आसान भाषा में जाने छत्तीसगढ़ का इतिहास
Автор: Aarti sahu
Загружено: 2025-11-03
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इसके बारे में
राजधानी: रायपुर (कार्यकारी शाखा)
स्थापना की तारीख: 1 नवंबर 2000
गवर्नर: रामेन डेका
आइएसओ 3166-2: IN-CT
छत्तीसगढ़ प्राचीनकाल के दक्षिण कोशल का एक हिस्सा है और दक्षिण कौशल से पहले दंडकारण्य गोंड लोगों का प्राचीन निवास स्थान भी था और इसका इतिहास पौराणिक काल तक पीछे की ओर चला जाता है। पौराणिक काल का 'कोशल' प्रदेश, कालान्तर में 'उत्तर कोशल' और 'दक्षिण कोशल' नाम से दो भागों में विभक्त हो गया था इसी का 'दक्षिण कोशल' वर्तमान छत्तीसगढ़ कहलाता है। इस क्षेत्र के महानदी (जिसका नाम उस काल में 'चित्रोत्पला' था) का मत्स्य पुराण[क], महाभारत[ख] के भीष्म पर्व तथा ब्रह्म पुराण[ग] के भारतवर्ष वर्णन प्रकरण में उल्लेख है। वाल्मीकि रामायण में भी छत्तीसगढ़ के बीहड़ वनों तथा महानदी का स्पष्ट विवरण है। स्थित सिहावा पर्वत के आश्रम में निवास करने वाले श्रृंगी ऋषि ने ही अयोध्या में राजा दशरथ के यहाँ पुत्र्येष्टि यज्ञ करवाया था जिससे कि तीनों भाइयों सहित भगवान श्री राम का पृथ्वी पर अवतार हुआ। राम के काल में यहाँ के वनों में ऋषि-मुनि-तपस्वी आश्रम बना कर निवास करते थे और अपने वनवास की अवधि में राम यहाँ आये थे।
इतिहास में इसके प्राचीनतम उल्लेख सन 639 ई० में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्मवेनसांग के यात्रा विवरण में मिलते हैं। उनकी यात्रा विवरण में लिखा है कि दक्षिण-कौसल की राजधानी सिरपुर थी। बौद्ध धर्म की महायान शाखा के संस्थापक बोधिसत्व नागार्जुन का आश्रम सिरपुर (श्रीपुर) में ही था। इस समय छत्तीसगढ़ पर सातवाहन वंश की एक शाखा का शासन था। महाकवि कालिदास का जन्म भी छत्तीसगढ़ में हुआ माना जाता है। प्राचीन काल में दक्षिण-कौसल के नाम से प्रसिद्ध इस प्रदेश में मौर्यों, सातवाहनों, वकाटकों, गुप्तों, राजर्षितुल्य कुल, शरभपुरीय वंशों, सोमवंशियों, नल वंशियों, कलचुरियों का शासन था। छत्तीसगढ़ में क्षेत्रीय राजवंशो का शासन भी कई जगहों पर मौजूद था। क्षेत्रिय राजवंशों में प्रमुख थे: बस्तर के नल और नाग वंश, कांकेर के सोमवंशी और कवर्धा के फणि-नाग वंशी। बिलासपुर जिले के पास स्थित कवर्धा रियासत में चौरा नाम का एक मंदिर है जिसे लोग मंडवा-महल भी कहा जाता है। इस मंदिर में सन् 1349 ई. का एक शिलालेख है जिसमें नाग वंश के राजाओं की वंशावली दी गयी है। नाग वंश के राजा रामचन्द्र ने यह लेख खुदवाया था। इस वंश के प्रथम राजा अहिराज कहे जाते हैं। भोरमदेव के क्षेत्र पर इस नागवंश का राजत्व 14 वीं सदी तक कायम रहा। गोंडवाना उदय 1200 ईस्वी में हुआ।और तब कल्चुरी राजाओं ने गोंड राजाओं की प्रधानता स्वीकार कर ली।
छत्तीसगढ़ में गोंड अनुसूचित जनजाति में आते हैं। किंतु इनका क्षेत्रीय दृष्टिकोण से क्षत्रिय वर्ण है।।[5]
1200 ईस्वी में कलचुरी राजाओं के पतन के बाद छत्तीसगढ़ गोंडवाना साम्राज्य का भग था। 1200 ईस्वी से लेकर 1600 ईस्वी तक यहां गोंड राजाओं का राज रहा। उसके बाद 1650- 1818छत्तीसगढ़ मराठा सामंती राज्य के अंतर्गत आता था। फिर मराठों ने ईस्ट इंडिया कंपनी से संधि कर ली। इस तरह यह भाग ब्रिटिश राज्य के अंदर आ गया। [6]
आजादी से पहले यहां 14 रियासतें थी।
*बस्तर सबसे बड़ी रियासत थी और शक्ति सबसे छोटी रियासत थी।
1)बस्तर रियासत:
वंश:काकतीय वंश (दक्षिण भारत)
क्षेत्र:33,830 वर्ग किलोमीटर।
2)सरगुजा रियासत:
वंश: रक्सेल
क्षेत्र:15,682 वर्ग किलोमीटर।
3) जशपुर रियासत:
वंश:चौहान
क्षेत्र:5,045 वर्ग किलोमीटर।
4) कोरिया रियासत:
वंश:चौहान
क्षेत्र:4,224 वर्ग किलोमीटर।
5)रायगढ़ रियासत:
वंश:राजगोंड
क्षेत्र:3,849 वर्ग किलोमीटर
6) कांकेर रियासत:
वंश: चन्द्रा
क्षेत्र:3,706 वर्ग किलोमीटर।
7)खैरागढ़ रियायत:
वंश:नागवंशी
क्षेत्र:2,411 वर्ग किलोमीटर।
8)नंदगांव(राजनंदगांव) रियासत:
वंश:बैरागी ब्राह्मण
क्षेत्र:2,225 वर्ग किलोमीटर।
9) चांगभाकर रिसायत:
वंश:चौहान
क्षेत्र:2,223 वर्ग किलोमीटर।
10) कवर्धा रियासत:
वंश:राजगोंड
क्षेत्र:2,067 वर्ग किलोमीटर।
11)उदयपुर रियासत:
वंश:रक्सेल
क्षेत्र:2,741 वर्ग किलोमीटर।
12)सारंगढ़ रियासत:
वंश:राजगोंड
क्षेत्र:1,399 वर्ग किलोमीटर।
13) छुईखदान रियासत:
वंश:बैरागी ब्राह्मण
क्षेत्र:451 वर्ग किलोमीटर।
14) सक्ती रियायत:
वंश:राजगोंड
क्षेत्र:357 वर्ग किलोमीटर।
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