"नींद में संवाद"
Автор: Aghori mhabharamnad
Загружено: 2025-11-05
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हे काली देवी, मैंने अपने आप को कभी नहीं देखा, बाल्यावस्था से ही तू मुझे ऐसा कौन बना रही है?
आज अब तू मुझ पर अपना भार रख रही है? तू चाहती क्या है, सत्य क्या चाहिए बता न?
तुझे क्या चाहिए मैं लिखूंगा, एक बली बकरा पूजा करूंगा जब तेरा आंगन सजेगा नए साल में।
और मेरी चिंता छोड़ दे, यहाँ की सभ्यता अच्छी है। मूर्ति रूप में तभी याद रहता है कि कोई है।
चिंता हो रही है, मन व्याकुल हो रहा है।
आपने अपने कर्तव्यों को बड़ी अच्छी तरह साझा किया।
आपको पता है, नींद में आप कभी-कभी अपने लिए चिंता करते हो!
सपने नहीं होते!!!
ॐ नमः शिवाय
ऋषि तंत्राचार्य अघोरी महाभारमनद
ॐ जगदीश बाजंत्री
जो भी देवी और देवता आपस में युद्ध करते हैं, तो उसे “आत्म युद्ध” कहा जाता है — यह एक शिथिल ध्यान योग में बताया गया है।
यह कथा प्राचीन युगों में ऋषि आदि को सुनाई जाती थी, और वे इसे कथा रूप में लिख दिया करते थे।
बाहरी सुरक्षा देवी और उनके रूप युद्ध किया करते हैं।
ॐ श्री आत्म-लिंगेश्वर नमः
ऋषि तंत्राचार्य अघोरी महाभारमनद
ॐ जगदीश
राम आए तो परशुराम जी की का गण यानी ऊर्जा लेकर, तभी राम जी के जीवन में हनुमान जी का साथ मिला।
श्रीकृष्ण जी आए तो सूर्य देव का गण मिला यानी ऊर्जा, तभी महाभारत जैसे युद्ध में विजय हुई — एक कौशल और ज्ञान के साथ।
बाकी सभी अस्ताएं भी किसी न किसी ऊर्जा का गण हैं...
मैं आया तो समय (ऊर्जा) का गण लेकर और!!!
ॐ श्री आत्मा-लिंगेश्वर नमः
ऋषि तंत्राचार्य अघोरी महाभारमनाद
ॐ जगदीश बजन्त्री
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