SWADHA STOTRAM WITH HINDI / स्वधास्तोत्रम् हिंदी सहित / Pt R K Vyas Palji 9414849604
Автор: Rajendra Kumar Vyas Palji
Загружено: 2025-09-05
Просмотров: 2240
Join this channel to get access to perks:
/ @kavitarkvyaspalji1334
॥ श्राद्ध पक्ष विशेष॥
पितरों की प्रसन्नता और तृप्ति हेतु
नित्य पाठ करें या श्रवण करें।
॥ स्वधास्तोत्रम्॥
ब्रह्मोवाच -
स्वधोच्चारणमात्रेण तीर्थस्नायी भवेन्नरः।
मुच्यते सर्वपापेभ्यो वाजपेयफलं लभेत्॥१॥
स्वधा स्वधा स्वधेत्येवं यदि वारत्रयं स्मरेत्।
श्राद्धस्य फलमाप्नोति कालतर्पणयोस्तथा॥२॥
श्राद्धकाले स्वधास्तोत्रं यः शृणोति समाहितः।
लभेच्छ्राद्धशतानाञ्च पुण्यमेव न संशयः॥३॥
स्वधा स्वधा स्वधेत्येवं त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः।
प्रियां विनीतां स लभेत्साध्वीं पुत्रं गुणान्वितम्॥४॥
पितॄणां प्राणतुल्या त्वं द्विजजीवनरूपिणी।
श्राद्धाधिष्ठातृदेवी च श्राद्धादीनां फलप्रदा॥५॥
बहिर्मन्मनसो गच्छ पितॄणां तुष्टिहेतवे ।
सम्प्रीतये द्विजातीनां गृहिणां वृद्धिहेतवे॥६॥
नित्यानित्यस्वरूपासि गुणरूपासि सुव्रते।
आविर्भावस्तिरोभावः सृष्टौ च प्रलये तव॥७॥
ॐ स्वस्ति च नमः स्वाहा स्वधा त्वं दक्षिणा तथा।
निरूपिताश्चतुर्वेदे षट्प्रशस्ताश्च कर्मिणाम्॥८॥
पुरासीत्त्वं स्वधागोपी गोलोके राधिकासखी।
धृतोरसि स्वधात्मानं कृतं तेन स्वधा स्मृता॥९॥
धृतास्वोरसि कृष्णेन यतस्तेन स्वधा स्मृता
ध्वस्ता त्वं राधिकाशापाद्गोलोकाद्विश्वमागता
कृष्णाश्लिष्टा तया दृष्टा पुरा वृन्दा वने वने॥
कृष्णालिङ्गनपुण्येन भूता मे मानसीसुता।
अतृप्त सुरते तेन चतुर्णां स्वामिनां प्रिया ॥
स्वाहा सा सुन्दरी गोपी पुरासीद् राधिकासखी।
रतौ स्वयं कृष्णमाह तेन स्वाहा प्रकीर्तिता॥
कृष्णेन सार्धं सुचिरं वसन्ते रासमण्डले।
प्रमत्ता सुर ते श्लिष्टा दृष्टा सा राधया पुरा॥
तस्याः शापेन सा ध्वस्ता गोलोकाद्विश्वमागता।
कृष्णालिङ्गनपुण्येन समभूद्वह्निकामिनी॥
पवित्ररूपा परमादेवाद्यैर्वन्दितानृभिः।
यन्नामोच्चारणे-नैव नरो मुच्येत पातकात्॥
या सुशीलाभिधागोपी पुरासीद्राधिकासखी।
उवास दक्षिणेक्रोडे कृष्णस्य च महात्मनः॥
प्रध्वस्ता सा च तच्छापाद्गोलोकाद्विश्वमागता।
कृष्णालिङ्गनपुण्येन सा बभूव च दक्षिणा॥
सा प्रेयसीरतौ दक्षा प्रशस्ता सर्वकर्मसु।
उवास दक्षिणे भर्तुर्दक्षिणा तेन कीर्तिता॥
गोप्यो बभूवुस्तिस्रो वै स्वधा स्वाहा च दक्षिणा।
कर्मिणां कर्मपूर्णार्थं पुरा चैवेश्वरेच्छया॥
इत्येवमुक्त्वा स ब्रह्मा ब्रह्मलोके च संसदि।
तस्थौ च सहसा सद्यः स्वधा साविर्बभूव ह॥१०॥
तदा पितृभ्यः प्रददौ तामेव कमलाननाम्।
तां संप्राप्य ययुस्ते च पितरश्च प्रहर्षिताः॥११॥
स्वधा स्तोत्रमिदं पुण्यं यः शृणोति समाहितः।
