राजा भर्तृहरि क्यों राजपाट छोड़कर साधू बन गए थे?
Автор: Vichitra Bharat
Загружено: 2025-07-26
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मालवा के राजा गंधर्वसेन के दो पुत्र थे। बड़े का नाम राजा भर्तृहरि और छोटे का नाम विक्रमादित्य था। राजा भर्तृहरि अपने पिता के स्वर्गवास के बाद राजा बने। जो बहुत विद्वान और संस्कृत के कवि थे जिन्होंने ने नीती शतक, श्रृंगार शतक और वैराग्य शतक ग्रन्थों की रचना की। राजा भर्तृहरि ने उस समय की सबसे सुंदर राजकुमारी पिंगला से विवाह किया। राजा भर्तृहरि अपनी रानी से बहुत प्रेम करते थे।
एक बार राजा भर्तृहरि ने कहा कि वो एकांतवास में जा रहे कोई उनसे सम्पर्क ना करें। राजा भर्तृहरि अपने छोटे भाई विक्रमादित्य से कहा जब तक मैं वापिस नहीं आ जाता तब तक वो राजपाट का काम देखना। कुछ समय के बाद गुप्तचरों ने विक्रमादित्य को सुचना दी कि रानी पिंगला अस्तबल में काम करने वाले एक कर्मी से प्रेम करती है और छुप छुपकर उससे मिलती है। विक्रमादित्य ने अपने बड़े भाई राजा भर्तृहरि ने मिलने के लिए अनुमति मांगी और बताया कि उनकी रानी पिंगला अस्तबल के एक कर्मचारी से छूप छूटकर मिलती है ऐसा गुप्तचरों ने उन्हें बताया है। राजा भर्तृहरि को यह सब जानकर बहुत दुख हुआ। रानी पिंगला को भी यह मालूम हो गया था कि उसके और अस्तबल कर्मी से मिलने की बात विक्रमादित्य को पता चला गई है। रानी पिंगला ने अपनी तरफ इसके लिए तैयारी कर ली थी।
राजा भर्तृहरि जैसे अपने महल में आए रानी पिंगला ने राजा से कहा कि आप कुछ मुझ से कुछ कहें उससे पहले मैं आपको कुछ बताना चाहती हूं। रानी पिंगला ने कहा कि आपके भाई विक्रमादित्य चरित्रहीन है।एक गरीब परिवार से रानी पिंगला ने पैसे का लालच देकर यह कहलवाया कि विक्रमादित्य चरित्रहीन है वो हमारी बहु पर गलत नजर रखते हैं। जैसे ही राजा भर्तृहरि को ये बात पता चली उन्होंने विक्रमादित्य को अपने राजपाट से बाहर कर दिया।
एक गरीब ब्राह्मण धन के लालच में तपस्या कर रहा था।
लेकिन इन्द्र देव ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे एक अमरफल दिया और कहा कि इस फल को खाने वाला अमर हो जायेगा। गरीब ब्राह्मण ने सोचा कि वह अमर हो गया तो सारा जीवन गरीबी में ही काटना पड़ेगा क्यो नही यह फल वह राजा को दें दे। राजा भर्तृहरि बहुत अच्छे राजा है अगर वह अमर हो गए तो प्रजा की भलाई के काम करेंगे और उसे ईनाम भी देंगे। गरीब ब्राह्मण ने वो फल राजा भर्तृहरि को दे दिया। राजा भर्तृहरि ने उस गरीब ब्राह्मण को मुंह मांगा धन देकर विदा किया।
राजा भर्तृहरि ने अमर फल खुद ने खाकर अपनी रानी पिंगला को दे दिया और सोचा कि अगर रानी अमर हो गई तो उसे जीवन भर आनन्द मिलता रहेगा। रानी पिंगला ने भी वह फल ना खाकर अपने अस्तबल कर्मी प्रेमी को दे दिया सोचा कि यह अमर हो गया तो मुझे जीवन भर आनन्द मिलता रहेगा। उस अस्तबल कर्मी ने भी वह फल नहीं खाया । अस्तबल कर्मी दरबार में नृत्य करने वाली एक महिला से प्रेम करता था उसने वो फल उसे दे दिया। दरबार में नृत्य करने वाली महिला ने भी वह फल नहीं खाया और उसने सोचा कि वह अमर होकर क्या करेगी वैसे भी वह कोई अच्छा काम तो कर ही नहीं रही है। क्यों नहीं यह फल राजा भर्तृहरि दे दिया जाए और इसके बदले में उसे ईनाम भी मिलेगा। जैसे ही वह फल राजा के पास पहुंचा राजा भर्तृहरि को सब समझ में आ गया। राजा भर्तृहरि ने नृत्य करने वाली महिला से पूछा कि यह फल उसे कैसे मिला अगर वो सच बोलेंगी तो उसे ईनाम मिलेगा। नृत्य करने वाली महिला ने राजा को बताया कि उसके प्रेमी अस्तबल कर्मी ने दिया है। राजा भर्तृहरि ने नृत्य करने वाली महिला को ईनाम देकर भेज दिया। उसके बाद राजा भर्तृहरि ने अस्तबल कर्मी को बुलाया और उनसे कहा कि बताओं कि तुम्हारे पास यह फल कहां से आया अगर सच बोलोगे तो जीवन दान मिलेगा नहीं तो मृत्यु दण्ड मिलेगा। अस्तबल कर्मी ने मृत्यु के भय से सच बोला और बताया यह फल उसे रानी पिंगला ने दिया था। राजा भर्तृहरि ने अस्तबल कर्मी को सच बोलने पर जीवन दान दिया।
पूरी सच्चाई जानने के बाद राजा भर्तृहरि का मन बहुत दुःखी हुआ और उन्होंने अपने राज्य में घोषणा करवाई कि वह अब साधू बनेंगे। राजा भर्तृहरि ने कहा कि वो अपने जाने से पहले एक चमत्कार करेंगे।जब तक राजा भर्तृहरि ने अपने गुप्तचरों को भेज कर अपने छोटे भाई विक्रमादित्य को बुला लिया था। राजा भर्तृहरि ने विक्रमादित्य को राजा बनाया। राजा भर्तृहरि ने दरबार में जनता के सामने कहा कि वो अपनी रानी पिंगला का सिर काटेंगे और मरेगी नहीं क्योंकि उन्होंने अमर फल खाया है। जैसे ही राजा भर्तृहरि ने अपनी तलवार उठाई रानी पिंगला ने माफी मांगते हुए कहा महाराज मैंने वो फल नहीं खाया है। रानी पिंगला की सच्चाई सबके सामने आ गई थी।
उसके बाद राजा भर्तृहरि ने गुरू गोरखनाथ ने शिक्षा ली और बारह वर्ष तपस्या की और अमर हो गए।
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