सारंडा के बच्चे कुपोषण के शिकार ।CRPF मेडिकल कैंप बना उम्मीद की किरण
Автор: News Aapka
Загружено: 2025-11-24
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सारंडा जंगल का सच: कुपोषण और अभावों के बीच ‘फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस’ बना उम्मीद की किरण
पश्चिम सिंहभूम के घने, दुर्गम और नक्सल प्रभावित सारंडा जंगल की सच्चाई फिर एक बार सामने आई है। यहां रहने वाले आदिवासी समुदायों की दयनीय स्थिति, बच्चों में कुपोषण, मलेरिया और बीमारी की बढ़ती संख्या एक गंभीर मानवीय संकट की तस्वीर पेश करती है।
बच्चों की हालत बेहद खराब — कुपोषण के शिकार सैकड़ों मासूम
सैकड़ों बच्चे आज भी कुपोषण से जूझ रहे हैं। कई गंभीर रूप से बीमार हैं, जिनके इलाज के लिए न तो अस्पताल है और न ही गांवों तक सड़कें पहुँचती हैं। तिरिलपोसी गांव में इलाज के अभाव में एक बच्चे की मौत ने पूरे क्षेत्र को हिला दिया — और यही वह क्षण था जिसने CRPF को सक्रिय कदम उठाने पर मजबूर किया।
बिटकिलसोय में नया FOB कैंप — अंधेरे में एक रोशनी
सारंडा जंगल के बीच बसे बिटकिलसोय गांव में CRPF 134 बटालियन द्वारा नया FOB (फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस) स्थापित किया गया है। यह कैंप सिर्फ सुरक्षा का केंद्र नहीं, बल्कि ग्रामीणों के लिए आशा की नई किरण बनकर उभरा है।
कमांडेंट त्रिलोक नाथ बताते हैं:
“तिरिलपोसी में जिस बच्चे की मौत हुई, वह हमारे लिए चेतावनी थी। हमने तुरंत कैंप से बाहर निकलकर ग्रामीणों के बीच मेडिकल कैंप लगाना शुरू किया। जांच में पता चला कि कई बच्चे गहरे कुपोषण के शिकार हैं। कई लोग मलेरिया से जूझ रहे थे।"
CRPF जवानों का मानवीय पहल — गांव में मेडिकल कैंप, दवाई और इलाज
नए कैंप के शुरू होते ही जवानों ने हर गांव में जाकर मेडिकल कैम्प, इलाज, ब्लड स्लाइड टेस्ट और दवाइयां उपलब्ध करानी शुरू कीं।
अस्पताल न होने के बावजूद जवान हर बीमार व्यक्ति तक पहुंच रहे हैं—चाहे बारिश हो, पहाड़ी रास्ते हों या घने जंगल।
गांव वालों ने कहा—
“पहली बार किसी ने हमारे बच्चों की जांच की… पहली बार दवा मिली… पहली बार किसी ने पूछा कि हम कैसे हैं।”
सारंडा में CRPF की दो बड़ी चुनौतियाँ
नक्सलवाद:
घना जंगल, दुर्गमता और वर्षों से सक्रिय माओवादी गतिविधियाँ सुरक्षा बलों की सबसे बड़ी चुनौती हैं।
ग्रामीणों का बिखरा जनजीवन:
शिक्षा शून्य
स्वास्थ्य सुविधा नहीं
रोजगार के मौके नहीं
गांव जोड़ने वाली सड़कें नहीं
पेयजल और पोषण की भारी कमी
आज भी कई गांव ऐसे हैं जहां सरकार की योजनाएँ कागज पर हैं पर जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग।
ग्रामीण बोले—“पेट भूखे बच्चे कैसे जियेंगे? इलाज न हो तो कैसे बचेंगे?”
सारंडा के कई इलाकों की स्थिति अब भी बेहद चिंताजनक है। बच्चे कुपोषित हैं, महिलाएँ एनीमिक हैं और पुरुष रोजगार के अभाव में पलायन को मजबूर।
सरकारी टीमों का पहुंचना मुश्किल होने के कारण CRPF ही इन गांवों की एकमात्र सहारा बनती जा रही है।
जंगल में संघर्ष — जिंदगियाँ बचाने का प्रयास
एक तरफ जवान नक्सलियों के खिलाफ अभियान में लगे हैं, वहीं दूसरी तरफ वे ग्रामीणों की जिंदगी संवारने की कोशिश कर रहे हैं।
यह सिर्फ सुरक्षा का नहीं बल्कि मानवीय सेवा का मिशन बन चुका है।
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