रजरप्पा शक्तिपीठ (छिन्नमस्तिका) मंदिर रामगढ़ , झारखंड
Автор: TECH COMPUTERS
Загружено: 2024-12-09
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रजरप्पा शक्तिपीठ (छिन्नमस्तिका) मंदिर रामगढ़ , झारखंड
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भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे शिलाखंड पर दक्षिण की ओर मुख किए माता छिन्नमस्तिका के दिव्य स्वरूप का दर्शन होता है। छिन्नमस्तिका मंदिर के अलावा यहां महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंग बली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के नाम से कुल 7 मंदिर हैं।
रजरप्पा मंदिर यहां देवी ने भूख के कारण काट लिया था अपना ही सिर
कहते हैं कि एक बार भूख से तड़पती मां छिन्नमस्तिका ने अपना ही सिर काट लिया था। इसलिए इन्हें छिन्न मस्तिका कहा जाता है। दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ माना जाता है देवी मां का ये मंदिर, अपना सिर काटकर मिटाई थी सहेलियाें की भूख , छिन्नमस्तिका के कटे हुए सिर को देखकर लोगों के मन में सवाल उठता है कि देवी मां ने अपने कटे हुए सिर को हाथों में क्यों उठाया हुआ है, तो इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। एक कहानी के अनुसार, एक बार जब देवी मां अपनी सहेलियों के साथ गंगा नदी में स्नान करने गई, तो कुछ समय वहां रुकने के कारण उनकी दो सहेलियां भूख से व्याकुल हो उठी। दोनों सहेलियों की भूख इतनी तेज थी कि दोनों का रंग तक काला पड़ गया। वह मां से भोजन की मांग करने लगीं। मां ने उनसे धैर्य रखने को कहा, लेकिन वह भूख से तड़प रही थीं। माता ने अपनी सहेलियों का हाल देखकर अपना ही सिर काट दिया। जब उन्होंने अपना सिर काटा, तो उनका सिर उने बाएं हाथ में आ गिरा। उसमें से रक्त की तीन धाराएं बहने लगीं। दो धाराओं को तो देवी मां ने सहेलियों की तरफ दे दिया और बची हुई धारा से खुद रक्त पीने लगीं। माता का यह स्वरूप अत्यंत ही रौद्र है।
बता दें कि देवी का ये मंदिर 51 शक्तिपीठों में दूसरा बड़ा शक्तिपीठ है।कहा जाता है कि मंदिर 6000 साल पुराना है और देवी छिन्नमस्तिका के लिए जाना जाता है। यहां देवी को प्रेम के देवता कामदेव और प्रेम की देवी रति पर खड़ी नग्न देवी के रूप में दिखाया गया है। मंदिर अपनी तांत्रिक शैली की वास्तुकला के लिए भी मशहूर है।
रजरप्पा मंदिर झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 80 किलोमीटर दूर स्थित है। इसे छिन्नमस्तिका मंदिर के अन्य नाम से भी जाना जाता है। रजरप्पा के भैरवी भिड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिके मंदिर में आज भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। मान्यता है कि असम के कामाख्या मंदिर के बाद दुनिया के सबसे शक्तिपीठ के रूप में विख्यात मां छिन्नमस्तिका मंदिर काफी लोकप्रिय है।
रजरप्पा का यह सिद्धपीठ केवल एक मंदिर के लिए ही विख्यात नहीं है बल्कि इस मंदिर के अलावा यहां महलकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दश महाविद्या मंदिर, बाबा धाम मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के नाम से कुल सात मंदिर हैं। मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे एक शिलाखंड पर दक्षिण की ओर मुख किए माता छिन्नमस्तिके का दिव्य रूप अंकित है। मां छिन्नमस्तिके मंदिर के अंदर स्थित शिलाखंड में मां की तीन आंखें हैं। बायां पांव आगे की ओर बढ़ते हुए वे कमल पुष्प पर खड़ी हैं। पांव के नीचे उल्टी मुद्रा में कामदेव और रती सोए हुए हैं।
मां छिन्नमस्तिके का गला सांपों की माला और मुंडों की माल से सुशोभित हैं। बिखरे और खुले केश, जीभ बाहर आभूषणों से सुशोभित मां नग्न अवस्था में हैं। इनके दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना सिर कटा मस्तक है। इसके अगल-बगल डाकिनी और शाकिनी हैं। जिन्हें वे रक्तपान करा रहीं हैं और खुद भी रक्त पान कर रहीं हैं। इनके गले से रक्त की तीन धराएं बह रही हैं। मंदिर का मुख्यद्वार पूर्वमुखी है। मंदिर के सामने बली का स्थान है। इस स्थान पर रोज 100-200 बकरों की बलि दी जाती है। कहते हैं कि एक बार भूख से तड़पती मां छिन्नमस्तिका ने अपना ही सिर काट लिया था। इसलिए इन्हें छिन्न मस्तिका कहा जाता है। माता का यह स्वरूप अत्यंत ही रौद्र है।
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