जब मां ज्वालाजी ने तोड़ा अकबर का अभिमान, आज भी रहस्य बना है उसका चढ़ाया छत्र
Автор: sachhiprerna official
Загружено: 2023-10-11
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तुर्क के अकबर ने ली माता की परीक्षा :
कहते हैं कि माता के उत्सव के दौरान हिमाचल के नादौन ग्राम निवासी ज्वालादेवी के एक भक्त ध्यानू हजारों यात्रियों के साथ माता के दरबार में दर्शन के लिए जा रहे थे इतनी बड़ी तादाद में यात्रियों को जाते देख अकबर के सिपाहियों ने चांदनी चौक दिल्ली में उन्हें रोक लिया और ध्यानू को पकड़कर अकबर के दरबार में पेश किया गया जब मां ज्वालाजी ने तोड़ा अकबर का अभिमान, आज भी रहस्य बना है उसका चढ़ाया छत्र
अकबर ने पूछा तुम इतने सारे लोगों को लेकर कहां जा रहे हो? ध्यानु ने हाथजोड़कर विनम्रता से उत्तर दिया कि हम ज्वालामाई के दर्शन के लिए जा रहे हैं मेरे साथ जो सभी लोग हैं वे सभी माता के भक्त हैं
यह सुनकर अकबर ने कहा यह ज्वालामाई कौन है और वहां जाने से क्या होगा? तब भक्त ध्यानू ने कहा कि वे संसार का जननी और जगत का पालन करने वाली है उनके स्थान पर बिना तेल और बाती के ज्वाला जलती रहती है
ऐसे में कुटिल अकबर ने कहा यदि तुम्हारी बंदकी पाक है और सचमुच में वह यकिन के काबिल है तो तुम्हारी इज्जत जरूर रखेगी लेकिन यदि वह यकीन के काबिल नहीं है तो फिर उसकी इबादत का क्या मतलब?
ऐसा कहकर अकबर ने कहा कि इम्तहान के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन काट देते हैं, तुम अपनी देवी से कहकर दोबारा जिंदा करवा लेना इस तरह घोड़े की गर्दन काट दी गई
ऐसे में ध्यानू ने अकबर से कहा मैं आप से एक माह तक घोड़े की गर्दन और धड़ को सुरक्षित रखने की प्रार्थना करता हूं अकबर ने ध्यानू की बात मान ली बादशाह से अनुमती लेकर ध्यानू मां के दरबार में जा बैठा स्नान, पूजन आदि करने के बाद रात भर जागरण किया प्रात: काल ध्यानू ने हाथ जोड़कर माता से प्रार्थना की और कहा हे मां अब मेरी लाज आपके ही हाथों में है कहते हैं कि अपने भक्त की लाज रखते हुए मां ने घोड़े को पुन: जिंदा कर दिया
यह देखकर अकबर हैरान रह गया तब उसने अपनी सेना बुलाई और खुद मंदिर की ओर चल पड़ा अकबर ने माता की परीक्षा लेने या अन्य किसी प्रकार की नियत से उस स्थान को क्षति पहुंचाने का प्रयास किया सबसे पहले उसने पूरे मंदिर में अपनी सेना से पानी डलवाया, लेकिन माता की ज्वाला नहीं बुझी
कहते हैं कि तब उसने एक नहर खुदवाकर पानी का रुख ज्वाला की ओर कर दिया लेकिन तब भी वह ज्वाला नहीं बुझी तब जाकर अकबर को यकीन हुआ और उसने वहां सवा मन सोने का छत्र चढ़ाया लेकिन माता ने इसे स्वीकार नहीं किया और वह छत्र गिरकर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया आप आज भी अकबर का चढ़ाया वह छत्र ज्वाला मंदिर में देख सकते हैं
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