मोहम्मद रफ़ी… जिनकी आवाज़ थी, हज़ार चेहरों की जान @BollywoodNewsnet
Автор: Bollywood Newsnet
Загружено: 2025-12-24
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24th December 2025
Mohammad Rafi… Whose Voice was the Life of a Thousand Faces
मोहम्मद रफ़ी… जिनकी आवाज़ थी, हज़ार चेहरों की जान
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दोस्तों... जय सिनेमा !
बॉलीवुड की बातों के साथ, मैं हूँ सय्यद आसिफ जाह…
24 दिसंबर 1924 को पंजाब के छोटे से गाँव कोटला सुल्तान सिंह में पैदा हुए एक लड़के ने ये नहीं सोचा होगा कि उसकी आवाज़ पूरी दुनिया के करोड़ों दिलों की धड़कन बन जाएगी। ये लड़का था मोहम्मद रफ़ी, जिसे प्यार से घर में “फीकू” कहा जाता था, और जिसे आज पूरी दुनिया “रफ़ी साहब” के नाम से जानती है। लगभग 40 साल के करियर में उन्होंने 25 हज़ार से ज़्यादा गाने रिकॉर्ड किए और हिंदुस्तानी फिल्म संगीत को ऐसी ऊंचाई दी जिसका मुकाबला आज भी मुश्किल है।
रफ़ी साहब के अब्बा हाजी अली मोहम्मद अमृतसर ज़िले के इस गाँव कोटला सुल्तान सिंह, से बाद में लाहौर चले गए, जहाँ उन्होंने नूर मोहल्ला, भट्टी गेट में एक नाई की दुकान खोली। छोटे रफ़ी की पहली “तालीम” किसी बड़े गुरु के पास नहीं, बल्कि गांव की गलियों में घूमने वाले एक फकीर से शुरू हुई, जिसकी आलाप और नक्शबंदी वो ध्यान से सुनते और फिर उसकी नकल करते थे।
उनकी singing का talent सबसे पहले बड़े भाई के दोस्त अहमद हमीद ने पहचान लिया। उन्होंने ही suggest किया कि इस बच्चे को proper training और बड़ी दुनिया में मौका मिलना चाहिए। इसके बाद रफ़ी ने उस्ताद छोटे ग़ुलाम अली ख़ाँ, उस्ताद अब्दुल वहीद ख़ाँ और फिर composer व music director फ़िरोज़ निज़ामी जैसे उस्तादों से classical तालीम ली।
करीब 15 साल की उम्र में लाहौर में एक public program में रफ़ी साहब को गाने का मौका मिला। किस्मत का खूबसूरत मोड़ यही था – audience में मशहूर composer श्याम सुंदर मौजूद थे, जो उनकी आवाज़ से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें सीधे बंबई (अब मुंबई) बुला लिया, films के लिए गाने का वादा किया।
पंजाबी film गुल बालोच (1944) के लिए उन्होंने अपना पहला गाना record किया।
गाँव की गोरी (1945), समाज को बदल डालो (1947) और जुगनू (1947) के लिए playback किया, जहाँ उनकी आवाज़ ने पहली बार बड़े परदे के ज़रिए पूरे हिंदुस्तान तक पहुंचना शुरू किया।
धीरे-धीरे music directors की नज़र इस young singer पर टिकने लगी, लेकिन असली explosion तब हुआ जब Naushad साहब ने उन्हें मौका दिया।
महान composer नौशाद ने बहुत जल्दी समझ लिया कि इस लड़के के गले में कुछ बेहद खास है। उन्होंने रफ़ी साहब को पहला solo दिया – “तेरा खिलौना टूटा बालक” (अनमोल घड़ी, 1946) – जिसने फिल्म में एक छोटे से बच्चे के दर्द को इतनी सच्चाई से आवाज़ दी कि लोग चौंक गए।
इसके बाद दिल्लगी (1949) का “इस दुनिया में ऐ दिलवालो” उनके करियर का milestone बन गया, जिसने साबित किया कि रफ़ी सिर्फ़ chorus या छोटे हिस्से के singer नहीं, बल्कि पूरी film को उठाने वाली आवाज़ हैं। यहीं से उनका नाम शीर्ष playback singers की list में स्थिर होने लगा।
रफ़ी साहब की सबसे बड़ी खूबी ये थी कि उनकी आवाज़ hero के चेहरे के साथ बदल जाती थी – वही एक गला, लेकिन हर actor पर अलग रंग।
एक ही गले से इतना wide spectrum निकलना rare gift था – classical से लेकर rock-and-roll inspired dance तक, qawwali से लेकर pure romantic ballad तक।
Royalty Payment के मुद्दे पर दोनों के बीच मतभेद हुआ और 1963 से 1967 के बीच उन्होंने साथ गाना बंद कर दिया। कहते हैं कि composers की बीच-बचाव और दोनों के mutual respect ने ये दूरी खत्म कराई और फिर उनकी जोड़ी वापस studio में लौटी।
रफ़ी साहब को 1965 में Padma Shri से सम्मानित किया गया। उन्होंने 6 Filmfare Awards जीते और “क्या हुआ तेरा वादा” (हम किसी से कम नहीं) के लिए National Film Award भी मिला। Sonu Nigam, उदित नारायण जैसे कई बाद के singers ने खुले तौर पर माना है कि रफ़ी उनकी सबसे बड़ी inspiration हैं।
उनका आख़िरी recorded song film आस-पास के लिए “तू कहीं आस-पास है दोस्त / शाम फिर क्यों उदास है दोस्त” माना जाता है, जो 1981 में release हुई। 31 जुलाई 1980 की रात उन्हें heart attack हुआ और 55 साल की उम्र में ये जादुई आवाज़ चुप हो गई। मुंबई के जुहू कब्रिस्तान में उनके जनाज़े में लगभग 10,000 से ज़्यादा लोग उमड़ पड़े और भारत सरकार ने दो दिन का official mourning घोषित किया – ये honor बहुत कम artists को मिला है।
आज, उनके जन्मदिन पर, जब पुराने गाने सुनने वाली नई generation भी YouTube और playlists पर “चुरा लिया है तुमने”, “अभी न जाओ छोड़कर”, “ये दुनिया अगर मिल भी जाए”, “चौदहवीं का चाँद हो” और “परदा है परदा” पर heart react करती है, तो समझ में आता है कि ये सिर्फ़ nostalgia नहीं, एक timeless quality है।
उनकी आवाज़ आज भी फिल्मों, radio, stage shows, और लोगों की personal यादों में breathe कर रही है। शायद इसी लिए लाखों fans के लिए वो सिर्फ़ singer नहीं, एक “farishta” जैसे लगते हैं – जो सुरों की शक्ल में दिलों तक पहुंचता है।
जय सिनेमा !
जय Bollywood …!
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