“अखंड स्मरण की धारा” |
Автор: Learn Advaita Vedanta
Загружено: 2025-12-04
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“अखंड स्मरण की धारा” |
सा नि रे ग रे सा — ग म प — ग रे सा॥
सा… रे… ग… हरि… हरि… गो—विं—दा…
नाम-धारा बहती जाए, अविरत, अनूपम प्यार,
स्मरण बने प्रत्यक्ष दर्शन, टूटें बंधन अपार।
ज्यों तेल की धारा गिरती, एक-रस, मंद, सजग,
वैसे ही आपके स्मरण में, डूबा रहे यह मग्न-वियोग,
ना टूटे ध्यान की यह डोरी, ना बिखरे मन की डोर,
आप ही बाहर, आप ही अंदर, आप ही ध्याता, आप ही ध्येय-घोर।
नाम-धारा बहती जाए, अविरत, अनूपम प्यार,
स्मरण बने प्रत्यक्ष दर्शन, टूटें बंधन अपार।
कभी दूर लगते हैं प्रभुजी, कभी लगें अंतर में पास,
श्रुति कहती, ‘जो दूर-समीप हैं’, वे ही तो हैं सुप्रकाश,
दूर रूप है स्मृति में बसता, पास रूप है साक्षात,
जब स्मरण हो दृष्टि-सम रूप, मिटते संशय, टूटे घात।
नाम-धारा बहती जाए, अविरत, अनूपम प्यार,
स्मरण बने प्रत्यक्ष दर्शन, टूटें बंधन अपार।
ध्यान, मनन और श्रवण बहुत, पर केवल इनसे क्या,
जब तक प्राण न अर्पित हों, सूखा लगता पथिया,
जब हृदय हर श्वास में बोले, ‘आप ही मेरे प्रियतम’,
तब स्मरण बन जाए दर्शन, वहीं टूटे जन्म-भरम।
सा नि रे ग — ग म प ध — नि ध प म — ग रे सा॥
रे ग म प — प ध नि सा — नि ध प म — ग रे सा॥
नाम-धारा बहती जाए, अविरत, अनूपम प्यार,
स्मरण बने प्रत्यक्ष दर्शन, टूटें बंधन अपार।
जिसे प्रिय हो यह स्मरण-धारा, उसे प्रिय आप स्वयं,
कहते हैं वेद– ‘जिसको चाहें, उसी को दे दें स्वधाम’,
मैं भी बन जाऊँ वह प्रियतम, जिसको आप ही चाहें,
मेरे हर कण में बस जाएँ, आपके मधुर कराहें।
नाम-धारा बहती जाए, अविरत, अनूपम प्यार,
स्मरण बने प्रत्यक्ष दर्शन, टूटें बंधन अपार।
हे ईश! यह जीवन-धन सब, चरणों में अर्पण है,
स्मृति, प्राण, मन, वाणी, कर्म, बस एक ही अर्पण है,
कभी ना रूके यह स्मरण-धारा, ऐसे कर दीजै कृपा,
“मन स्मरें आपको भीतर से”, यही हो अंतिम याचना।
नाम-धारा बहती जाए, अविरत, अनूपम प्यार,
स्मरण बने प्रत्यक्ष दर्शन, टूटें बंधन अपार।
ग म प ध नि ध प म ग रे — रे ग म प ग रे सा॥
Note:
This devotional content was created with the support of AI tools under human guidance.
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