कर्ण पिशाचनी साधना का सच्चा अनुभव | karna pishachini sadhana anubhav | karn pichasini Sadhana Vidhi
Автор: siddhi consultancy
Загружено: 2021-05-14
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कर्ण पिशाचनी साधना का सच्चा अनुभव | karna pishachini sadhana anubhav | karn pichasini Sadhana Vidhi
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एक अनोखी साधना है कर्ण पिशाचिनी। इस साधना को व्यक्ति स्वयं कभी संपन्न नहीं कर सकता। उसे विशेषज्ञों और सिद्ध गुरुओं के मार्गदर्शन से ही सीखा जा सकता है। स्वयं करने से इसके नकारात्मक परिणाम भी देखे गए हैं। इस साधना को सिद्ध करने के बाद साधक में वो शक्ति आ जाती है कि वह सामने बैठे व्यक्ति की नितांत व्यक्तिगत जानकारी भी जान लेता है।
ऐसा वह कैसे करता है? यह एक सहज सवाल है। वास्तव में इसके नाम से ही स्पष्ट है कि इस साधना में ऐसी शक्ति का प्रयोग होता है, जो मनुष्य नहीं है।
इस साधना की सिद्धि के पश्चात् किसी भी प्रश्न का उत्तर कोई पिशाचिनी कान में आकर देती है अर्थात् मंत्र की सिद्धि से पिशाच-वशीकरण होता है। मंत्र की सिद्धि से वश में आई कोई आत्मा कान में सही जवाब बता देती है। मृत्यु के उपरांत एक सामान्य व्यक्ति अगर मुक्ति ना प्राप्त करे तो उसकी क्षमताओं में आश्चर्यजनक वृद्धि हो जाती है।
पारलौकिक शक्तियों को वश में करने की यह विद्या अत्यंत गोपनीय और प्रामाणिक है। आलेख पढ़ने वाले हर शख्स को गंभीर चेतावनी दी जाती है कि इसे अकेले आजमाने की कतई कोशिश ना करें अन्यथा मन-मस्तिष्क पर भयावह असर पड़ सकता है।
एक अनोखी साधना है कर्ण पिशाचिनी। इस साधना को व्यक्ति स्वयं कभी संपन्न नहीं कर सकता। उसे विशेषज्ञों और सिद्ध गुरुओं के मार्गदर्शन से ही सीखा जा सकता है। स्वयं करने से इसके नकारात्मक परिणाम भी देखे गए हैं।
साधना की छोटी से छोटी गलती आपके जीवन पर भारी पड़ सकती है। कर्ण पिशाचिनी मंत्र के सात प्रयोग हैं। प्रस्तुत है पहला प्रयोग। अन्य प्रयोग समयानुसार वेबदुनिया के इसी कॉलम में देख सकते हैं।
प्रयोग
यह प्रयोग निरंतर ग्यारह दिन तक किया जाता है। सर्वप्रथम सिद्ध कर्ण पिशाचनी यंत्र सफ़ेद कोरे कागज पर सिंदूर से बनाएं और इसकी ही सिद्धि की जाती है इसके बाद एक काँसे की थाली में सिंदूर का त्रिशूल बनाएँ। इस त्रिशूल का दिए गए मंत्र द्वारा विधिवत पूजन करें। यह पूजा रात और दिन उचित चौघड़िया में की जाती है।
सिद्धि केवल यंत्र और थाली पर बनाये त्रिशूल की ही की जानी है
गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाएँ और 1100 मंत्रों का जाप करें। रात में भी इसी प्रकार त्रिशूल का पूजन करें। घी एवं तेल दोनों का दीपक जलाकर ग्यारह सौ बार मंत्र जप करें।
इस प्रकार ग्यारह दिन तक प्रयोग करने पर कर्ण पिशाचिनी सिद्ध हो जाती है। तत्पश्चात् किसी भी प्रश्न का मन में स्मरण करने पर साधक के कान में पिशाचिनी सही उत्तर दे देती है।
सावधानियाँ :
एक समय भोजन करें।
काले वस्त्र धारण करें।
स्त्री से बातचीत भी वर्जित है। (साधनाकाल में)
मन-कर्म-वचन की शुद्धि रखें।
मन्त्र
।।ॐ नम: कर्णपिशाचिनी अमोघ सत्यवादिनि मम कर्णे अवतरावतर अतीता नागतवर्त मानानि दर्शय दर्शय मम भविष्य कथय-कथय ह्यीं कर्ण पिशाचिनी स्वहा।।
मन्त्र सत्य और सही है जो प्राचीन और तीव्र फलदाई होता है आजमाने के लिए इस मन्त्र का जाप कदापि ना करें
मन्त्र जाप केवल सिद्ध काले हकीक की असली माला से करें
यंत्र खुद बनाये जाते है अथवा गुरु से दीक्षा में लिए जाते है
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छत्तीस यक्षिणीयाँ ।
सर्वेषां यक्षिणीनां तु ध्यान कुर्यात्समाहितः।
भगिनी मातृ, पुत्री स्त्री रूप तुल्य यथोप्सितम्।। 1।।
भोज्य निरामिषे चान्नं वज्र्य ताम्बूल भक्षणम्। उपविश्याजिनादौ च प्रातः स्नानत्वा न कंस्पृशत्।। 2।।
1.विचित्रा 2.विभ्रमा 3.हंसी 4 भीषणी 5.जनरंजिका 6.विशाला 7.मदना 8.रुद्धा 9.कालकंठी 10. महामाया 11. माहेन्द्री 12.शंखिनी 13.चान्द्री 14.मंगला 15. वटवासिनी 16. मेखला 17.सकला 18.लक्ष्मी (कमला) 19. मालिनी 20. विश्वनायिका 21 सुलोचना 22. रुशोभा 23. कामदा 24. सविलासिनी 25.कामेश्वरी 26.नंदिनी 27.स्वर्ण रेखा 28. मनोरमा 29. प्रमोदा 30. रागिनी 31. सिद्धा 32. पद्मिनी 33. रतिप्रिया 34. कल्याण दा 35. कलादक्षा 36. सुर सुंदरी
||प्रमुख यक्षिणियां है||
1. सुर सुन्दरी यक्षिणी २. मनोहारिणी यक्षिणी 3. कनकावती यक्षिणी 4. कामेश्वरी यक्षिणी
5. रतिप्रिया यक्षिणी 6. पद्मिनी यक्षिणी 6. नटी यक्षिणी 8. अनुरागिणी यक्षिणी
किसी साधना के पूर्व यदि गुरु मंत्र का कम से कम ५१,००० जप कर लिया जाये और फिर मूल साधना की जाये तो सफलता मिलती ही है |
यक्षिणी साधना की शुरुआत भगवान शिव जी की साधना से की जाती हैं.
शिवजी का मन्त्र –
ऊँ रुद्राय नम: स्वाहा
ऊँ त्रयम्बकाय नम: स्वाहा
ऊँ यक्षराजाय स्वाहा
ऊँ त्रयलोचनाय स्वाहा
इस यक्षिणी कवच को यक्षिणी पुजा से पहले 1,5 या 7 बार जप किया जाना चाहिए। इस कवच के जप से किसी भी प्रकार की यक्षिणी साधना में विपरीत परिणाम प्राप्त नहीं होते और साधना में जल्द ही सिद्धि प्राप्त होती हैं।।।
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