गोकुल का बो भयनक सच कृष्ण के आने से पहले गोकुल क्यों बन गया डरावना गांव ||
Автор: Indresh Bhakti path
Загружено: 2025-09-13
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गोकुल का बो भयनक सच कृष्ण के आने से पहले गोकुल क्यों बन गया डरावना गांव || #krishnakatha #hindugod
गोकुल गाँव में शाम ढल रही थी। सूरज की किरणें अब धुंधली हो चुकी थीं और हवा में एक अजीब सी चुप्पी छाई हुई थी। गाँव वालों के चेहरे पर डर साफ झलक रहा था। उनके घरों से मक्खन के सारे मटके रात भर में गायब हो गए थे। ये कोई मामूली चोरी नहीं थी, क्योंकि कोई भी निशान नहीं था, न किसी बाहरी आदमी का, न किसी जानवर का।
छोटे से कृष्ण एक पत्थर पर बैठे गाँव वालों को देख रहे थे। उनके दोस्त, जो उनके साथ खेलने वाले ग्वाले थे, घबराए हुए थे। "कृष्ण," एक दोस्त ने पूछा, "ये किसने किया होगा? क्या ये कंस का कोई नया राक्षस है?"
कृष्ण ने बस मुस्कुरा कर जवाब दिया, "धैर्य रखो, दोस्त। सच अक्सर सामने ही छुपा होता है।"
अगली रात, डर और बढ़ गया। न सिर्फ मक्खन के मटके फिर से गायब हो गए, बल्कि गायों का दूध उनके थनों में ही खट्टा हो गया, और गाँव का कुआँ सूख गया। गाँव वालों में अफरा-तफरी मच गई। वे नंद और यशोदा के पास जमा हो गए और कृष्ण को दोषी ठहराने लगे। उन्होंने कहा कि कृष्ण की शरारतें अब खतरनाक रूप ले रही हैं। यशोदा का दिल टूट गया, और उनका विश्वास भी डगमगा रहा था।
कृष्ण शांत रहे। उनकी आँखें क्षितिज पर टिकी हुई थीं, मानो वे कुछ ऐसा देख रहे हों जो किसी और को नहीं दिख रहा। उन्होंने धीरे से खुद से कहा, "जो चोरी करता है, वही रहस्य भी खोलता है।"
तीसरी रात, गाँव पर एक नया संकट आया। गायें बीमार पड़ने लगीं। वे दर्द से कराह रही थीं और कमजोर होती जा रही थीं। गाँव वाले पूरी तरह से हताश हो चुके थे। उन्होंने रात भर जागकर चोर को पकड़ने का फैसला किया।
लेकिन कृष्ण ने कुछ और ही किया। वे गाँव के बाहरी हिस्से में स्थित एक सुनसान झाड़ी में चले गए, जहाँ कोई नहीं जाता था। उनके दोस्त भी हैरान होकर उनके पीछे गए। "कृष्ण, हम यहाँ क्या कर रहे हैं?" एक ने पूछा। "गाँव को हमारी ज़रूरत है!"
"सच यहीं छुपा है," कृष्ण ने फुसफुसाते हुए कहा। "देखो।"
उन्होंने ज़मीन पर इशारा किया। वहाँ, घने जंगल में, छोटे-छोटे पैरों के निशान थे। ये किसी राक्षस के नहीं, बल्कि एक बच्चे के थे। उनके दोस्त चौंक गए।
"लेकिन... कौन?" वे फुसफुसाए।
कृष्ण ने कोई जवाब नहीं दिया। वे उन पैरों के निशान का पीछा करते हुए जंगल में और अंदर चले गए। निशान एक पुराने बरगद के पेड़ के पास खत्म हुए। पेड़ के खोखले तने में, उन्हें एक छोटी, काँपती हुई बच्ची मिली। वह पाँच साल से ज़्यादा की नहीं लग रही थी, और उसके हाथ में एक टूटा हुआ मिट्टी का मटका था। उसका चेहरा पीला था, और उसकी आँखें डर और भूख से भरी हुई थीं।
जैसे ही कृष्ण के दोस्त आगे बढ़े, पेड़ के पीछे से एक विशाल, काली परछाई बाहर आई। यह राक्षसी पूतना थी, जो भेस बदलकर आई थी। उसकी आँखें भयानक शक्ति से चमक रही थीं। "तुम बहुत चालाक हो, कृष्ण," उसने फुफकारा। "लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है। बच्ची मेरे वश में है। वह मेरी बात मानेगी, और जल्द ही, पूरा गोकुल सूख कर मर जाएगा!"
पूतना इस बच्ची का इस्तेमाल अपनी कठपुतली की तरह कर रही थी। वह बच्ची को एक जादुई potion पिला रही थी, जिसके कारण गाँव में यह अराजकता फैल रही थी। बच्ची मक्खन अपने लिए नहीं चुरा रही थी, बल्कि उसे एक काले जादू का हिस्सा बनाया गया था।
लेकिन कृष्ण एक कदम आगे थे। जैसे ही पूतना हमला करने को तैयार हुई, कृष्ण ने बस अपना हाथ बढ़ाकर बच्ची के माथे को छुआ। एक नरम, सुनहरी रोशनी उसे घेर लिया। potion का असर तुरंत खत्म हो गया, और बच्ची की आँखें साफ हो गईं। पूतना अपनी शक्ति छिन जाने पर गुस्से में चिल्लाई।
"तुमने प्रेम की शक्ति को कम आँका, पूतना," कृष्ण ने शांत लेकिन शक्तिशाली स्वर में कहा। "प्रेम किसी भी जहर को मिटा सकता है।"
गाँव वाले, जो शोर सुनकर वहाँ पहुँचे थे, उन्होंने सच देखा। उन्होंने डरी हुई बच्ची को देखा, और पूतना का असली रूप भी, जो अब कमजोर और बेनकाब हो चुका था। कृष्ण ने एक ही दिव्य gesture से राक्षसी को हरा दिया। उनकी जीत किसी हथियार से नहीं, बल्कि ज्ञान और करुणा से हुई थी। बच्ची को उसके घर लौटा दिया गया, गायें ठीक हो गईं, और कुआँ फिर से पानी से भर गया।
गाँव वाले अब शर्मिंदा थे। वे जल्दी ही दोष देने लगे थे, लेकिन सच को समझ नहीं पाए। सबसे बड़ा रहस्य मक्खन की चोरी नहीं था, बल्कि उनकी अपनी ही अज्ञानता थी। और सबसे बड़ा सस्पेंस उस सच को जानने में था, जो सबकी आँखों के सामने छुपा था, और जिसे केवल कृष्ण ही देख सकते थे।
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