जोधपुर का प्राचीन इतिहास - मंडोर
Автор: SMD Short 2005
Загружено: 2025-12-17
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मंडोर, मारवाड़ (जोधपुर) की प्राचीन राजधानी थी, जिसका इतिहास गुर्जर-प्रतिहार काल (6-14वीं शताब्दी) से जुड़ा है, जब यह प्रतिहारों का गढ़ था और बाद में दहेज में राठौड़ों को मिला, जो इसे अपनी राजधानी (1459 तक) बनाए रहे; यह रावण की पत्नी मंदोदरी का ससुराल भी माना जाता है, जहाँ आज भी रावण मंदिर और ऐतिहासिक देवल (छतरियां) मौजूद हैं, जो इसे एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और आध्यात्मिक स्थल बनाते हैं.
प्रमुख ऐतिहासिक पहलू
प्राचीन नाम और उत्पत्ति: मंडोर को प्राचीन काल में 'मंडोवर' या 'मांडव्यपुर' के नाम से जाना जाता था, जो मांडव्य ऋषि के नाम पर पड़ा.
गुर्जर-प्रतिहार काल: छठी शताब्दी में, मंडोर प्रतिहारों का केंद्र बना. प्रतिहार शासक राजिल्ला ने यहाँ एक दुर्ग बनवाया था.
राठौड़ शासन और राजधानी: 1395 में, प्रतिहार राजकुमारी का विवाह राठौड़ राजा राव चुंडा से हुआ, और मंडोर राठौड़ों को दहेज में मिला, जो इसे अपनी राजधानी (जोधपुर स्थानांतरित करने से पहले) बनाए रहे.
रावण से संबंध: पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण ने मंदोदरी से यहीं विवाह किया था, इसलिए इसे रावण का ससुराल माना जाता है.
मंडोर गार्डन और देवल (छतरियां)
शाही श्मशान: जोधपुर के राठौड़ महाराजाओं के लिए यह शाही श्मशान भूमि बन गया.
ऐतिहासिक देवल: यहाँ महाराजाओं और रानियों की याद में बने सुंदर देवल (छतरियां) हैं, जो प्रतिहार शैली में बने हैं और राठौड़ वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण हैं.
मुख्य आकर्षण: राव जोधा के बाद, मेहरानगढ़ किला राजधानी बना, लेकिन मंडोर अपने बगीचों, देवलों और रावण मंदिर के कारण एक महत्वपूर्ण विरासत स्थल बना रहा.
संक्षेप में, मंडोर प्राचीन मारवाड़ की राजधानी, प्रतिहारों और राठौड़ों का केंद्र, और रावण से जुड़े पौराणिक महत्व वाला एक ऐतिहासिक स्थल है, जो अपनी अद्भुत वास्तुकला और शांत वातावरण के लिए प्रसिद्ध है.
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