Old memories of bunkhal kanika mela 2010 || बूंखाल मेला ||PauriGarhwal , Uttrakhand
Автор: manoj kumar
Загружено: 2025-10-25
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🕉️ बूंखाल कालिंका मेला – एक इतिहास और बदलाव की कहानी
बूंखाल कालिंका मेला गढ़वाल क्षेत्र की आस्था, परंपरा और लोकसंस्कृति का प्रतीक है। यह मेला पौड़ी गढ़वाल जिले के ऊँचे पहाड़ों में स्थित कालिंका देवी मंदिर में सदियों से मनाया जा रहा है। माता कालिंका को गढ़वाल की कुलदेवी माना जाता है, और हर वर्ष हजारों श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए पहुँचते हैं।
🔸 पुराने समय की परंपरा (सन 2012 से पहले)
पहाड़ों में जब यह मेला शुरू हुआ, तब इसका स्वरूप पूरी तरह पारंपरिक और धार्मिक था। ग्रामीण लोग अपने गाँवों से कई दिनों की यात्रा करके बूंखाल पहुँचते थे।
उस समय मेले में बली प्रथा (पशु बलि) प्रचलित थी, जिसे माता को प्रसन्न करने और मनोकामना पूरी होने का प्रतीक माना जाता था। यह परंपरा सदियों पुरानी धार्मिक मान्यता का हिस्सा थी।
🔸 बदलाव का दौर
समय के साथ समाज में जागरूकता बढ़ी। शिक्षित युवाओं, सामाजिक संस्थाओं और स्थानीय प्रशासन ने इस विषय पर चर्चा शुरू की।
लोगों ने समझा कि आस्था का अर्थ हिंसा नहीं, बल्कि भक्ति और सद्भावना है।
लगभग 2012 के बाद, सामूहिक निर्णय से बली प्रथा बंद कर दी गई, और अब माता की पूजा फल, फूल और नारियल के साथ की जाती है।
🔸 आज का मेला
आज का बूंखाल कालिंका मेला भक्ति, संस्कृति और लोक कला का उत्सव बन चुका है।
यहाँ ढोल-दमाऊ की थाप पर लोकनृत्य होते हैं,
महिला मंगल दल भक्ति गीत गाते हैं,
और श्रद्धालु माता से शांति और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
मेला अब न केवल धार्मिक आयोजन है, बल्कि पर्यावरण और पशु संरक्षण का संदेश देने वाला पर्व भी बन चुका है।
ये मेला इस साल 6 दिसंबर को होने वाला है।
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