कहानी — “सच्चाई का बीज” Bed-Time Story
Автор: Sunlike- Hindi Stories
Загружено: 2025-12-25
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कहानी — “सच्चाई का बीज”
भारत के एक छोटे से गाँव सरवानीपुर में एक ईमानदार किसान रहता था — रामदयाल। उसका घर मिट्टी का था, छप्पर का छत था, और खेत बहुत छोटा-सा। पैसे कम थे, लेकिन दिल बहुत बड़ा। गाँव में चाहे किसी की गाय खो जाए, झगड़ा हो जाए या किसी के घर में राशन खत्म — सबसे पहले रामदयाल मदद के लिए पहुँच जाता।
वो हमेशा कहा करता था—
“इंसान गरीब पैसों से नहीं होता… सोच से होता है।”
उसका एक बेटा था — मोहन, जो आठवीं कक्षा में पढ़ता था। रामदयाल सपने देखता था कि एक दिन उसका बेटा पढ़-लिख कर बड़ा आदमी बने। लेकिन हालात आसान नहीं थे। खेती से मुश्किल से गुज़ारा चलता था।
गाँव के पास ही एक बड़ा ज़मींदार रहता था — तिलकराम। पैसों का घमंड और ताकत का नशा उसके सिर पर हमेशा चढ़ा रहता। गाँव वाले उससे डरते थे। लेकिन रामदयाल कभी गलत बात पर सहमत नहीं होता।
और यही बात तिलकराम को चुभती रहती…
🌧️ तूफ़ान और मुसीबत
एक साल बारिश बहुत कम हुई। खेत सूखने लगे। किसानों की फसलें बर्बाद होने लगीं। गाँव वाले परेशान थे।
तभी अचानक एक दिन तेज़ तूफ़ान आया। बिजली कड़की, पेड़ गिरे, कुछ घर टूट गए। सबसे बड़ा नुक़सान हुआ — नहर का बाँध टूट गया और गाँव के खेतों में पानी भर गया।
सभी किसान अपनी-अपनी फसल बचाने भागे।
रामदयाल भी अपने बेटे मोहन के साथ खेत पहुँचा — खेत पानी में डूब चुका था।
मोहन की आँखों में आँसू आ गए—
“बाबा… हमारी साल भर की मेहनत चली गई…”
रामदयाल ने उसके कंधे पर हाथ रखा—
“मेहनत कभी बर्बाद नहीं जाती बेटा… कभी न कभी फल देती है।”
पर अंदर-अंदर उसका दिल भी टूट चुका था।
💰 लोन और चालाकी
कुछ दिनों बाद सरकार की तरफ से ऐलान हुआ कि—
“जिन किसानों की फसल बरबाद हुई है, उन्हें मुआवज़ा मिलेगा।”
इसके लिए गाँव में अफ़सर आने वाले थे।
तभी मौका देखकर तिलकराम ने चाल चली।
उसने झूठे काग़ज़ बना लिए— ताकि बड़ी रकम मुआवज़े के नाम पर खुद ले सके। और बाक़ी किसानों को बहुत कम मिल पाए।
उसे यह भी पता था कि अगर कोई सच बताएगा… तो उसकी चाल पकड़ी जाएगी।
सबसे ईमानदार इंसान था — रामदयाल…
इसलिए तिलकराम ने उसे बुलाया—
“रामदयाल… तू चुप ही रहियो।
तेरे हिस्से का पैसा मैं बढ़वा दूँगा। बस अफ़सर के सामने कुछ मत बोलना।”
रामदयाल ने साफ जवाब दिया—
“मैं झूठ नहीं बोलूँगा। जो सच है… वही कहूँगा।”
तिलकराम का चेहरा सख्त हो गया—
“फिर याद रख… इस गाँव में जीना मुश्किल कर दूँगा।”
🚨 रात का हमला
एक रात जब सब सो रहे थे…
खेतों में कुछ परछाईं-सी हिली।
मोहन ने आवाज़ सुनी और जाग गया।
वो चुपके से बाहर निकला — दो आदमी खेत की मेढ़ काट रहे थे।
अगर पानी बह गया, तो रामदयाल का खेत बिलकुल बरबाद हो जाता।
मोहन चिल्लाने ही वाला था कि एक आदमी बोला—
“जल्दी करो… तिलकराम ने हुक्म दिया है!”
