SIKHAR || SRI SRI 1008 MOOLNARAYAN JI || शिखर मंदिर || भनार गांव || HILLS TREKK || KAPKOT BAGESHWAR
Автор: KorangaDeeps Vlog
Загружено: 2020-11-19
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श्री श्री १००८ मूलनारायण जी की कथा:
बहुत समय पहले की बात है रिकेश्वर कोट नामक जगह उत्तराखंड में हुआ करती थी जहा १६०० से भी अधिक ऋषि मुनि रहा करते थे। वही ऋषि पपना के पुत्र मदना ऋषि अपनी भार्या मेनावती के साथ रहते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। उन्होंने घोर तप किया और अंत में ऋषि मुनियो के आशीर्वाद से एक सुंदर से बालक को जन्म दिया। वह बालक मूल नकसत्र में पैदा हुआ था इसिलिए ज्योतिशी ने उन्हे आगाह किया कि आपका यह बालक आपके लीए अनिस्टकारी है इसका त्याग कर दो, तब उनकी माता रोने लगी। लेकिन मदना ऋषि ने बालक को ज्योतिशी के कथनानुसार पिंजरे में डालकर नदी में बहा दिया।
वह बालक बहता हुआ अंतेपुर ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा, वही उसका पालन पोषण हुआ और उसका नामकरण संस्कार भी कराया गया। उस बालक का नाम मौना ऋषि पड़ गया। जब वह बालक १ साल का हुआ तब एक दिन उसने अपनी बुआ नंदा माई को सपना दिया कि मैं अंतेपुर ऋषि के आश्रम में हूं कृपया मुझे यहां से लेकर जायें। नंदा माई ने ये सब अपने पति राजा ह्यूंल को बताया और उनसे आज्ञा लेके कुछ सैनिकों और गड़ो के साथ अपने ससुराल हिमालय से उस बालक को लेने निकल पड़ी। माता उस बालक को लेकर सिधे मदना ऋषि के आश्रम में पहुंची। उनसे बालक के त्याग करने पर खुब बहस की परन्तु जब मदना ऋषि ने उस बालक को अपनाने से इन्कार कर दिया तो माता उस बालक को लेके हिमालय पर्वत अपने ससुराल को निकल पड़ी।
नंदा माई वहा से पहले कोलकाता आई अपनी बहन कालिका माता के वहा। कुछ दिन वहा बिताकर फिर माई पश्चिम की ओर पवित्र तीर्थ गया पहुंची और वहा से प्रयागराज को निकल पड़ी। जब माई वहां से नैनीताल होते हुए आलम शहर (अल्मोड़ा) पहुंची तो उस समय वहां एक राक्षस कालो मोटियो का आतंक था। वहां के लोगों ने माई से उस राक्षस के वध की गुहार लगाई फिर माई ने अपनी सेना के साथ मिलकर उस राक्षस का वध किया। वहां के लोगों ने माता का खुब आदर सत्कार किया और तबसे उन्हें पूजने लगे। वहां से हिंवालनंदा माई ब्याघेश्वर (बागेश्वर) पहुंची, वहा के लहलहाते खेतों को देख माई का यहां रुकने का मन हुआ। उस समय वहां भगवान बागनाथ का राज था। माई ने उन्हें आदेश के तौर पर वहां रुकने का स्थान मांगा, बागनाथ जी बोले अगर आपने मुसाफिर की तरह यहां रूकने की आज्ञा मांगी होती तो मैं आज्ञा दे भी देता परन्तु आपका आदेश में नहीं मान सकता। फिर क्या था माता रानी को क्रोध आ गया और उन्होंने सरयू गोमती के संगम का बहाव रोक दिया अब देखते देखते पूरा बागेश्वर डूबने लगा यह देख भगवान बागनाथ डर गये और हार मानकर माता से माफी मांगने लगे। माता ने उन्हें माफ कर अपने आदर सत्कार का उन्हे मौका दिया।
वहां से माता पर्वत श्रृंखलाओं की ओर बड़ती है और रमणीय पर्वत पर शिखर पहुंचती है जहां से हर जगह के दर्शन होते हैं। मौना ऋषि का मन इस जगह लग जाता है और वह इसी स्थान पर अवतार लेते हैं। उस समय वहां सौंका लोग हर साल अपनी भेड़ बकरियां चराने आते थे। वो लोग बहुत अमीर हुआ करते थे अपने साथ सोनों के बक्से भी लेकर चलते और विश्राम इसी जगह पर करते थे। मौना ऋषि को यह जगह पसंद आ गयी थी तो उन्होंने उनकी भेड़ों को जंगली जानवरों और सोने के बक्सों को पत्थर में बदल दिया। यह देख सोंका पागल हो गया। सोंका की एक सुंदर पुत्री भी थी जिसका नाम राजुला था। राजुला मौना ऋषि से क्षमा याचना करती है और अपने पिता को ठीक करने की गुहार लगाती है। मौना ऋषि सब ठीक कर देते हैं और कहते हैं कि तू अपने घर जोहार चला जा तुझे अपनी सारी संपत्ति वहीं मिल जाएगी।
फिर मौना ऋषि की इच्छा जान हिवालनंदा भी हिमालय पर्वत को लौट गयी। बाद में उनकी बुआ ने ही उनका विवाह राजा ह्यूमांक की पुत्री श्रृंगा से करवाई। कुछ समय बाद उनके २ पुत्र हुए। बजैण और नौलिंग जी।
बजैण जी समांल गांव भनार और नौलिंग जी सनगाड़ में बसे हैं।
बजैण जी का मंदिर:
• बजैण देवता || समाल गांव || भनार || क...
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शिखर में एक गुफा (ब्यौर) भी है जो मंदिर से 500 मिटर की दूरी पर स्थित है। यहां गुफा के अंदर ही अंदर शुद्ध पानी निकलता है। इस गुफा में लड़कियों और महिलाओं का जाना सख्त मनाही है। पुरुष भी अगर किसी के घर में नातक या छूतक हो या फिर कोई चमड़े का सामान लेके या बिना नहाए अंदर जाना सख्त मनाही है ऐसे लोगों के जबरदस्ती प्रवेश करने से गुफा के भीतर का जल सुख जाता है। इस मंदिर में बहुत शक्ति है ये सब देखी हुई घटनाओं में से हैं सो नियमों का पालन करके ही प्रवेश करने की कृपा करें।
शिखर मंदिर में हर साल दूर दूर के गांवों से आके नया अनाज सिक के रुप में चढ़ाया जाता है। मंदिर हर समय खुला रहता है वहां एक बाबा जी हमेशा रहते हैं।
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Way to reach?
Bageshwar - Bharari - Jhopda dhar (Bhanar village): 55 KM's Travel
Jhopda Dhar - Temple: 5-6 KM's Trekking
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KorangaDeeps
जय देवभूमि🙏
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