# Vihangam Yoga | स्वर्वेद ज्ञान का दिव्य प्रकाश | by Sant sri Vigyan deo ji Maharaj
Автор: Vihangam Yoga
Загружено: 2018-01-13
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अध्यात्म हमारे देश की आत्मा है, भारत आध्यात्मिक देश रहा है, अध्यात्म से ही हमारी पहचान संपूर्ण विश्व में है, इसी आध्यात्मिक ज्ञान की धारा को विहंगम योग के प्रणेता अनन्त श्री सदगुरू सदाफल देव जी भगवान ने अपनी आत्मा में धारण किया और संपूर्ण विश्व की मानवता के कल्याण के लिए उसे स्वर्वेद में अभिव्यक्त कर दिया।
स्वर्वेद समाधि का अनुभव है, स्वर्वेद अध्यात्म की गाथा है, स्वर्वेद मानव के कल्याण का सहज सनातन मार्ग है। स्वर्वेद में ज्ञान की अनंत रश्मियां भरी पड़ी हैं, शब्द शब्द में चमत्कार भरा पड़ा है, अध्यात्म ही मुखरित है यहाँ पर। जितना हम इस आनंद से जीवन को पूर्ण बना सके उतना ही हम सबके जीवन का कल्याण निश्चित है।
मैं प्रायः कहता रहा हूँ- विहंगम योग के प्रणेता सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज का यह आध्यात्मिक महा अनुभव है और आज देखिये! विश्व के वैज्ञानिक, बुद्धिजीवी, विचारक, चिंतक जब स्वर्वेद के दोहों को पढ़ते हैं , उनके अंदर भारत के अध्यात्म के प्रति एक सहज उन्मुक्त भाव से और बड़ी ही व्यापक दृष्टि से भारत के इस अध्यात्म को आत्मसात करने के लिए वे तत्पर दीखते हैं।
सृष्टि कैसे होती है , प्रलय का क्या विज्ञान है और इस प्रकार से ईश्वर की सृष्टि में समस्त जीव जगत और समस्त आत्माएं काल के क्रम से प्रवाहित होकर अपने जीवन को आगे बढ़ा रहे हैं । सृष्टि से लेकर प्रलय तक , जन्म से लेकर मरण तक, कर्म से लेकर बंधन तक और प्रकृति से लेकर परमाणु पर्यन्त सारा ज्ञान विज्ञान सद्गुरु देव ने इस आध्यात्मिक महाग्रंथ में उड़ेल दिया है।
इस ग्रन्थ में ये लिखा है, उस ग्रन्थ में वो लिखा है, यहाँ वो लिखा है हमारे सद्गुरु देव ने कभी ऐसा नहीं कहा कि ऐसा कहीं लिखा नहीं। स्वयं का अनुभव यहाँ बड़ी बात है और अध्यात्म स्वयं के अनुभव से चलता है। आत्मा की गहराई है ये स्वर्वेद, साधना की ऊँचाई है, अध्यात्म की पराकाष्ठा है ये स्वर्वेद और जीवन में इसके आचरण से मनुष्य महान बनता है, उसके जीवन का आध्यात्मिक विकास हो जाता है। इतनी शक्ति स्वर्वेद के दोहों में है। हमारे शुभ संस्कारों का उदय होता है, अशुभ संस्कार नष्ट होते हैं, विवेक जागृत होता है, अविद्या छटता है , अँधेरा दूर होता है और जितना हम अपने अज्ञान को नष्ट कर सके , जितना हम ज्ञान के प्रकाश के साथ जीना सीख सके इसीलिए सद्गुरु देव ने बड़ी सहजता के साथ, बड़ी कृपा करके हम सबको संपूर्ण विश्व की मानवता के कल्याण के लिए सहज रूप में स्वर्वेद को प्रदान किया है।
यह परा विद्या का ग्रन्थ है, यह अध्यात्म का महाशास्त्र है, ये ब्रह्मविद्या का ग्रन्थ है। स्वर्वेद का अर्थ ही है आत्म ज्ञान और परमात्म ज्ञान। स्व का प्रथम अर्थ है आत्म , वेद कहते हैं ज्ञान को। स्व का दूसरा अर्थ है परमात्म, वेद है ज्ञान। जिसके द्वारा आत्म का ज्ञान प्राप्त हो जाय और जिसके द्वारा परमात्मा का ज्ञान प्राप्त हो वही तो सद्गुरु का स्वर्वेद है। जीवन में इसका आचरण मनुष्य को महान बनाता है। शब्द शब्द में चमत्कार भरा पड़ा है। हजारों हजारों साधक इसकी महत्ता को, इसकी दिव्यता को और इसकी आध्यात्मिक प्रभा से अपने जीवन को पूर्ण बना रहे हैं, लाभान्वित हो रहे हैं। लाखों घरों में आज भारत में और भारत के बाहर विश्व के अन्य देशों में स्वर्वेद का पाठ हो रहा है। घर- परिवार में एक आध्यात्मिक परिवेश ही निर्मित हो जा रहा है, एक अध्यात्म की प्रभा ही यहाँ प्रकट हो जाती है।
स्वर्वेद के दोहे हमारे जीवन के मार्ग को बदल देते हैं । और प्रतिदिन इसका पाठ करना और श्रवण करना एक सत्संग का विशिष्ठ रूप है जिसके द्वारा हम अपने जीवन में आगे बढ़ते हैं। जो कुछ भी ऐसा जीवन में है जो नकारात्मक है, जो शुभ नहीं है, जो अच्छा नहीं है और जो कल्याणकारी नहीं है वह सब नष्ट होता रहता है। बहुत बार बहुत सी चीज़े हमारे साथ आ जाती है। काल क्रम के प्रवाह से , संगति के प्रवाह से , संस्कारो के प्रवाह से, प्रारब्ध के अनुसार तो सदैव सत्संग के साथ जीना , सदैव ज्ञान के साथ जीना इसीलिए तो सद्गुरु देव का स्वर्वेद है। सब हटता रहे जो कुछ भी अनावश्यक है , जो कुछ भी आत्मा के विकास में बाधक है वह सब नष्ट होता रहे इसी लिए तो स्वर्वेद है।
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