मोहन वापस भागा—
“बाबा! कोई हमारा खेत बिगाड़ रहा है!”
रामदयाल बिना सोचे बाहर दौड़ा।
उसने उन आदमियों को रोक लिया और बोला—
“किसान का खेत काटना… उसकी रोटी छीनने जैसा है!”
कुछ देर धक्का-मुक्की हुई, पर रामदयाल ने डटकर सामना किया।
आदमी भाग गए — लेकिन जाते-जाते धमकी देकर गए।
अगले दिन गाँव में अफ़वाह फैल गई—
“रामदयाल ने खेत खुद खराब किया ताकि ज्यादा पैसा मिले!”
लोग उल्टा उसी पर शक करने लगे।
🏛️ सच का इम्तिहान
सरकारी अफ़सर आए।
तिलकराम ने अपनी तरफ से बड़े-बड़े झूठ बोले—
“साहब, हमारी 100 बीघा फसल गई है!”
जब रामदयाल की बारी आई…
अफ़सर ने पूछा—
“तुम्हारा नुक़सान कितना हुआ?”
रामदयाल शांत आवाज़ में बोला—
“साहब… जितना सच है, उतना ही लिखिए।
अधूरा खेत खराब हुआ है… पूरा नहीं।”
अफ़सर थोड़ा हैरान हुआ—
“सब लोग नुकसान बढ़ा-चढ़ा कर बता रहे हैं… और तुम कम बता रहे हो?”
रामदयाल ने कहा—
“अगर झूठ बोलूँ, तो खुद को कैसे देखूंगा?”
मोहन गर्व से पिता को देख रहा था।
😡 तिलकराम की चाल विफल
अफ़सर ने जब बाक़ी खेत देखे —
तो समझ गया कि कई किसान झूठ बोल रहे हैं।
उसने पूरा रिकॉर्ड चेक किया —
और पता चला कि तिलकराम ने नकली कागज़ बनाए हैं!
सरकार ने उसका मुआवज़ा रद्द कर दिया —
ऊपर से जाँच बैठ गई।
गाँव में पहली बार लोगों ने देखा—
ताकत पैसा नहीं… सच्चाई होती है।
🧑🌾 नई शुरुआत
रामदयाल को जितना बनता था उतना मुआवज़ा मिला।
पर सबसे बड़ा इनाम था — इज़्ज़त।
कुछ दिनों बाद गाँव में एक नई योजना आई —
“आदर्श किसान योजना”
जिसमें ईमानदार और जिम्मेदार किसान को
बीज, खाद और तकनीक सिखाई जाती थी।
अधिकारी ने साफ कहा—
“पहला किसान — रामदयाल।”
बाक़ी किसान भी उसके साथ जुड़े।
गाँव में संगठन बना।
सबने मिलकर खेत सुधारे, बाँध ठीक किया, पानी सँभाला।
अगले साल फसल बहुत अच्छी हुई।
मोहन पढ़ाई के साथ गाँव के बच्चों को भी पढ़ाने लगा।
गाँव बदलने लगा था।
🌟 अंतिम मोड़
एक दिन तिलकराम रामदयाल के घर आया।
पहली बार उसके चेहरे पर घमंड नहीं… पछतावा था।
उसने कहा—
“मुझे माफ कर दो।
मैंने गलत किया… और तुम फिर भी सही निकले।”
रामदयाल मुस्कुरा कर बोला—
“ग़लती इंसान से होती है…
पर इंसान वही है जो मान ले।”
दोनों ने हाथ मिलाया।
और सरवानीपुर गाँव में एक कहावत बन गई —
**“ईमानदारी बीज है…
आज बोओगे, कल पूरा गाँव फले-फूलेगा।”**
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