रामचरितमानस की अध्यात्मिक व्याख्या
Автор: Yatharth Geeta - ASHRAM
Загружено: 2018-06-20
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रामचरितमानस की अध्यात्मिक व्याख्या – ब्रह्मा, विष्णु महेश कौन है? उनकी अध्यात्मिक स्थिति क्या है?
Aastha TV – Episode 32
शास्त्र – पहले सभी शास्त्र मौखिक थे, शिष्य – परम्परा में कन्ठस्थ कराये जाते थे, पुस्तक के रूप में नहीं थे। आज से पाँच हजार वर्ष पूर्व वेदव्यास ने उसे लिपिबद्ध किया। चार वेद, भागवत, गीता इत्यादि महत्वपूर्ण ग्रन्थों का संकलन उन्हीं की कृति है। भौतिक एवं अध्यात्मिक ज्ञान को उन्होंने ही लिखा किन्तु उन्हें शास्त्र नहीं कहा। उन्होंने वेद को शास्त्र की संज्ञा नहीं दी किन्तो गीता की अनुशंसा में उन्होंने कहा –
गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यै: शास्त्र संग्रहै:।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनि:सृता।।
गीता भली प्रकार मनन करके हृदय में धारण करने योग्य है, जो पद्मनाभ भगवान के श्रीमुख से नि:सृत वाणी है; फिर अन्य शास्त्रों के विषय में सोचने या संग्रह की क्या आवश्यकता है? विश्व में अन्यत्र कहीं कुछ पाया जाता है तो उसने गीता से प्राप्त किया है। ‘एक ईश्वर ही सन्तान’ का विचार गीता से ही लिया गया है। इसे भली प्रकार जानने के लिए देखें – ‘यथार्थ गीता’।
अर्थार्थी, आर्त, जिज्ञासु तथा मुमुक्षुजन अर्थ – धर्म – स्वर्गोपम सुख तथा परमश्रेय की प्राप्ति के लिए देखें – ‘यथार्थ गीता’।
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