मिम्बर पे नशिस्त सर पे हज़रत का अलम ,अब चाहिए क्या तख़्त मिला ताज मिला|Marsia-e-Mir Anees|Urdu Poetry|
Автор: Sunil Batta Films
Загружено: 2019-09-01
Просмотров: 32484
Channel- Sunil Batta Films
Documentary on Marsia (Urdu Poetry) - Marsia - e - Mir Anees
Produced & Directed by Sunil Batta, Voice- S H Mehndi, Camera-Chandreshwar Singh Shanti, Production- Dhruv Prakesh, Camera Asst.- Runak Pal, Kuldeep Shukla.
Synopsis of the Film -
Marsia - e - Mir Anees
आक़ा ने दी जो अपने सरे पाक की क़सम
बस थरथरा के रह गया वो साहबे करम
पर थी शिकन जबीं पे न होता था ग़ैज़कम
चुप हो गये करीब जब आए शहे उमम
गर्दन झुका दी ता न अदब में खलल पड़े
क़तरे लहू के आंखों से लेकिन निकल पड़े
ये मीर अनीस का जलवा है अनीस की बानगी है। मीर अनीस जिन्हें मरसियों का मसीहा कहा जाता है अपने ढंग के अकेले आप थे और लखनऊ को उन पर हमेशा नाज़ रहेगा। मीर अनीस आठ पुश्तों के शायर थे। दिल्ली में अनीस के परदादा मीर गुलाम हुसैन जाहक उर्दू फारसी में शेर कहते थे। मीर अनीस बचपन से ही उर्दू में शेर कहने का सलीका रखते थे। करबले की घटनाओं की सच्ची तस्वीर खींचने, घोड़ों, तलवारों और जंग का ज़िक्र करने में उनका जवाब कहीं नहीं है।
मीर अनीस फैज़ाबाद में बमक़ाम गुलाब बाड़ी 1219 हिजरी मुताबिक़ 1803 ईस्वी में पैदा हुए क़दीम तज़किरों में मीर अनीस के दो उस्तादों का ज़िक्र मिलता है। जिस में मीर नजफ अली फैज़ाबादी और दूसरे मौलवी हैदर अली लखनवी। मीर अनीस ने पहली मज्लिस हुसैनिया नवाब अकरमुल्लाह खाँ वाके़ नख़्ख़ास में पढ़ी जिस की इब्तेदा मुनदरजा जेल़ रूबाई से की -
बालिदा हों वह औज मुझे आज मिला
ज़िल्ले इल्म साहबे मेराज मिला
मिम्बर पे नशिस्त सर पे हज़रत का अलम
अब चाहिए क्या तख़्त मिला ताज मिला
इस रूबाई के बाद उन्होंने दर्ज जे़ल मर्सिया पढ़ा -
जब हरम मक़तले सुरूर से वतन में आए
अशके ख़ूं रोते हुए रंजो मेहन में आए
बाल चेहरों परे थे संुम्बुल से परेशा सब के
मिस्ले गुल चाक थे मातम में गरीबां सब के
काश वह वाक़ेआ तुम देखते बादीदए तर
मीर अनीस ने आखि़री मर्सिया व अहसरता कि अहद जवानी गुज़र गया’’ 15 सफर 1291 हिजरी को शेख अली अब्बास साहब वकील की सालाना मजलिस में पढ़ा और उस के बाद बीमार हो गए।
29 शव्वाल की वह मनहूस तारीख़ थी जिस का दिन गुज़रने के बाद मग़रिब के करीब यह महर ताबां सुख़नूरी और माह दरख़शाने मर्सिया ख़्वानी क़ब्र में हमेशा के लिए नेहां हो गए।
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