साढौरा राम लीला भाग - 10 (2025) लंका दहन, लंकनि वध,
Автор: sadhaura ramlila
Загружено: 2025-09-28
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लंका दहन रामायण का एक प्रमुख प्रसंग है, जो उस समय की घटना का वर्णन करता है जब हनुमान जी ने लंका को जलाया था। यह प्रसंग उस समय घटित होता है जब भगवान राम की पत्नी सीता का अपहरण करके रावण उन्हें लंका ले जाता है। भगवान राम सीता की खोज में वानरराज सुग्रीव के साथ मिलकर अपनी सेना तैयार करते हैं और हनुमान जी को सीता का पता लगाने के लिए लंका भेजते हैं।
हनुमान जी लंका पहुँचते हैं और विभीषण से जानकारी प्राप्त कर रावण की अशोक वाटिका में जाते हैं, जहाँ माँ सीता को बैठा पाते हैं। वहाँ जाकर हनुमान जी सीता जी को राम का संदेश देते हैं और उन्हें यह विश्वास दिलाते हैं कि भगवान राम जल्द ही उन्हें छुड़ाने के लिए आएंगे। सीता जी हनुमान जी को अपनी चूड़ामणि (मणि) देती हैं, जो राम को उनके संदेश के रूप में प्रस्तुत करनी थी।
इसके बाद हनुमान जी को राक्षसों द्वारा पकड़ा जाता है और रावण के सामने पेश किया जाता है। रावण हनुमान जी को मारने की सोचता है, लेकिन विभीषण के समझाने पर उन्हें सजा के रूप में उनकी पूंछ में आग लगाने का आदेश देता है। हनुमान जी इस अवसर का लाभ उठाते हैं और अपनी दिव्य शक्ति से अपनी पूंछ को बड़ा कर लेते हैं। इसके बाद वे आग की जलती हुई पूंछ से पूरी लंका को जलाकर राख कर देते हैं। लंका जलते समय हनुमान जी अपनी शक्ति और बुद्धिमानी का परिचय देते हुए एक भी निर्दोष को नुकसान नहीं पहुंचाते।
लंका जलाने के बाद हनुमान जी समुद्र पार करके वापस भगवान राम के पास पहुँचते हैं और उन्हें सीता का हाल सुनाते हैं। लंका दहन का यह प्रसंग रामायण में हनुमान जी की वीरता, धैर्य, और भक्ति का प्रतीक माना जाता है।
राम सेतु निर्माण रामायण का एक महत्वपूर्ण और पौराणिक प्रसंग है, जिसमें भगवान राम और उनकी सेना द्वारा समुद्र के ऊपर एक सेतु (पुल) का निर्माण किया गया था, जिससे लंका पहुँचकर रावण से युद्ध किया जा सके और सीता माता को मुक्त कराया जा सके।
पृष्ठभूमि:
जब लंका के राजा रावण ने माता सीता का अपहरण किया, तब भगवान राम ने अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए वानरराज सुग्रीव की मदद से एक विशाल सेना का गठन किया। हनुमान जी पहले ही लंका जाकर सीता का पता लगा चुके थे और राम को उनका संदेश भी पहुंचा चुके थे। अब भगवान राम ने अपनी सेना के साथ लंका जाने का निर्णय लिया, लेकिन लंका और भारत के बीच विशाल समुद्र बाधा बनकर खड़ा था।
समुद्र देवता का आह्वान:
समुद्र पार करने के लिए भगवान राम ने समुद्र देवता से मार्ग देने का आग्रह किया। भगवान राम ने समुद्र के किनारे तीन दिन तक प्रार्थना की, लेकिन समुद्र देवता प्रकट नहीं हुए। इससे क्रोधित होकर भगवान राम ने अपने धनुष पर बाण चढ़ाया और समुद्र को सुखाने का संकल्प लिया। समुद्र देवता भयभीत होकर भगवान राम के सामने प्रकट हुए और उन्होंने विनम्रतापूर्वक मार्ग देने का वचन दिया। समुद्र देव ने भगवान राम को नल और नील नामक वानर योद्धाओं की ओर संकेत किया, जो वरदानस्वरूप किसी भी वस्तु को जल में तैराने में सक्षम थे।
पुल निर्माण:
वानर सेना के नल-नील को नेतृत्व में पुल निर्माण शुरू हुआ। वानर समुद्र में पत्थर और बड़े-बड़े शिलाखंड डालने लगे, और नल-नील के वरदान के कारण ये पत्थर पानी में डूबने के बजाय तैरने लगे। भगवान राम के नाम से लिखे गए पत्थर भी समुद्र में तैरते रहे। सभी वानर मिलकर एक विशाल पुल का निर्माण करने लगे, जोकि भारत के दक्षिणी किनारे (वर्तमान तमिलनाडु) से लंका तक फैला हुआ था।
सेतु का महत्व:
इस पुल को राम सेतु या नल सेतु कहा जाता है। इस सेतु के निर्माण के बाद भगवान राम और उनकी सेना लंका पहुँचे और रावण से युद्ध किया। अंततः रावण का वध हुआ और सीता जी को मुक्त कराया गया। राम सेतु का निर्माण न केवल भगवान राम की महानता को दर्शाता है, बल्कि यह उनकी सेना के सामूहिक प्रयास, समर्पण, और विश्वास का प्रतीक भी है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
आज के समय में राम सेतु को लेकर कई वैज्ञानिक और ऐतिहासिक अनुसंधान हो चुके हैं। कुछ वैज्ञानिक इसे एक प्राकृतिक संरचना मानते हैं, जबकि अन्य इसे मानव निर्मित पुल मानते हैं। भारत और श्रीलंका के बीच वर्तमान में एक श्रृंखला जैसी संरचना दिखाई देती है, जिसे आदम का पुल भी कहा जाता है। कई मान्यताओं के अनुसार, यही रामायण में वर्णित राम सेतु है। यह लगभग 30 किलोमीटर लंबा है और भारतीय महाद्वीप को श्रीलंका से जोड़ता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:
राम सेतु का हिंदू धर्म में अत्यधिक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। इसे भगवान राम और उनकी सेना की भक्ति, शक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता है। हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए राम सेतु एक पवित्र स्थल है और इसे भगवान राम की लीलाओं से जुड़ी एक महत्वपूर्ण स्मारक के रूप में देखा जाता है।
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