बेल्हा देवी शक्तिपीठ मंदिर- यहाँ गिरा था माता सती की कमर का हिस्सा | उत्तरप्रदेश | 4K | दर्शन 🙏
Автор: Tilak
Загружено: 2023-03-29
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श्रेय:
संगीत एवम रिकॉर्डिंग - सूर्य राजकमल
लेखक - रमन द्विवेदी
भक्तों नमस्कार! प्रणाम! और हार्दिक अभिनन्दन! भक्तों देश के हर कोने में देवी मां के मंदिर, शक्तिपीठ और तीर्थस्थल पाए जाते हैं। लगभग सभी मंदिरों की अपनी अलग महत्ता और अपनी अलग प्रसिद्धि है। अधिकांश मंदिर अपनी अलग ही विशेषताओं व चमत्कारों के लिए विख्यात हैं। अपने कार्यक्रम दर्शन के माध्यम से आज हम आपको एक ऐसे ही ऐतिहासिक चमत्कारी मंदिर का दर्शन करवाने जा रहे हैं। यहाँ प्रायः कोई न कोई चमत्कारिक घटना होती ही रहती है। भक्तों हम बात कर रहे हैं सुप्रसिद्ध बेल्हा देवी मंदिर की !
मंदिर के बारे में:
भक्तों बेल्हा देवी का ऐतिहासिक मंदिर उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में है। प्रयागराज से इस मंदिर की दूरी लगभग 65 किलोमीटर तथा लखनऊ से यह 175 किलोमीटर है। यह मंदिर प्रयागराज –अयोध्या मार्ग में सई नदी के तट पर स्थित ये मंदिर स्थानीय लोगों की आस्था और विश्वास का केंद्र हैं। यहां दूर दूर से लोग अपने मनोरथ लेकर आते हैं, कहा जाता है कि मां बेल्हादेवी धाम में सच्चे मन से आये भक्तों का मनोरथ अवश्य पूर्ण होते हैं। यहां कुछ लोग तो नियमित रूप से मां के दर्शन को पहुंचते हैं।
शक्तिपीठों की पौराणिक कथा:
भक्तों पौराणिक कथा के अनुसार- दक्ष प्रजापति माता सती के पिता और भगवान शिव के ससुर थे, एक बार राजा दक्ष ने बहुत बड़ा यज्ञ किया। जिसमे उन्होंने शिव और सती को नही बुलाया क्योंकि वो भगवान शिव को अपने बराबर का नही समझते थे। यह बात माता सती को काफी बुरी लगी और वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गईं। यज्ञशाला में भगवान शिव का काफी अपमान किया गया, जिसे सती सहन न कर सकी और वह हवन कुण्ड में कूद गयीं। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वो आए और माता सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे। जिससे सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। ऐसी स्थिति में भगवान शिव को शान्त करने की दृष्टि से श्री नारायण ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को काअ दिया। सती के कटे हुए शरीर के अंश इक्यावन स्थानों पर गिरे। ये इक्यावन स्थान शक्ति के इक्यावन महापीठों के रूप में प्रतिष्ठित हुए। कहते हैं कि बेल्हा देवी के स्थान पर माता सती का कमर वाला हिस्सा (बेला) गिरा था।
बेल्हा देवी और भगवान राम से कथाएँ:
