ब्रह्मास्त्र और नारायण अस्त्र से भी बड़ी शक्ति | Sant Shri Asharamji Bapu
Автор: Sant Shri Asharamji Bapu
Загружено: 2025-12-05
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इस सत्संग में पूज्य आशारामजी बापू ने साधकों को सत्संग, कुसंग और मंत्र जाप की गहराई समझाने के लिए ऐतिहासिक घटनाओं और शास्त्रों का सहारा लिया है।
1. कुंभ मेले का ऐतिहासिक प्रसंग (1781 ई.): बापूजी ने प्रयागराज के कुंभ मेले (1781) की एक घटना सुनाई। वहाँ गुणमंजरी देवी नामक एक तपस्विनी ने अपनी वीणा और गायन से ऐसा समाँ बाँधा कि माघ महीने में भी बादल घिर आए और बिजली चमकने लगी। बापूजी ने बताया कि यह केवल कला नहीं, बल्कि उनकी तपस्या का प्रभाव था।
2. देवकन्या (वैष्णवी देवी) का रहस्य: सत्संग में एक और चमत्कारिक घटना का वर्णन है। त्रिवेणी संगम में बहते हुए कमल के फूल से एक 7-8 साल की कन्या प्रकट हुई। वह कोई साधारण बालिका नहीं, बल्कि एक देवकन्या थी।
चमत्कार: जब उसे शंकराचार्य स्वामी सोमनाथ आचार्य के पास ले जाया गया, तो उसने शालिग्राम और चाँदी का कटोरा माँगा और देखते ही देखते हवा में ऊपर उठ गई।
साधकों के लिए सीख: उस देवकन्या ने बताया कि वह अपनी सिद्धियाँ इसलिए खो बैठी थी क्योंकि वह ऐसे लोगों के संपर्क में आ गई थी जिनका खान-पान और विचार शुद्ध नहीं थे (कुसंग और स्पर्श-दोष)। लेकिन कुंभ में संतों के दर्शन और पवित्र वातावरण से उसकी शक्ति पुनः जाग्रत हो गई।
बापूजी का संदेश: बापूजी ने समझाया कि साधक को अपने खान-पान और संगति (company) का बहुत ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि गलत संगति से अर्जित तपस्या भी क्षीण हो जाती है।
3. शरणागति सबसे बड़ा अस्त्र (महाभारत का उदाहरण): बापूजी ने महाभारत के युद्ध का उदाहरण देते हुए नारायण अस्त्र की बात की। जब अश्वत्थामा ने नारायण अस्त्र चलाया, तो पांडवों की सेना का बचना असंभव था। तब भगवान कृष्ण ने अर्जुन और सेना को हथियार डालने (समर्पण करने) को कहा।
सन्देश: भौतिक विनाशकारी शक्तियों (जैसे परमाणु बम) से बचने का उपाय केवल भौतिक बल नहीं, बल्कि ईश्वर के प्रति पूर्ण शरणागति है।
4. मंत्र जाप की 4 कक्षाएं (Classification of Japa): बापूजी ने साधकों को परखने के लिए जप की चार श्रेणियाँ बताईं:
फोर्थ क्लास (Fourth Class): जो आलस्य में, बिना नहाए-धोए या बिना मन के जप करता है ("लल्लू जप")।
थर्ड क्लास (Third Class): जो जप को केवल एक जिम्मेदारी या ड्यूटी समझकर निपटाता है।
सेकंड क्लास (Second Class): जिसमें श्रद्धा तो है, लेकिन मन में जल्दी उठने की हड़बड़ी रहती है।
फर्स्ट क्लास (First Class): वह साधक जो जप में इतना डूब जाए कि उसे देह की सुध न रहे (मद-भक्ति)। बापूजी कहते हैं कि ऐसे साधक की वाणी और उपस्थिति से ही वातावरण पवित्र हो जाता है।
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