घर घर क्यों बर्बाद किया तनै कदर करी ना जीने की । @ श्री कुलदीप आर्य जी @ । आर्य समाज बाण्डाहेड़ी ।
Автор: Vaidik Darpan Hisar
Загружено: 2025-12-23
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Anurag Arya mo. - 7988687245 ( Gurukul Aryanagar Hisar Haryana )
भजन
क्या पीवै और क्यों पीवै , ये चीज नहीं तेरे पीने की ।
घर - घर क्यूँ बर्बाद किया तनै , कदर करी ना जीने की ।।
1 - एक - एक घूंट से शुरू करी , भर - भर के बोतल पीने लगा ।
पी - पी जहर के घूंट कहे , मैं इसी सहारे जीणे लगा ।
कौण करै ऐतबार तेरा , तू खोण दीन इमान लगा ।
लुच्चे और लफंगों की तू , शोभत करण कमीण लगा ।
सत्पुरूषों में तजा बैठणा , तूने शोभत करी कमीनों की ।।
2 - इस छोटी - सी बोतल अन्दर , राजधानियाँ डूब गई ।
घर पै उल्लू यूँ बोलण लागै , सुख की निशानियाँ डूब गई ।
ऊंचे खानदान वालों की , श्रेष्ठ कहानियाँ डूब गई ।
सुन्दर स्वस्थ गठीले बदन , रै चढ़ती नौजवानियाँ डूब गई ।
भट्ठी अन्दर क्यूं झोकै कमाई , तेरे खून पसीने की ।।
3 - पी - पी के तू पागल होता , जा पड़ता तू नाली मैं ।
जो देखै फटकारै तुझे , तेरा स्वागत होता गाली मैं ।
जान पै खुश रहा कोन्या , बना लाडसाहब कंगाली मैं ।
बच्चे कर दिए भीखमंगे , नित्त झगड़ा रहे घरवानी मैं ।
बर्तन जेवर बेच दिया , और साड़ी जो पशमीने की ।।
क्या पीवै और क्यों पीवै , ये चीज नहीं तेरे पीने की ।
घर - घर क्यूँ बर्बाद किया तनै , कदर करी ना जीने की ।।
स्वर - आर्य जगत के एवं भारत सुविख्यात वैदिक भजनोपदेशक आदरणीय @ श्री कुलदीप आर्य जी @ मेरठ ( उत्तर प्रदेश ) भारत । mo. - 7500316115
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