दुर्गा स्तुति अध्याय 5 Durga Stuti Chapter 5 Sakshi Kumari Seema Dogra
Автор: Reet Bhakti Sagar
Загружено: 2024-10-04
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दुर्गा स्तुति अध्याय 5 | Durga Stuti Chapter 5 | Sakshi Kumari | Seema Dogra
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Singer - Sakshi Kumari
Music - Virendra Negi(Rama Studio)
Camera/Edit - Vikas Khatri
Producer/Director - Seema Dogra
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ऋषि राज कहने लगे, सुन राजन मन लाये
दुर्गा पाठ का कहता हु पांचवा मै अध्याय
एक समय शुम्भ निशुम्भ दो हुए दैत्य बलवान
जिनके भय से कंपता था यह सारा जहान
इन्दर आदि को जीत कर लिया सिंहासन छीन
खोकर ताज और तख्त को हुए देवता दीन
देव लोक को छोड़ कर भागे जान बचाए
जंगल जंगल फिर रहे संकट से घबराए
तभी याद आया उन्हें देवी का वरदान
याद करोगे जब मुझे करुँगी मै कल्याण
तभी देवताओं ने स्तुति करी
खड़े हो गए हाथ जोड़े सभी
लगे कहने ऐ मैया उपकार कर
तू आ जल्दी दैत्यों का संहार कर
प्रकृति महा देवी भद्रा है तू
तू ही गौरी धात्री व् रुद्रा है तू
तू हैचंदर रूप तू सुखदायनी
तू लक्ष्मी सिद्धि है सिंहवाहिनी
है बेअंत रूप और कई नाम है
तेरे नाम जपते सुबह शाम है
तू भक्तो की कीर्ति तू सत्कार है
तू विष्णु की माया तू संसार है
तू ही अपने दासो की रखवार है
तुझे माँ करोड़ो नमस्कार है
नमस्कार है नमस्कार है
तू हर प्राणी मे चेतन आधार है
तू ही बुद्धि मन तू ही अहंकार है
तू ही निंद्रा बन देती दीदार है
तुझे माँ करोड़ो नमस्कार है
नमस्कार है नमस्कार है
तू ही छाया बनके है छाई हुई
क्षुधा रूप सब मे समाई हुई
तेरी शक्ति का सब मे विस्तार है
तुझे माँ करोड़ो नमस्कार है
नमस्कार है नमस्कार है
है तृष्णा तू ही क्षमा रूप है
यह ज्योति तुम्हारा ही स्वरूप है
तेरी लज्जा से जग शरमसार है
तुझे माँ करोड़ो नमस्कार है
नमस्कार है नमस्कार है
तू ही शांति बनके धीरज धरावे
तू ही श्रधा बनके यह भक्ति बढ़ावे
तू ही कान्ति तू ही चमत्कार है
तुझे माँ करोड़ो नमस्कार है
नमस्कार है नमस्कार है
तू ही लक्ष्मी बन के भंडार भरती
तू ही वृति बन के कल्याण करती
तेरा स्मृति रूप अवतार है
तुझे माँ करोड़ो नमस्कार है
नमस्कार है नमस्कार है
तू ही तुष्ठी बनी तन मे विख्यात है
तू हर प्राणी की तात और मात है
दया बन समाई तू दातार है
तुझे माँ करोड़ो नमस्कार है
नमस्कार है नमस्कार है
तू ही भ्रान्ति भ्रम उपजा रही
अधिष्टात्री तू ही कहला रही
तू चेतन निराकार साकार है
तुझे माँ करोड़ो नमस्कार है
नमस्कार है नमस्कार है
तू ही शक्ति है ज्वाला प्रचंड है
तुझे पूजता सारा ब्रेह्मंड है
तू ही रिधि -सिद्धि का भंडार है
तुझे माँ करोड़ो नमस्कार है
नमस्कार है नमस्कार है
मुझे ऐसा भक्ति का वरदान दो
'चमन' का भी उद्दार कल्याण हो
तू दुखया अनाथो की गमखार है
तुझे माँ करोड़ो नमस्कार है
नमस्कार है नमस्कार है
नमस्कार स्त्रोत को जो पढ़े
