, अपने निगरानी में रखें, कोई भी राशि अगर हम खर्च करने के लिए दे रहे हैं तो उसका हिसाब भी ले। बच्चें में बचपन से ही संस्कार डालने के लिए हम स्वयं उनके सामने उदाहरण प्रस्तुत करने , क्योंकि एक छोटे बच्चें के लिए माँ-बाप सबसे बड़ी उदाहरण होती है। आज हम अगर अपने बच्चें की छोटी-छोटी बातों पर व्यवहार पर ध्यान देंगे तो निश्चित ही वह बच्चा बड़े होकर माँ-बाप का नाम रोशन करेंगे।
इस कौमिक के माध्यम से नाचा से जुड़े लोक कलाकार समाज में दिख रहे परिवर्तन या कहें माँ-बाप की पीड़ा को मंच के माध्यम से नया पीढ़ी में सुधार लाने के उद्देश्य से कौमिक की प्रस्तुतियां जारी रखें हुए हैं। ताकि समाज के सामने ऐसी असमाजिक घटना होने के बाद माँ-बाप की प्रतिष्ठा खराब न हो और समाज के सामने अपने बच्चें के द्वारा किये करतुर से शर्मनाक न होना पड़े जिसे ही हम छत्तीसगढ़ी में "मरजाद" कहते हैं। माँ-बाप की मान, मर्यादा और प्रतिष्ठा ही "मरजाद" है, हमारी नया पीढ़ी की जिम्मेदारी बन जाती है कि हम उस मरजाद को बनाकर रखे ताकि हमारे घर-परिवार के ऊपर हँसने का किसी को मौका ना मिले इसी का एक साझा प्रयास है यह कौमिक "मरजाद" दाई-ददा अउ समाज परिवार। हमारे लोक मंचीय प्रस्तुतियों का आजादी के समय से ही लोगों में जनजागरण लाना व समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने का एक सशक्त माध्यम है जिसे मनोरंजन के साथ बिना बोझिल के मंच पर प्रस्तुत किया जा रहा है। कहा जाता है जो हमारे समाज में दिखता है वही सिनेमा में दिखता है और जो सिनेमा में दिखता है उसे समाज अपनाते हैं अर्थात दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और सिनेमा की अगर कोई सबसे प्राथमिक इकाई है तो वो है किसी भी राज्य या प्रान्त की लोकनाट्य उसी का एक विशेषता है छत्तीसगढ़ का लोक नाट्य नाचा जिसे ग्रामीण कलाकार रिहर्सल के माध्यम से तैयार कर गाँव-गाँव में अपनी प्रस्तुतिकरण करते हैं।
आशु 88175 21766
+918889368637
aashu durre banjaari
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