व्यवस्था का ब्राह्मण कौन? रक्षा वैज्ञानिक कवि Dr Sanjeev Kumar Joshi से 'एक समन्दर मेरे अंदर' पर बात
Автор: Sahitya Tak
Загружено: 2024-04-21
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मुझे सोने के पिंजरे में ला के मत बांधो
मुझे भाता है स्वच्छंद हवा में उड़ जाना
ऐशो आराम मयस्सर भी हों तो क्या होगा
जैसे एक शेर का पिंजरे में जा के गुर्राना
आज़ादी की लौ मुझमें भी है, है तुझमें भी
हां मुझे पसंद है हश्र ए भगत को पा जाना
मुझे उन मुर्दा जमीरों के जैसा मत आंको
जिन्हें आता है पिंजरों में जा के सुख पाना... 'उद्वेलित' नामक यह कविता डाॅ संजीव कुमार जोशी 'निश्छल' के कविता-संग्रह 'एक समन्दर मेरे अंदर' से ली गई है. पेशे से रक्षा वैज्ञानिक और दिल से कवि, डाॅ संजीव की कविताओं में समसामयिक विषयों, दर्शन और जीवन के मनोभाव शामिल हैं. आपके 35 से ज़्यादा शोध देश तथा विदेश के प्रतिष्ठित जर्नल्स में प्रकाशित हो चुके हैं. पदार्थ विज्ञान, रक्षा तकनीकी प्रबंधन एवं प्रशासन, आपदा एवं महामारी प्रबंधन और स्टार्ट अप मेंटरिंग के क्षेत्र में आपका महत्त्वपूर्ण योगदान है. साथ ही आपको रक्षा विज्ञान तथा आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में कई पुरस्कारों से भी नवाज़ा जा चुका है. वर्तमान में जोशी ब्रह्मोस एयरोस्पेस में डिप्टी सीईओ के पद पर कार्यरत हैं. आज साहित्य तक के 'शब्द-रथी' कार्यक्रम में डाॅ संजीव कुमार जोशी हमारे साथ मौजूद हैं. चर्चा के दौरान आपने जो बातें कहीं, उनमें खास हैं -
वैज्ञानिक और कवि होने के लिए चीज़ों को Observe करना ज़रूरी
विद्रोह से समाज का भला नहीं हो सकता
लोग भगत सिंह को अपने घर नहीं चाहते, पड़ोसी के घर चाहते हैं...
तो साहित्य तक पर डाॅ जोशी संग वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय की यह रोचक चर्चा आप भी सुनें. विशेष बात यह कि मंजुल प्रकाशन से प्रकाशित आधुनिक तकनीक से बने चित्र और कविताओं को सुना सकने वाले बारकोड वाले इस कविता संग्रह 'एक समन्दर मेरे अंदर' का मूल्य 999 रुपए है.
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