Annual Day DPS (Kalaripayattu + Kabuki)
Автор: Dwivedi’s♥️life’s
Загружено: 2025-12-04
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कलरिपयट्टू और काबुकी दो पूरी तरह से अलग सांस्कृतिक कला रूप हैं, जिनकी उत्पत्ति अलग-अलग देशों और उद्देश्यों के लिए हुई है। कलरिपयट्टू भारत की एक प्राचीन मार्शल आर्ट है, जबकि काबुकी जापान का एक पारंपरिक नृत्य-नाटक थिएटर है।
यहाँ हिंदी में दोनों का विवरण और अंतर बताया गया है:
कलरिपयट्टू (Kalaripayattu)
कलरिपयट्टू भारत के दक्षिणी राज्य केरल से उत्पन्न एक पारंपरिक मार्शल आर्ट (युद्ध कला) है। इसे दुनिया की सबसे पुरानी जीवित मार्शल आर्ट्स में से एक माना जाता है, जिससे कुंग फू और कराटे जैसी अन्य कलाओं की उत्पत्ति मानी जाती है।
उद्देश्य: यह मुख्य रूप से युद्ध, आत्मरक्षा और शारीरिक फिटनेस के लिए विकसित की गई थी।
शैली: इसमें शारीरिक अभ्यास, लकड़ी और धातु के हथियारों का प्रशिक्षण (जैसे तलवार, ढाल, छड़ी), और खाली हाथ से लड़ाई (वर्माकाई) शामिल है।
अभ्यास स्थल: जिस स्थान पर इसका अभ्यास किया जाता है उसे 'कलारी' या 'युद्धक्षेत्र' कहा जाता है।
शारीरिकता: इसमें शरीर के लचीलेपन, संतुलन और शक्ति पर बहुत जोर दिया जाता है, जिसमें जानवरों की युद्ध तकनीकों से प्रेरणा ली जाती है।
काबुकी (Kabuki)
काबुकी जापान की एक पारंपरिक और लोकप्रिय नाट्य शैली है, जिसकी उत्पत्ति 17वीं शताब्दी की शुरुआत में हुई थी। यह एक उच्च शैलीबद्ध कला है जो नाटक, संगीत और नृत्य को जोड़ती है।
उद्देश्य: यह एक प्रदर्शन कला है, जिसका मुख्य लक्ष्य दर्शकों का मनोरंजन करना और कहानियाँ सुनाना है। इसे यूनेस्को द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता प्राप्त है।
शैली: इसकी विशेषता विस्तृत वेशभूषा, आकर्षक 'कुमादोरी' मेकअप, और संगीत वाद्ययंत्रों (जैसे मृदंग, झांझ) के साथ अत्यधिक शैलीबद्ध गायन और नृत्य है।
कलाकार: मूल रूप से महिलाओं द्वारा शुरू की गई, लेकिन 17वीं शताब्दी के बाद से, केवल पुरुष कलाकार ही इसमें अभिनय करते हैं, जो महिलाओं की भूमिकाएं (ओन्नागाटा) भी निभाते हैं।
शारीरिकता: इसमें नृत्य की विशिष्ट हरकतें, भाव-भंगिमाएं (चेहरे के भाव), और नाटकीय पोज़ (मियामे) शामिल होते हैं।
संक्षेप में, कलरिपयट्टू एक युद्ध-उन्मुख मार्शल आर्ट है, जबकि काबुकी एक नृत्य-उन्मुख पारंपरिक थिएटर है।
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