पकरि समसेर संग्राम में पैसिये | कबीर दास जी
Автор: कबीर पथ – The Path of Kabir
Загружено: 2025-10-22
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🌱 कबीर दास जी का भजन : पकरि समसेर संग्राम में पैसिये 🌱
☝️कबीर दास जी इस भजन में कहते हैं कि हमें अपने जीवन को एक युद्ध के मैदान में बदलना चाहिए, जहां हम अपने विकारों और पापों के खिलाफ लड़ते हैं। हमें अपने सिर को काटने के लिए तैयार रहना चाहिए, यानी अपने अहंकार और स्वार्थ को त्यागने के लिए तैयार रहना चाहिए।
📖 भजन और अर्थ 📖
1. पकरि समसेर संग्राम में पैसिये, देह पतजंत कर जुद्ध भाई: कबीर जी कहते हैं कि हमें अपने जीवन को एक युद्ध के मैदान में बदलना चाहिए, जहां हम अपने विकारों और पापों के खिलाफ लड़ते हैं।
2. काट सिर बैरियाँ दाव जहँ का तहाँ, आय दरबार में सीस नाई: हमें अपने सिर को काटने के लिए तैयार रहना चाहिए, यानी अपने अहंकार और स्वार्थ को त्यागने के लिए तैयार रहना चाहिए, और भगवान के दरबार में अपना सिर झुकाना चाहिए।
3. करत मतवाल जहँ संत जन सूरमा, घुरत निस्सान तहँ गगन धाई: जहां संत जन सूरमा होते हैं, वहां निस्सान (विजय का झंडा) गगन में लहराता है।
4. कहैं कबीर अब नाम से सुरखरु, मौज दरबार की भक्ति पाई: कबीर जी कहते हैं कि अब मैं भगवान के नाम से प्रसन्न हूं, और भगवान के दरबार की भक्ति पाई है।
🎯 भजन का मुख्य संदेश :
इस भजन में कबीर जी कहते हैं कि हमें अपने जीवन को एक युद्ध के मैदान में बदलना चाहिए, जहां हम अपने विकारों और पापों के खिलाफ लड़ते हैं। हमें अपने अहंकार और स्वार्थ को त्यागने के लिए तैयार रहना चाहिए, और भगवान के दरार में अपना सिर झुकाना चाहिए। हमें भगवान के नाम का स्मरण करना चाहिए और उनकी भक्ति करनी चाहिए।
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