भवानी सभी कष्ट उसके हरे
'चमन' हर जगह वह मददगार है
तुझे माँ करोड़ो नमस्कार है
नमस्कार है नमस्कार है
दोहा:-
रजा से बोले ऋषि सुन देवं की पुकार
जगदम्बे आई वह रूप पार्वती का धार
गंगा - जल मे जब किया भगवती ने स्नान
देवो से कहने लगी किसका करते हो ध्यान
इतना कहते है शिव हुई प्रकट तत्काल
पार्वती के अंश से धरा रूप विशाल
शिवा ने कहा मुझ को है धया रहे
यह सब स्तुति मेरी ही गा रहे
है शुम्भ और निशुम्भ के डराए हुए
शरण मे हमारी है आये हुए
शिवा अंश से बन गई अम्बिका
जो बाकी रही वह बनी कालिका
धरे शैल पुत्री ने यह दोनों रूप
बनी एक सुंदर और बनी एक करूप
महाकाली जग मे विचरने लगी
और अम्बे हिमालय पे रहने लगी
तभी चंड और मुंड आये वहां
विचरती पहाड़ो मे अम्बे जहाँ
अति रूप सुंदर न देखा गया
निरख रूप मोह दिल मे पैदा हुआ
खा जा के फिर शुम्भ महाराज जी
की देखि है एक सुंदर आज ही
चढ़ी सिंह पर सैर करती हुई
वह हर मन मे ममता को भरती हुई
चलो आँखों से देख लो भाल लो
रत्न है त्रिलोकी का सम्भाल लो
सभी सुख चाहे घर मे मैजूद है
मगर सुन्दरी बिन वो बेसुद है
वह बलवान रजा है किस काम का
न पाया जो साथी यह आराम का
करो उससे शादी तो जानेंगे हम
महलो मे लाओ तो मानेंगे हम
यह सुन कर वचन शुम्भ का दिल बढ़ा
महा असुर सुग्रीव से यु कहा
जाओ देवी से जाके जल्दी कहो
की पत्नी बनो महलो मे आ रहो
तभी दूत प्रणाम करके चला
हिमालय पे जा भगवती से खा
मुझे भेजा है असुर महाराज ने
अति योद्धा दुनिया के सरताज ने
वह कहता है दुनिया का मालिक हु मै
इस त्रिलोकी का प्रतिपालक हु मै
रत्न है सभी मेरे अधिकार में
मै ही शक्तिशाली हु संसार में
सभी देवता सर झुकाए मुझे
सभी विपदा अपनी सुनाये मुझे
अति सुंदर तुम स्त्री रत्न हो
हो क्यों नष्ट करती सुदरताई को
बनो मेरी रानी तो सुख पाओगी
न भट्कोगी बन में न दुःख पाओगी
जवानी में जीना वो किस काम का
मिला न विषय सुख जो आराम का
जो पत्नी बनोगी तो अपनाऊंगा
मै जान अपनी कुर्बान कर जाऊंगा
दोहा:-
दूत की बातो पर दिया देवी ने ना ध्यान
कहा डांट क्र सुन अरे मुर्ख खोल के कान
सुना मैंने वह दैत्य बलवान है
वह दुनिया मै शहजोर धनवान है
सभी देवता है उस से हारे हुए
छुपे फिरते है डर के मारे हुए
यह मन की रत्नों का मालिक है वो
सुना यह भी सृष्टि का पालक है वो
मगर मैंने भी एक प्रण ठाना है
तभी न असुर का हुक्म माना है
जिसे जग में बलवान पाउंगी मै
उसे कान्त अपना बनाउंगी मै
जो है शुम्भ ताकत के अभिमान में
तो भेजो उसे आये मैदान में
दोहा:-
कहा दूत ने सुन्दरी न कर यु अभिमान
शुम्भ निशुम्भ है दोनों ही , योद्धा अति बलवान
उन से लड़कर आज तक जीत सका ना कोय
तू झूठे अभिमान में काहे जीवन खोये
अम्बा मोली दूत से बंद करो उपदेश
जाओ शुम्भ निशुम्भ को दो मेरा सन्देश
'चमन' खे दैत्य जो, वह फिर कहना आये
युद्ध की प्रीतज्ञा मेरी, देना सब समझाए
बोलो जय माता दी जी
बोलो मेरी माँ वैष्णो रानी की जय
बोलो मेरी माँ राज रानी की जय
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