जनप्रिय संत श्री गंगा दास बाबा, बसंतपुर, सिवान/Sri Ganga Baba, Basantpur, Siwan
Автор: AMAR NATH PRASAD
Загружено: 2025-03-21
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सारण के संत
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महान संत श्री गंगा बाबा ( बसंतपुर, सिवान) : जीवन, दर्शन और काव्य
… प्रो. (डॉ.)अमरनाथ प्रसाद,
अंग्रेजी विभागाध्यक्ष ,
जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा, बिहार।
प्रस्तावना:
महाकवि तुलसीदास जी ने संतों की महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि संत परोपकारी होते हैं, जो दूसरों के कष्टों को दूर करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। सारण की धरती ने ऐसे ही एक महान संत, श्री गंगा दास जी महाराज को जन्म दिया, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मानव कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। उनका जीवन सादगी, सेवा और भक्ति का अनुपम उदाहरण है। इस आलेख में, हम श्री गंगा दास जी महाराज के जीवन, उनके उपदेशों और उनके द्वारा किए गए कार्यों पर प्रकाश डालेंगे।
मुख्य शब्द:
श्री गंगा दास जी महाराज
संत
साधना
कबीरपंथी
सेवा
भक्ति
अध्यात्म
सारण
समाधि स्थल
उपदेश
सेवा
त्याग
महाकवि तुलसीदास जी ने अपने दोहों में संत की परिभाषा को स्पष्ट करते हुए कहा है कि
"तुलसी संत सुअंब तरु, फूलि फलहिं पर हेत,
इतते ये पाहन हनत, उतते वे फल देत।।”
इस दोहे में तुलसीदास जी ने संत की तुलना एक आम के पेड़ से की है। जिस प्रकार आम का पेड़ दूसरों के लिए फल देता है, उसी प्रकार संत भी दूसरों की भलाई के लिए कार्य करते हैं, भले ही लोग उन्हें कष्ट दें।
एक जगह उन्होंने यह भी लिखा है:
"बिनु हरि कृपा मिलहिं नहीं संता।
काहुं को बहु विधि करहिं यांता।।"
अर्थात् भगवान की कृपा के बिना, कोई संत नहीं मिल सकता, भले ही कोई कितने भी तरीकों से प्रयास करे।
इन दोहों और तुलसीदास जी की अन्य रचनाओं से यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने संत को एक उच्च कोटि के व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया है जो मानव कल्याण के लिए समर्पित होता है। ठीक वैसे ही एक संत का नाम है सारन के महान संत अनन्त श्री विभूषित श्री गंगा दास जी महाराज।
झांकी पा सके हैं। कहना न होगा कि ऐसे महात्मा भूतल पर बहुत कम है जिनके दर्शन, स्पर्श, आराधना से मन को शांति मिलती है। लेखक को इस बात का संतोष है कि उनकी चर्चा से उनकी लेखकी पवित्र हुई है और वाणी ने वह काम किया है जो उसे करना चाहिए। लेखक उनकी कृपा का भाजन बने, इस प्रार्थना के साथ यह पुस्तक प्रस्तुत की जाती है।"
( श्री चंद्रदीप पाण्डेय, “अपनी बात”, पावन संवाद,रामरति पुस्तकालय, पिपरहियां अरूवां, 1993)
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