“मीठे बच्चे - तुम्हें मन्सा-वाचा-कर्मणा बहुत-बहुत खुशी में रहना है, माधुवन मुरली date 17/12/२०२५
Автор: @bkpsmmec7
Загружено: 2025-12-16
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ओम् शान्ति। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों को बाप रोज़-रोज़ पहले समझाते हैं कि अपने को आत्मा समझ बैठो और बाप को याद करो। कहते हैं ना अटेन्शन प्लीज़! तो बाप कहते हैं एक तो अटेन्शन दो बाप की तरफ। बाप कितना मीठा है, उनको कहा जाता है प्यार का सागर, ज्ञान का सागर। तो तुमको भी प्यारा बनना चाहिए। मन्सा-वाचा-कर्मणा हर बात में तुमको खुशी रहनी चाहिए। कोई को भी दु:ख नहीं देना है। बाप भी किसी को दु:खी नहीं करते हैं। बाप आये ही हैं सुखी करने। तुमको भी कोई प्रकार का किसको दु:ख नहीं देना है। कोई भी ऐसा कर्म नहीं करना चाहिए। मन्सा में भी नहीं आना चाहिए। परन्तु यह अवस्था पिछाड़ी में होगी। कुछ न कुछ कर्मेन्द्रियों से भूल होती है। अपने को आत्मा समझेंगे, दूसरे को भी आत्मा भाई देखेंगे तो फिर किसको दु:ख नहीं देंगे। शरीर ही नहीं देखेंगे तो दु:ख कैसे देंगे। इसमें गुप्त मेहनत है। यह सारा बुद्धि का काम है। अभी तुम पारस बुद्धि बन रहे हो। तुम जब पारसबुद्धि थे तो तुमने बहुत सुख देखे। तुम ही सुखधाम के मालिक थे ना। यह है दु:खधाम। यह तो बहुत सिम्पुल है। वह शान्तिधाम है हमारा स्वीट होम। फिर वहाँ से पार्ट बजाने आये हैं, दु:ख का पार्ट बहुत समय बजाया है, अब सुखधाम में चलना है इसलिए एक दो को भाई-भाई समझना है। आत्मा, आत्मा को दु:ख नहीं दे सकती। अपने को आत्मा समझ आत्मा से बात कर रहे हैं। आत्मा ही तख्त पर विराजमान है। यह भी शिवबाबा का रथ है ना। बच्चियाँ कहती हैं - हम शिवबाबा के रथ को श्रृंगारते हैं, शिवबाबा के रथ को खिलाते हैं। तो शिवबाबा ही याद रहता है। वह है ही कल्याणकारी बाप। कहते हैं मैं 5 तत्वों का भी कल्याण करता हूँ। वहाँ कोई भी चीज़ कभी तकलीफ नहीं देती है। यहाँ तो कभी तूफान, कभी ठण्डी, कभी क्या होता रहता है। वहाँ तो सदैव बहारी मौसम रहता है। दु:ख का नाम नहीं। वह है ही हेविन। बाप आये हैं तुमको हेविन का मालिक बनाने। ऊंच ते ऊंच भगवान है, ऊंच ते ऊंच बाप ऊंच ते ऊंच सुप्रीम टीचर भी है तो जरूर ऊंच ते ऊंच ही बनायेंगे ना। तुम यह लक्ष्मी-नारायण थे ना। यह सब बातें भूल गये हो। यह बाप ही बैठ समझाते हैं। ऋषियों-मुनियों आदि से पूछते थे - आप रचयिता और रचना को जानते हो तो नेती-नेती कह देते थे, जबकि उनके पास ही ज्ञान नहीं था तो फिर परम्परा कैसे चल सकता। बाप कहते हैं यह ज्ञान मैं अभी ही देता हूँ। तुम्हारी सद्गति हो गई फिर ज्ञान की दरकार नहीं। दुर्गति होती ही नहीं। सतयुग को कहा जाता है सद्गति। यहाँ है दुर्गति। परन्तु यह भी किसको पता नहीं है कि हम दुर्गति में हैं। बाप के लिए गाया जाता है लिबरेटर, गाइड, खिवैया। विषय सागर से सबकी नैया पार करते हैं, उसको कहते हैं क्षीरसागर। विष्णु को क्षीर सागर में दिखाते हैं। यह सब है भक्ति मार्ग का गायन। बड़ा-बड़ा तलाव है, जिसमें विष्णु का बड़ा चित्र दिखाते हैं। बाप समझाते हैं, तुमने ही सारे विश्व पर राज्य किया है। अनेक बार हार खाई और जीत पाई है। बाप कहते हैं काम महाशत्रु है, उन पर जीत पाने से तुम जगतजीत बनेंगे, तो खुशी से बनना चाहिए ना। भल गृहस्थ व्यवहार में, प्रवृत्ति मार्ग में रहो परन्तु कमल फूल समान पवित्र रहो। अभी तुम कांटों से फूल बन रहे हो। समझ में आता है यह है फॉरेस्ट ऑफ थॉर्न्स (कांटों का जंगल) एक दो को कितना तंग करते हैं, मार देते हैं।
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