स स्नातः सर्वतीर्थेषु वेदपाठफलं लभेत्॥१२॥
॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्त्ते महापुराणे द्वितीये
प्रकृतिखण्डे नारदनारायणसण्वादे स्वधोपाख्याने
स्वधोत्पत्ति तत्पूजादिकं नामैकचत्वारिंशोऽध्यायः॥
स्वधा स्तोत्र :- हिंदी
सभी साधक श्रद्धा से इस स्तोत्र का हिंदी रूपांतरण
परिवार सहित सुनें
ब्रह्माजी बोले - ' स्वधा ' शब्दके उच्चारणमात्रसे मानव
तीर्थस्नायी हो जाता है । वह सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त होकर
वाजपेययज्ञके फलका अधिकारी हो जाता है ॥१ ॥
स्वधा , स्वधा , स्वधा - इस प्रकार यदि तीन बार स्मरण
किया जाय तो श्राद्ध , काल और तर्पणके फल पुरुषको
प्राप्त हो जाते हैं ॥२ ॥
श्राद्धके अवसरपर जो पुरुष सावधान होकर स्वधादेवीके
स्तोत्रका श्रवण करता है , वह सौ श्राद्धोंका पुण्य पा लेता
है - इसमें संशय नहीं है ॥३ ॥
जो मानव स्वधा,स्वधा,स्वधा इस पवित्र नामका त्रिकालसन्ध्या
के समय पाठ करता है,उसे विनीत,पतिव्रता एवं प्रिय पत्नी
प्राप्त होती है तथा सद्गुणसम्पन्न पुत्रका लाभ होता है॥४॥
देवि ! तुम पितरोंके लिये प्राणतुल्या और ब्राह्मणोंके लिये
जीवनस्वरूपिणी हो।तुम्हें श्राद्धकी अधिष्ठात्रीदेवी कहा गया है।
तुम्हारी ही कृपासे श्राद्ध और तर्पण आदिके फल मिलते हैं॥५॥
तुम पितरोंकी तुष्टि , द्विजातियोंकी प्रीति तथा गृहस्थोंकी
अभिवृद्धिके लिये मुझ ब्रह्माके मनसे निकलकर
बाहर जाओ॥६॥
सुव्रते ! तुम नित्य हो , तुम्हारा विग्रह नित्य और
गुणमय है। तुम सृष्टिके समय प्रकट होती हो और
प्रलयकालमें तुम्हारा तिरोभाव हो जाता है ॥७ ॥
तुम ॐ,नमः,स्वस्ति,स्वाहा, स्वधा एवं दक्षिणा हो ।
चारों वेदोंद्वारा तुम्हारे इन छ:स्वरूपोंका निरूपण किया
गया है , कर्मकाण्डी लोगोंमें इन छहोंकी बड़ी
मान्यता है ॥८॥
हे देवि ! तुम पहले गोलोकमें ' स्वधा ' नामकी
गोपी थी और राधिकाकी सखी थी, भगवान् कृष्णने
अपने वक्षःस्थलपर तुम्हें धारण किया , इसी कारण
तुम ' स्वधा ' नामसे जानी गयी॥९॥
इस प्रकार देवी स्वधाकी महिमा गाकर ब्रह्माजी
अपनी सभामें विराजमान हो गये। इतनेमें सहसा
भगवती स्वधा उनके सामने प्रकट हो गयीं ॥१० ॥
तब पितामहने उन कमलनयनी देवीको पितरोंके
प्रति समर्पण कर दिया। उन देवीकी प्राप्तिसे पितर
अत्यन्त प्रसन्न होकर अपने लोकको चले गये॥११॥
यह भगवती स्वधाका पुनीत स्तोत्र है । जो पुरुष
समाहित चित्तसे इस स्तोत्रका श्रवण करता है ,
उसने मानो सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान कर लिया और
वह वेदपाठका फल प्राप्त कर लेता है॥१२॥
॥ इस प्रकार श्रीब्रह्मवैवर्तमहापुराणके प्रकृतिखण्डमें ब्रह्माकृत स्वधास्तोत्र सम्पूर्ण हुआ॥
Доступные форматы для скачивания:
Скачать видео mp4
-
Информация по загрузке: