Chavand में जहां वीर शिरोमणि Maharana Pratap का अंतिम संस्कार हुआ देखिए उस जगह का Drone Aerial View
Автор: Tara chand Gawariya
Загружено: 2025-05-13
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वीर शिरोमणि श्री महाराणा प्रताप के जीवन के अंतिम 12 वर्ष यानी 1585 ईस्वी से लेकर 1597 ईस्वी तक का समय बिना किसी युद्ध के शांति के साथ गुजरा था।
जी हाँ, महाराणा प्रताप ने 1585 ईस्वी तक मुगलों से युद्ध करके लगभग पूरे मेवाड़ को वापस अपने अधिकार में ले लिया था।
इसके बाद 1585 ईस्वी में महाराणा प्रताप ने चावंड को अपनी राजधानी बना लिया और अपनी अंतिम साँस तक यहीं रहे।
महाराणा प्रताप की छतरी (समाधि स्थल)
19 जनवरी 1597 को माघ शुक्ल एकादशी के दिन धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते समय अंदरुनी चोट लग जाने की वजह से महाराणा प्रताप का देहांत हो गया।
चावंड के महल से लगभग दो किलोमीटर दूर बन्डोली गाँव में तीन नदियों के संगम स्थल पर केजड़ झील के बीच में महाराणा प्रताप का अंतिम संस्कार किया गया।
केजड़ झील के बीच में दाह संस्कार स्थल पर महाराणा अमर सिंह ने 8 खम्भों की छतरी का निर्माण करवाया।
महाराणा प्रताप की समाधि के रूप में मौजूद यह छतरी आज भी लोगों की श्रद्धा का केंद्र बनी हुई है। वर्तमान में इस जगह को प्रताप सागर त्रिवेणी संगम के नाम से जाना जाता है।
केजड़ झील के बीचों बीच एक टापू पर एक बड़ा बगीचा बना हुआ है जिसके बीच में महाराणा प्रताप की छतरी बनी हुई है। बगीचे के किनारों पर सात और छतरियाँ बनी हुई है।
समाधि स्थल के मुख्य द्वार से टापू पर छतरी तक जाने के लिए एक पुल बना हुआ है जिसे महाराणा प्रताप सेतु कहा जाता है। इस पुल पर पैदल चलकर महाराणा प्रताप की छतरी तक जाना होता है।
कंटेंट - वीकिपीडिया
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