भक्तों प्रतापगढ़ के माता बेल्हा देवी मंदिर को लेकर बेला देवी मंदिर के संबंध में कुछ पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। जिनमें से एक कथा के अनुसार - भगवान् श्रीराम द्वारा स्थापित बताया जाता है। त्रेता युग में जब भगवान राम पिता महाराज दशरथ की आज्ञा मानकर वन जा रहे थे तब उन्होंने सई नदी पार किये और यहां आदिशक्ति माँ जगदम्बा का पूजन किया। और माँ जगत्जननी से अपना संकल्प पूर्ण करने हेतु आत्म शक्ति और ऊर्जा ली थी। तदन्तर चित्रकूट से अयोध्या लौटते समय भरत जी भी यहीं रुके और माँ आदि शक्ति की पूजा अर्चना की और अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करने हेतु माँ से आशीर्वाद माँगा था। अर्थात बेल्हा देवी पूजा अर्चना भगवान राम ने भी की थी और उनके अनुज भरत ने भी की थी। तभी से यह स्थान अस्तित्व में आया। इस घटना का उल्लेख करता हुआ एक शिलालेख भी है
भक्तों एक दूसरी कथा के अनुसार- जब भगवान श्री राम वनवास के लिए जा रहे थे तब सई नदी पार करने के बाद उन्होंने कुछ समय नदी के पास के जंगल में व्यतीत किया था। इसी निवास काल के दौरान श्री राम सई नदी में स्नान करने के पश्चात, वहां अपने निवास के दिनों की गणना करने के उद्देश्य से, नदी किनारे पड़े हुए पत्थरों को उठाते और एक के ऊपर एक रख दिया करते थे। कहा जाता है भगवान् राम के यहाँ से चले जाने के बाद उनके द्वारा नदी किनारे रखे गए पत्थरों से सुगन्धित पुष्प देने वाले बेला के पौधों का जन्म हुआ। जिनके सुगंध से वहां के आसपास का वातावरण सुगन्धित हो उठा। इसलिए ये स्थान बेला के नाम से प्रसिद्ध हो गया। और यहाँ बना माता का मंदिर बेल्हा देवी मंदिर कहलाने लगा।
मंदिर का इतिहास:
भक्तों बेल्हा देवी मंदिर को लेकर कुछ इतिहासकार प्रोफेसर पीयूषकांत शर्मा का कहना है कि यहां चहमान यानि चौहान वंश के राजा पृथ्वीराज चौहान की बेटी बेला का विवाह इसी क्षेत्र के ब्रह्मा नामक एक युवक से हुआ था। लेकिन बेला की विदाई के दिन ही ब्रह्मा की मृत्य हो गयी थी, इस दुःख को बेला सहन नहीं कर पाई। जिसके कारण उसने सई नदी में स्वयं को सती कर लिया। इसलिए इस स्थान को सतीस्थल के नाम से भी जाने लगा। बेला शहर का नाम माँ बेल्हा देवी से ही लिया गया है। समय के साथ-साथ बेल्हा माई का यह स्थान मंदिर के रूप में बदल गया। जिसका पुनरुद्धार कर अवध के राजा प्रताप बहादुर सिंह ने वर्ष 1811 से 1815 की अवधी में बेल्हा देवी के वर्तमान मंदिर का निर्माण करवा दिया था।
बेल्हा देवी का नामकरण:
भक्तों शक्ति पीठ का दर्जा प्राप्त माता बेल्हा देवी धाम का निर्माण इस स्थान पर माता सती के कमर का हिस्सा गिरा था। इस हिस्से को बेला कहा जाता है। इसी के चलते इस स्थान का नाम बेला पड़ा। और यहाँ इस स्थान में विराजमान देवी को बेला देवी कहा जाने लगा। लेकिन बेला का जन भाषा अवधी में बेल्हा हो गया। और कालांतर यह शहर भी बेल्हा नाम जाना जाने लगा।
सई नदी का महत्त्व:
भक्तों भगवान श्रीराम की वनवास यात्रा में उत्तर प्रदेश की जिन पाँच प्रमुख नदियों का जिक्र रामचरित मानस में है, उनमें से एक प्रतापगढ़ की सई नदी का नाम भी है। राम चरित मानस में भी गोस्वामी तुलसीदास ने इसका स्पष्ट उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा है कि ‘सई तीर बसि चले बिहाने, श्रृंग्वेरपुर पहुंचे नियराने।‘ यहीं पर भरत से उनका मिलाप हुआ था।
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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