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Spiritual Bhajan | बटऊ रे चलना आज कि काल | संत दादू दयाल जी

Автор: naadOham

Загружено: 2025-09-24

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बटाऊ रे चलना आज कि काल
यह अमूल्य आध्यात्मिक भजन संत दादू दयाल जी द्वारा रचित है।
इसमें जीवन की अस्थिरता और मृत्यु की निश्चितता का संदेश दिया गया है।
👉 शरीर, धन और सांसारिक रिश्ते सब अस्थायी हैं।
👉 संसार रूपी हाट में कोई स्थायी साथी नहीं है।
👉 केवल हरि-स्मरण और राम-नाम ही सच्चा आधार है।
इस भजन के माध्यम से दादू जी साधकों को जागरण का संदेश देते हैं —
“तन नहिं तेरा, धन नहिं तेरा, दादू हरि बिन क्यूँ सुख सोवै, काहे न देखैं जागि”
यानी, आत्मा शाश्वत है, बाकी सब नश्वर है

👉 बटाऊ रे चलना आज कि काल ।
समझ न देखै कहा सुख सोवै, रे मन राम सँभाल ॥टेक॥

हे यात्री! (मनुष्य) चलना तो आज या कल है। अर्थात मृत्यु निश्चित है। फिर तू क्यों नहीं समझता कि सुख कहाँ है? मन, तू राम को सँभाल।


यह जीवन यात्रा अस्थायी है, मृत्यु कभी भी आ सकती है। सांसारिक सुखों का आसरा मिथ्या है। स्थायी शांति केवल परमात्मा के स्मरण में है।

O traveler, you must depart today or tomorrow. Why don’t you realize where true happiness lies? O mind, hold on to Rama.

Spiritual Insight with Reference:
Kathopanishad (1.2.1): “उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत” — जागो, उठो, और श्रेष्ठ सत्य को जानो।
Bhagavad Gita (2.27): “जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु:” — जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है।
यहाँ संत दादू कह रहे हैं: जब मृत्यु अटल है, तो मनुष्य को राम (परमात्मा) की शरण में ही जाना चाहिए।

अन्तरा १

👉 जैसैं तरवर बिरख बसेरा, पंखी बैठे आइ ।
ऐसैं यह सब हाट पसारा, आप आप कूँ जाइ ॥१॥


जैसे पेड़ पर पक्षी आकर बैठते हैं और फिर उड़ जाते हैं, वैसे ही यह संसार-रूपी बाज़ार है — सब अपने-अपने रास्ते चले जाते हैं।


जीवन एक क्षणिक पड़ाव है। रिश्ते, परिवार, समाज सब अस्थायी संगति है — जैसे पक्षी एक पेड़ पर शाम को बैठते हैं और सुबह उड़ जाते हैं। कोई भी स्थायी साथी नहीं है।


Just as birds gather on a tree for a while and then fly away, so too is this worldly marketplace — each departs on his own path.

Spiritual Insight with Reference:
Bhagavad Gita (2.22): “वासांसि जीर्णानि यथा विहाय...” — जैसे वस्त्र पुराने होने पर बदल जाते हैं, आत्मा भी देह बदलती है।
Mundaka Upanishad (1.2.7) में जीवन को हंसों के समान कहा है जो आकाश से आते-जाते रहते हैं।
यह संसार केवल एक “हाट” (bazaar) है, शाश्वत निवास नहीं।

अन्तरा २

👉 कोइ नहिं तेरा सजन सँगाती, जिनि खोवै मन मूल ।
यह संसार देखि मत भूलै, सबही सेंबल फूल ॥२॥

तेरा कोई सच्चा साथी नहीं है। यदि तू मन के मूल (आत्मस्वरूप) को खो देगा तो सब व्यर्थ है। इस संसार को देखकर मत भूल, क्योंकि यह सब केवल सेमल के फूल जैसा है (सुंदर लेकिन भीतर से खोखला)।


संसार के रिश्ते, धन, मान-सम्मान — सब ऊपर से आकर्षक हैं पर भीतर से शून्य हैं। जैसे सेमल का फूल बाहर से सुंदर दिखता है पर भीतर से रूखा-खाली होता है। यदि मनुष्य आत्मा को भूल गया, तो सब खो दिया।


No one is truly your companion. If you lose the essence of the mind (the Self), everything is lost. Don’t be deluded by the world — it is like the semal flower, bright outside but hollow within.

Spiritual Insight with Reference:
Brihadaranyaka Upanishad (4.3.32): “आत्मनस्तु कामाय सर्वं प्रियं भवति” — सब प्रिय केवल आत्मा के कारण है।
Bhagavad Gita (5.29): परमात्मा ही अंतिम आश्रय है।
संत कबीर भी कहते हैं — “माया महा ठगिनी हम जानी।” संसार मोह में फँसाना जानता है।

अन्तरा ३

👉 तन नहिं तेरा, धन नहिं तेरा, कहा रह्यो इहि लागि ।
दादू हरि बिन क्यूँ सुख सोवै, काहे न देखैं जागि ॥३॥

न यह शरीर तेरा है, न धन तेरा है — फिर तू इन्हीं के लिए क्यों रमता है? हे दादू, हरि के बिना सुख कहाँ? क्यों नहीं जागता?

शरीर और धन क्षणभंगुर हैं, केवल आत्मा शाश्वत है। जो हरि-भक्ति में नहीं है, वह अज्ञान की नींद में सो रहा है। असली जागरण हरि-स्मरण और आत्मज्ञान में है।

This body is not yours, nor is the wealth yours. Why remain entangled in them? Without Hari, where is happiness? O Dadu, why don’t you awaken?

Spiritual Insight with Reference:
Isha Upanishad (1): “ईशावास्यमिदं सर्वं...” — सब कुछ ईश्वर का है, तेरा कुछ नहीं।
Bhagavad Gita (2.20): आत्मा जन्म-मरण से रहित है, पर शरीर नश्वर है।
यहाँ दादू वही सत्य जगा रहे हैं — आत्मा जागे, हरि में लीन हो, तभी वास्तविक सुख मिलेगा।
समग्र भावार्थ (Essence)

संत दादू का यह भजन मनुष्य को स्मरण कराता है कि —
मृत्यु निश्चित है, इसलिए आत्मा और राम को याद करो।
संसार केवल क्षणिक संगति है, कोई स्थायी साथी नहीं।
रिश्ते, धन, सुख सब सेमल के फूल की तरह बाहरी दिखावे मात्र हैं।
सच्चा सुख केवल हरि-स्मरण और आत्मज्ञान में है।

Upanishadic Core Reference:
यह संदेश मृत्यु-ज्ञान (impermanence) और आत्मज्ञान (Self-realization) पर आधारित है, जो Kathopanishad, Isha Upanishad और Bhagavad Gita में बार-बार प्रकट होता है।

Spiritual Bhajan | बटऊ रे चलना आज कि काल | संत दादू दयाल जी

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