श्रीमद भगवत गीता के 18 अध्याय उनके 18 श्लोक भाग 1
Автор: Aacharya Sunil Dutt Gautam
Загружено: 2021-12-28
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श्रीमद भगवत गीता के 18 अध्याय उनके 18 श्लोक भाग 1
सेंट विवेकानंद मिलेनियम स्कूल
एचएमटी टाउनशिप, पिंजौर ,
गीता के 18 श्लोक
आचार्य सुनील दत्त गौतम
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे, समवेता युयुत्सवः।
मामकाः पाण्डवा श्चैव, किम कुर्वत सञ्जय।।1.1।।
कर्मण्ये वाधिकार स्ते, मा फलेषु कदाचन।
मा कर्म फल हेतुर् भूर,
मा ते संगो–स्त्व कर्मणि।।2.47।।
कर्मणैव हि संसिद्धि, मास्थिता जनकादयः।
लोक संग्रह मेवापि, संपश्यन् कर्तु मर्हसि।।3.20।।
एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म, पूर्वै रपि मुमुक्षुभिः।
कुरु कर्मैव तस्मात्त्वं, पूर्वैः पूर्व तरं कृतम्।।4.15।।
ब्रह्मण्या धाय कर्माणि, सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः।
लिप्यते न स पापेन, पद्म पत्र मिवाम्भसा।।5.10।।
आत्मौपम्येन सर्वत्र, समं पश्यति योऽर्जुन।
सुखं वा यदि वा दुःखं, सः योगी परमो मतः।।6.32।।
मत्तः पर तरं नान्यत् , किञ्चि दस्ति धनञ्जय।
मयि सर्व मिदं प्रोतं, सूत्रे मणि गणा इव।।7.7।।
तस्मात् सर्वेषु कालेषु मा मनु स्मर युध्य च।
मय्यर् पित मनो बुद्धिर् मा मे वैष्यस्य संशयम्।।8.7।।
मया ध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचरा चरम्।
हेतु नानेन कौन्तेय जगद् विपरि वर्तते।।9.10।।
महर्षयः सप्त पूर्वे, चत्वारो मनवस् तथा।
मद् भावा मानसा, जाता येषां लोक इमाः प्रजाः।।10.6।।
दिवि सूर्य सहस्रस्य ,भवे द्युग पदुत्थिता।
यदि भाः सदृशी सा स्याद् , भासस् तस्य महात्मनः।।11.12।।
संनियम्ये न्द्रिय ग्रामं, सर्वत्र सम बुद्धयः।
ते प्राप्नुवन्ति मामेव, सर्व भूत हिते रताः।।12.4।।
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