एक दरबारी ने दी बीरबल को अनोखी टक्कर उस दिन बीरबल के दरबार में माझी कुछ हलचल
Автор: Mr ayansh Verma
Загружено: 2025-12-15
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एक दरबारी ने दी बीरबल को अनोखी टक्कर उस दिन बीरबल के दरबार में माझी कुछ हलचल #vidio #लोन #vidio। अकबर के दरबार में उस दिन कुछ अलग ही हलचल थी। संगमरमर के खंभों के बीच खड़ा एक नया दरबारी आत्मविश्वास से भरा हुआ था। उसने बीरबल की ओर देखकर कहा,
“जहाँपनाह, आज मैं बीरबल को बुद्धि की अनोखी टक्कर देना चाहता हूँ।”
दरबार में सन्नाटा छा गया। बीरबल हल्की मुस्कान के साथ आगे आए,
“कहिए, आपकी टक्कर कैसी है?”
दरबारी ने ज़मीन पर सोने का एक सिक्का रख दिया और बोला,
“इस सिक्के को बिना छुए, बिना किसी औज़ार के, और बिना किसी की मदद के—आपको इसे दरबार के बीचों-बीच पहुँचाना़ है। अगर आप असफल हुए, तो मान लिया जाएगा कि आपकी बुद्धि सिर्फ किस्सों तक सीमित है।”
अकबर की भौंहें तन गईं। शर्त कठिन थी।
बीरबल ने चारों ओर नज़र दौड़ाई—खंभे, दीवारें, दरबारी… और फिर कुछ सोचकर शांत हो गए।
समय बीतता गया। दरबारी के चेहरे पर जीत की चमक आने लगी।
तभी बीरबल ने अकबर से एक अजीब-सा सवाल पूछा,
“जहाँपनाह, क्या हर समस्या का हल वही होता है, जो आँखों से दिखे?”
अकबर चौंके, लेकिन कुछ कहने से पहले ही दरबारी हँस पड़ा।
“लगता है बीरबल हार मान चुके हैं।”
बीरबल ने ज़मीन पर रखे सिक्के की ओर देखा… और दरबार के एक कोने में रखी वस्तु पर उनकी नज़र ठहर गई।
उनके चेहरे पर वही रहस्यमयी मुस्कान लौट आई।
लेकिन बीरबल ने अभी कोई कदम नहीं उठाया था—
और दरबार यह नहीं जानता था कि अगला पल दरबारी की जीत लिखेगा…
या उसकी सबसे बड़ी हार की शुरुआत करेगा।
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