रुद्रायमल तंत्र किस प्रकाशन का पढ़ें
Автор: Vishal Epics
Загружено: 2023-10-23
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तन्त्रशास्त्र में शक्ति उपासना कुण्डलिनी जागरण के नाम से प्रसिद्ध है इसमें शिव शक्ति का अद्भुत सामरस्य होता है कुण्डलिनी को ही महाशक्ति माना गया है यह जाग्रत होने पर ऋतम्भरा शक्ति या दिव्य ज्ञान को प्रकट कर देती है उसकी दिव्य क्रीड़ा साधक को दिव्य ज्ञान से सम्पन्न कर देती है और लोकोत्तर दिव्य आनन्द प्रदान करती है ।
कुण्डलिनी की सात्त्विक उपासना - विधि रुद्रयामलतन्त्र में वर्णित है पशुभाव, वीरभाव और दिव्य भाव इस विधि के सोपान हैं । कुण्डलिनी, शतनाम, कुमारी सहस्त्रनाम स्तोत्र एवं कवच आदि के पाठ से साधक देवताओं के समान बन जाता है वस्तुतः सर्वशक्तिमान् परमेश्वर की चिच्छक्ति को 'शक्ति' के नाम से अभिहित किया गया है इनकी काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी आदि दश महाविद्या के रूपों में उपासना की जाती है।
शक्ति की उपासना कई प्रकार से होती है इनमें अहिंसात्मक पद्धति, जिसमें किसी तामसी या अपवित्र वस्तुओं का प्रयोग नहीं होता, सर्वोत्तम साधना है इसी पद्धति से काली, तारा, त्रिपुरा आदि की उपासना भी विशेष फलवती होती है । यह अहिंसात्मक पद्धति 'समयाचार' के नाम से प्रसिद्ध है रुद्रयामल तन्त्र में इन सभी का विवेचन आनन्द भैरव एवं आनन्द भैरवी के है । संवाद के बीच हुआ
रुद्रयामल के ६० पटलों में विभिन्न सहस्रनामों, स्तोत्रों एवं कवचों का विधान कर पञ्चमकार का सांकेतिक गूढार्थ प्रतिपादित कर सभी पूजाविधान के मूल प्रधान उपासना को ही सर्वोपरि बताया गया है। में भाव- -
भावेन लभ्यते सर्वं भावेन देवदर्शनम् भावेन परमं ज्ञानं तस्माद् भावावलम्बनम् ।।
( रुद्र० १.११३ )
अन्ततः श्रीकुलकुण्डलिनी से उद्धार की प्रार्थना इस प्रकार की गई है । त्वामाश्रित्य नरा व्रजन्ति सहसा वैकुण्ठकैलासयोः
आनन्दैकविलासिनीं शशिशतानन्दाननां कारणाम् मातः श्रीकुलकुण्डली प्रियकरे काली कुलोद्दीपने तत्स्थानं प्रणमामि भद्रवनिते मामुद्धर त्वं पशुम् ।
( रुद्र० ६.३६ )
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