Son of Mallah Mukesh Sahni की पूरी कहानी | Biography in Hindi | BJP का नया स्टार
Автор: hamaar junction
Загружено: 2022-01-20
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उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2022 का बिगुल बज चुका है. सभी सियासी दल अपना चुनावी गणित बनाने में लग गए हैं. समाजवादी पार्टी, हो या रालोद, कांग्रेस, बसपा और भाजपा के बाद निषाद पार्टी सभी ने अपने प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर दिया है. निषाद पार्टी 15 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी. बीजेपी के प्रेदश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और चुनाव सह प्रभारी अनुराग ठाकुर से मुलाकात के बाद निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने बताया कि उन्हें गठबंधन में 15 सीटें मिली है.
कभी एक्टर बनने के लिए घर छोड़कर मुंबई जाने वाले मुकेश सहनी आज बिहार सरकार में मंत्री बने हैं. हाल ही के उप में विधानसभा चुनावो की अगर बता करें तो NDA का हिस्सा और बिहार सरकार में मंत्री मुकेश सहनी उत्तर प्रदेश में 165 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं। उनका राजनीतिक सफर की शुरुआत ज्यादा पुरानी नहीं है लेकिन दिलचस्प जरूर है.,...
कहा जाता है कि मुकेश सहनी ने पैसों के दम पर बिहार की राजनीति में एंट्री मारी थी. 2013 की एक सुबह बिहार में लोगों ने अपने हाथों में अखबार उठाया तो उनका सामना 'सन ऑफ मल्लाह- मुकेश सहनी' के चेहरे से हुआ. यह ऐसा नाम था जिसके बारे में उन दिनों लोग कम ही जानते थे. उस विज्ञापन के बाद अखबारों में मुकेश का एक और विज्ञापन छपा जिसमें उनका मोबाइल नंबर भी शेयर किया गया था. इसके बाद अखबारों, सोशल मीडिया और बिहार की जनता के बीच 'सन ऑफ मल्लाह' का बोलबाला बढ़ता चला गया.
मुकेश सहनी ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले महागठंधन का साथ छोड़ दिया था. उन्होंने तेजस्वी यादव पर पीठ में छूरा भोंकने का आरोप लगाते हुए कम सीटें देने की बात कही थी. महागठबंधन की प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनकी पार्टी ने हंगामा भी किया थी. बाद में वह एनडीए के साथ आ गए जिसके बाद बीजेपी ने अपने खाते से उन्हें 11 सीटें दीं और चार सीटों पर वीआईपी के उम्मीदवारों को जीत भी मिली.
19 साल की उम्र में मुकेश घर से भागकर कुछ बड़ा काम करने का सपना लेकर मुंबई चले गए थे. शुरुआत में मुकेश ने एक सेल्समैन की नौकरी भी की. इसी दौरान मुकेश के दिमाग में फिल्मों, टीवी सीरियल्स और शो के सेट बनाने के बिजनेस का आइडिया आया. मुकेश ने जब इस फील्ड में मेहनत की तो किस्मत ने भी उनकी मदद की.
अपनी मेहनत के दम पर मुकेश ने महज कुछ ही समय में खूब नाम और पैसा कमाया. जिसके बाद उन्होंने राजनीति में हाथ आजमाने का निश्चिय किया.
फिर 2019 के लोकसभा चुनावों की घोषणा से कुछ महीने पहले ही नवंबर 2018 में अपनी अलग पार्टी की घोषणा की थी. राजनीति में वीआईपी तरीके से एंट्री लेने वाले मुकेश ने अपनी पार्टी का नाम विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) रखा. मुकेश की पार्टी का चुनाव चिन्ह भी उनकी जाति के पेशे से काफी हद तक मेल खाता है. जी हां, पानी में तैरती नाव ही वीआईपी का चुनाव चिन्ह है.
2019 के चुनावों में पीएम मोदी के 'चाय पर चर्चा' की तरह ही मुकेश ने 'माछ पर चर्चा' कर सुर्खियां बटोरी थीं. उन दिनों मुकेश का नारा हुआ करता था 'माछ भात खाएंगे महागठबंधन को जिताएंगे'. 2019 में मुकेश ने खगड़िया लोकसभी सीट से किस्मत आजमाई थी लेकिन बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था.
राजनीति में भले ही मुकेश सहनी की पहचान 2014 के लोकसभा चुनावों में बनी हो लेकिन सामाजिक जीवन में मुकेश सहनी ने 2010 में ही एंट्री कर ली थी. 2010 में मुकेश ने बिहार में साहनी समाज कल्याण संस्थान की स्थापना की थी. उन्होंने अपने दो ऑफिस भी खोले थे, एक दरभंगा में और दूसरा पटना में. इसका इस्तेमाल करते हुए, उन्होंने अपने समाज के लोगों को एकजुट करने और युवाओं को बेहतर शिक्षा का मौका दिया. 2015 में मुकेश ने निषाद विकास संघ की स्थापना की. यह संगठन अपने समाज के लोगों को इकट्ठा करने के लिए जिलेवार काम करता है.
निषाद नेता के तौर पर मुकेश सहनी की पहचान तब सामने आई जब साल 2015 के विधानसभा चुनावों में मुकेश सहनी की राजनीतिक ताकत को पहली बार बड़ी पहचान मिली. उस वक्त उनका नाम एनडीए के स्टार प्रचारकों की लिस्ट में शामिल था. बीजेपी को भरोसा था कि मुकेश सहनी 'सन ऑफ मल्लाह' की वजह से एनडीए को मल्लाहों का वोट जरूर मिलेगा. लालू-नीतीश की एकजुटता से घबराई बीजेपी को मुकेश से काफी आस थी. हालांकि चुनाव परिणाम एनडीए के पक्ष में नहीं आए जिसके बाद एनडीए से मुकेश की दूरियां बढ़ने लगीं. जिसके बाद उन्होंने एकबार फिर मुंबई पर फोकस किया लेकिन लोकसभा चुनाव के नजदीक आते ही फिर से बिहार में वापसी कर ली.
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