श्री भगवद गीता | अध्याय 10 - विभूति योग | श्लोक 5 Bhagavad Gita Chapter 10 - Vibhuti Yoga | Shloka 5
Автор: SANATAN GYAN
Загружено: 2025-05-19
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श्लोक:
"अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः।
भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः॥"
"अहिंसा (हिंसा न करना), समता (समानता का भाव), तुष्टि (संतोष), तप (तपस्या), दान (दान देना), यश (कीर्ति) और अयश (अपयश)—ये सब विभिन्न प्रकार के भाव प्राणियों में मुझसे ही उत्पन्न होते हैं।"
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण बता रहे हैं कि जीवन के सभी गुण और अवस्थाएँ उन्हीं की देन हैं।
• अहिंसा (Non-violence)—सभी जीवों के प्रति प्रेम और करुणा।
• समता (Equanimity)—सुख-दुख, लाभ-हानि में समभाव रखना।
• तुष्टि (Contentment)—संतोष और आत्मसंतुष्टि का भाव।
• तप (Austerity)—आध्यात्मिक और आत्मसंयम से भरा जीवन।
• दान (Charity)—सहायता और दान की प्रवृत्ति।
• यश (Fame) और अयश (Infamy)—कीर्ति और अपकीर्ति भी उन्हीं से उत्पन्न होते हैं।
• जीवन में आने वाले सभी सकारात्मक और नकारात्मक गुण भगवान से ही आते हैं।
• व्यक्ति को अपने गुणों का सही उपयोग कर आत्मज्ञान और मोक्ष की ओर बढ़ना चाहिए।
• संतोष, दान, अहिंसा और समभाव से जीवन को श्रेष्ठ बनाया जा सकता है।
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