श्री कालिका पुराण का काला सच||Achal Siddharth||
Автор: JAGO PANCH
Загружено: 2025-04-18
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श्री कालिका पुराण का काला सच||Achal Siddharth||
श्री कालिका पुराण पुस्तक पेज नंबर 21 के कुछ अंश प्रेषित हैं क्या ये अंश किसी मां के गुणगान करने वाली पुस्तक में शोभा देते हैं।
कथन का अभिप्राय यह है कि मलय मारुत भी उसके श्वासानिल के समाने हेय प्रतीत हो रही थी। पूर्णचन्द्र के समान भौंहों के चिह्न से लक्षित उसके मुख को देखकर कामदेव ने उसके मुख और चन्द्र में किसी प्रकार के भेद का निश्चय नहीं किया था। उस रति के दोनों स्तनों का जोड़ा सुनहरी कमल की कलिका के जोड़े के ही समान था। उन स्तनों के ऊपर जो कृष्ण वर्ण से युक्त चूचक थे (काली घुंडियाँ) वे ऐसी प्रतीत हो रही थीं मानों कमल की कलिकाओं पर भ्रमर बैठे हुए रसपान कर रहे हों।
अत्यन्त दृढ़ (कठोर) पीन (स्थूल) और उन्नत स्तनों के मध्य भाग से नीचे की ओर जाती हुई नाभि पर्यन्त रहने वाली, तन्वी सुन्दर, आयंत और शुभ रसों की पंक्ति को कामदेव ने भ्रमरों की पंक्ति से संम्भृत (सयुत) पुष्प धनुष की ज्या (डोरी) को भी विस्मृत कर दिया था क्योंकि उसका ग्रहण करके इसको ही देखता है। पुनः उसके ही सुन्दर स्वरूप का वर्णन करते हुए कहते हैं कि उसकी गम्भीर नाभि के रन्ध्र (छिद्र) के अन्दर चारों ओर त्वचा से वह आवृत थी। उसके मुख कमल पर जो दो नेत्रों को जोड़ा था वह ऐसी प्रतीत होता था मानों थोड़ी लालिमा से युक्त कमल हो।
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